श्री शिव महापुराण कथा चतुर्थी स्कंध अध्याय 10



ब्रह्मा जी ने कहा हे नारद जब इंद्र ने तर्क को ऐसी शक्ति दिखाते हुए देखा तो क्रोधित होकर अपने बजट द्वारा उसको पृथ्वी पर गिरा दिया परंतु तारक ने तुरंत ही धरती से उठकर इंद्र को सॉन्ग मार कर पृथ्वी पर गिरा दिया यह देख देवताओं की सेवा में बड़ा आकार मचा तारक ने इंद्र को पृथ्वी पर पड़ा हुआ देख उसके पेट को अपने लत से दबाया और उसके हाथ में बाजरा छीन लिया फिर उसने इस बाजीराव से इंद्र का आक्रमण किया इंद्र किया दशा देख इस्कंध को क्रोध हो आया तथा उन्होंने अपना त्रिशूल उठाकर तारक पर मारा तारक इस त्रिशूल के तहत ना शासक धरती में उठकर आकाश में खड़ा हो गया फिर उसने प्रहार से स्कंद घायल होकर धरती पर गिर पड़े उन्होंने पुणे त्रिशूल अपने हाथ में ले लिया वह त्रिशूल विद्युत भांति चमक उठा तथा सब दिशाएं प्रकाश में पूर्ण हो गई तब तारक पुणे संग लेकर इस कांड के समूह का खड़ा हुआ उसे समय देवताओं ने हर्ष ध्वनि की फिर तारक तथा इसकांड परस्पर से युद्ध करने लगे उसे समय घर युद्ध हुआ दोनों मस्तक अकाउंट कटी जंग पीठ तथा हृदय में शास्त्र मरते थे दोनों और की सेवा ऐसा भयंकर युद्ध देखकर आश्चर्य में पड़ गई उसे समय देवताओं की आशा टूट गई और वह निराश होकर सोचने लगेगी इसका अंत कारक को नहीं मार सके इस समय आकाशवाणी हुई की है देवताओं इसका दबी तारक का वध करेगा हे नारदीश आकाशवाणी के पश्चात ही इसका हमने अपनी शान तारक की भुजाओं में मेरी परंतु तारक ने उसे पर कुछ ध्यान न देकर अपनी शान से स्तन को घायल कर पृथ्वी पर गिरा दिया इसका अन्य सचेत होकर पुणे तारक परिवार किया इसी प्रकार दोनों युद्ध करने लगी इस समय देवता चित्त होने लगे सूर्य पाक का प्रकाश चिन्ह हुआ वायु थम गई नदी पर्वत तथा वनों में भयानक शब्द होने लगे पृथ्वी कटने लगी जैसे भूकंप आ गया है तब अग्नि देवता शांत हो गई हिमगिरी मेर सूरत कोर्ट उद्यांचल आस्था चल मलाई गिरी का इलाज विद्यमान मानक विंध्याचल महिंद्रा मदिरा तथा हिमाचल आदि पर्वत भी चींटी एवं दुखी थे तब सबको इस प्रकार चिन्हित तथा दुखी देखकर स्कंद बोले है पर्वतों तुम कोई चिंता मत करो इसी प्रकार इसका में सब देवताओं को संतान देकर शिव गिरज का ध्यान किया तथा तर्क का वध करने को सॉन्ग अपने हाथ में उठाई उसे सुहाग से श्री गिरजा शंकर ने का संख्या तेज एवं बाल डाल दिया इस गाने क्रोधित होकर सॉन्ग तर्क के हृदय में मेरी तब धारक उसके आघात से निर्जीव होकर भूमि पर गिर पड़ा तर्क के शरीर में शिव जी का जो तेज था वह स्थान के शरीर में प्रवेश कर गया तारा किस्मत सी या देखकर भाग कर पटल को चली गई इस प्रकार दैत्यों को पूरी तरह से वध हुआ जिससे देवताओं को अपार प्रसन्नता हुई उसे समय सब देवता मुनि एवं गड़ा आदि प्रश्न होकर इस कांड की स्तुति करने लगी गंधर्व किन्नर अप्सरा आदि गाने बजाने लगे अनेक प्रकार के बजे बजाने तथा सब ने बहुत ही स्तुति करने की पश्चात स्कंध से यह प्रार्थना की है प्रभु हम सब की प्रतीत आपके चरणों में दिन-दिन बढ़ते हम आपसे यही वरदान मांगते हम देवताओं तथा पर्वत की ऐसी स्तुति सुनकर इस काम ने कहा हमें तुम्हारी स्तुति से प्रसन्न होकर तारक का वध किया है भविष्य में भी हम तुम्हारी दुखों में हर तरह से सहायता करेंगे इसके पश्चात इसका पर्वतों से बोले यह पर्वत तुम सब प्रतिष्ठा के योग्य हो समस्त मुनि और तपस्वी तुम्हारी सेवा करेंगे दोस्त तुम्हारे देखने मात्र से ही मनुष्य की कष्ट दूर होंगे जो तीर्थ मंदिर तथा तपोभूमि तुम पर स्थित होगी वह सब आनंद एवं सुखदायक होगी जो पर्वत हमारी माता के समान उत्पत्ति स्थान है वह तपसियों को श्रेष्ठ फल देकर सब पर्वतों का अधिपति होगा अन्य पर्वत भी शिवलिंग के समान पापों को नष्ट किया करेंगे इस काम की इस वरदान को सुनकर चारों ओर से धन्य धन्य तथा जय जयकार का शब्द गूंजने लगा

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Brahma Ji said, O Narada, when Indra saw Tarka showing such power, he got angry and threw him on the earth with his sword, but Taraka immediately got up from the earth and hit Indra with a sword and threw him on the earth. Seeing this, Taraka made a huge appearance in front of the gods. Seeing Indra lying on the earth, Taraka pressed his stomach with his sword and snatched the millet in his hand. Then he attacked Indra with this sword. Seeing Indra's condition, Iskanda got angry and he picked up his trident and hit Taraka. Under this trident, Taraka got up from the earth and stood in the sky. Then Skanda got injured by this attack and fell on the earth. He took the trident in his hand. That trident shone like electricity and all directions were filled with light. Then Taraka stood up with the group of Iskandha along with him. At that time the gods cheered and then Taraka and Iskandha started fighting with each other. At that time a fierce battle took place between both the heads, the weapons were cut in the back and heart. The gods were surprised to see such a fierce battle. At that time the hopes of the gods were shattered and She will get disappointed and start thinking that she could not kill Karak. At this time, a voice from the sky said that the gods will kill this Dabi Tarak. O Naradish. After the voice from the sky, we put our pride in Tarak's arms. But Tarak did not pay any attention to it and injured his breast with his pride and threw it on the earth. Tarak became alert and killed the family of Tarak. In this way, both of them started fighting. At this time, the gods started getting worried. There was a sign of the light of the Sun, the wind stopped. Terrible sounds started coming in the rivers, mountains and forests. The earth started cutting as if an earthquake had come. Then the fire god calmed down. Himgiri, Surat, Udayanchal, Aastha, Chal Malai Giri's treatment, existing standards, Vindhyachal, Mahindra, Madira and Himachal etc. mountains were also sad and sad. Seeing everyone marked and sad in this way, Skanda said, O mountains, you do not worry. In the same way, after giving children to all the gods, he meditated on Shiva and Girija and raised the song in his hand to kill Tarak. With great enthusiasm, Shri Girja Shankar put the song in Tarak's heart. Then the holder of it hit him. Tarak fell lifeless on the ground. The radiance of Lord Shiva that was in Tarak's body entered his body. Tara, seeing this, ran away to Patal. Thus, the demons were completely killed, which made the gods very happy. At that time, all the gods, sages and Gada etc. started praising this incident. Gandharvas, Kinnars, Apsaras etc. started singing and playing various types of instruments and after praising a lot, Skandha prayed that Lord, we all are moving closer to your feet day by day. We ask this boon from you. Hearing such praise of the gods and the mountain, this Kama said that we have killed Tarak after being pleased with your praise. In future also, we will help you in all kinds of troubles. After this, he said to the mountains. O mountain, you are worthy of all respect. All the sages and ascetics will serve you. Friend, by just seeing you, the troubles of man will be removed. All the pilgrimage temples and Tapobhoomi situated on you will be joyous and pleasurable. The mountain which is like our mother, its origin place will give the best fruits to the ascetics and will become the protector of all the mountains. He would be the ruler and other mountains would also destroy sins like the Shiva linga. Hearing this boon for this work, the words of blessed and hailing started resonating from all around.

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