श्री शिव महापुराण कथा चतुर्थ खंड अध्याय 13



ब्रह्मा जी बोले हे नारद इसका नई इसी प्रकार के अनेक चरित्र से संसार को शुभ प्रदान किया कुछ समय बाद देवताओं ने स्कंध से कहा है देव आप कैलाश पर्वत पर चलकर रहिए क्योंकि आप सब ने अपना मनोरथ प्राप्त कर लिया है किसका जी ने इस बात को मान लिया तथा विष्णु जी और मुझको शुभ मुहूर्त देखने की आज्ञा दीजिए मैं मुहूर्त देखकर देवताओं सहित इस कांड से विनती की आप शुभ मुहूर्त आ गया है यह सुनकर इस्कॉन प्रसन्न हो अपने माता-पिता का ध्यान धार कैलाश पर्वत को चले उसे समय चारों ओर से जय शिव गिरिजा का शब्द सुनाई देने लगा इसका नेट उत्तम विमान पर अरुण होकर अपनी स्तुति सुनते हुए चले उनके पीछे इंद्र है रावत हाथी पर छत लेकर सवार हुए सब देखभाल सूर्य चंद्रमा सहित आगे आगे जय-जय कर करते हुए चले सामने शिव जी के पास पहुंचकर उन्हें दूर से ही नम्रता पूर्वक खड़े होकर प्रणाम किया इस गाने शिव के निकट जाकर दांडी वाट की तब शिवजी ने उन्हें गोद में लेकर उनका हृदय से लगाए गिरजा अपने पुत्र के आवागमन का समाचार सुनकर अपनी सखियों सहित मंदिर से बाहर निकल आई उन्होंने तुरंत ही अपने पुत्र को गोद में उठा लिया शिव पार्वती की लीला देखकर सब देवता आदि अपने अपने हाथ जोड़ सर झुका बड़ी स्तुति करते हुए बोले हे प्रभु आपने शिव शिशु के रूप से प्रगट होकर तारक का पद किया एवं बाढ़ तथा प्रबल भी अपनी समस्त सी सहित मारे गए इसी प्रकार उन्होंने गिरजा एवं स्कंध की अलग-अलग स्तुति की फिर वह प्रणाम कर चुप हो गए हे नारद शिवजी ने अपनी दया दृष्टि से सबको देखते हुए कहा मैंने केवल तुम्हारे लिए हर शगुन अवतार लेकर विवाह किया है यह स्कंद मुझे बहुत प्रिय है इसने तारा का वध किया है आप तुम अपने-अपने घरों में जाकर प्रसन्नता पूर्वक रहो हम इसी प्रकार सदैव तुम्हारे आनंद को चाहते रहेंगे क्योंकि हम सदैव भक्ति के अधीन रहते हैं तुम सब हमारा स्मरण करना नहीं भूलना यह कहकर शिवजी ने सबको विदा किया फिर इस काम के कुशलता पूर्वक लौट आने के कारण उन्होंने ब्राह्मणों को बहुत सदन दिया तथा बहुत उत्सव किया यह देखकर भैरव आदि गांड बहुत प्रसन्न हुए देवता आदि सब अपने अपने घरों में पहुंचकर आनंद के बाजा बजाने लगे तथा अपने-अपने कार्य में पूर्वक सहलग्न हो गए इन नारद हमने इस काम का वृतांत जितना किया हमें मालूम है यह कहा सुनाया यह चरित्र सब दुखों को दूर करने वाला तथा आनंद दायक है इसे सुनने से सब दुख तथा विपत्तियां नष्ट हो जाती है इस चरित्र को सुनने तथा सुनने में परलोक भी शुभ गति को प्राप्त करती है इसके सुनने से सौभाग्य बढ़ता है तथा शिव का समता प्राप्त होता है गिरजा तो अपने भक्तों के सदा सहायक हैं हे नारद अब तुम और क्या सुनना चाहते हो

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Brahma Ji said O Narada, his many such characters have given good fortune to the world. After some time, the Gods said to Skandha, O Narada, you should go and live on Mount Kailash because you all have achieved your wish. Lord agreed to this and allow Vishnu Ji and me to look for an auspicious time. After looking at the auspicious time, I requested this incident along with the Gods that the auspicious time has come. Hearing this, ISKCON became happy and went to Mount Kailash, meditating on his parents. At that time, the words of Jai Shiv Girija started being heard from all around. Arun went on the net excellent plane, listening to his praise. Behind him was Indra Rawat, riding on an elephant with a canopy. All went ahead with the Sun and the Moon chanting Jai-Jai. Reaching in front of Shiva Ji, he stood in front and greeted him humbly from a distance. Going near Shiva, he did Dandi Wat. Then Shiva Ji took her in his lap and hugged her to his heart. Girija, on hearing the news of her son's arrival, came out of the temple along with her friends. She immediately took her son in her lap. Seeing the play of Shiva Parvati, everyone was stunned. The gods etc. joined their hands and bowed their heads and said in great praise, O Lord, you appeared in the form of a child of Shiva and did the role of Taraka. Badh and Prabal were also killed along with all their wives. Similarly, he praised Girja and Skanda separately. Then he bowed down and became silent. O Narada, Shivji looked at everyone with his compassionate eyes and said, I have married by taking every auspicious incarnation only for you. This Skanda is very dear to me. He has killed Tara. You all go to your respective homes and live happily. We will always wish for your happiness like this because we always remain under devotion. All of you should not forget to remember us. Saying this, Shivji bid farewell to everyone. Then, due to the successful return of this work, he gave a lot of food to the Brahmins and celebrated a lot. Seeing this, Bhairav ​​etc. became very happy. All the gods etc. reached their respective homes and started playing instruments of joy and got fully engaged in their respective work. Narada, we have narrated as much of the story of this work as we know. This story removes all sorrows and is joy-giving. All the sorrows and troubles are destroyed by listening to this story. By listening to this story, the other world also attains auspiciousness. By listening to this, good fortune increases and one attains the equality of Shiva. The Lord is always helpful to his devotees. O Narada, what else do you want to hear now?

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