श्री शिव महापुराण कथा तृतीय खंड अध्याय 46



सप्तर्षियों ने कहा है हिमाचल तुम्हें उचित है कि अब तुम अपनी बुद्धि को स्थिर कर शिवजी के साथ गिरजा का विवाह कर दो शिवजी को अपनायामत बनाकर तुम सर्वश्रेष्ठ पद को प्राप्त करोगे देखो इस समय संसार में तर्क नामक दैत्य अत्यंत मुद्राओं कर रहा है उसका वध करने के निर्मित ही शिव जी मैं विवाह करना स्वीकार किया है आज तो तुम देवताओं का कार्य पूरा करने के लिए इस कार्य में विलंब ना करो यह सुनकर हिमाचल ने हाथ जोड़कर उत्तर दिया यह शब्द ऋषि मैं आपसे एक बात पूछता हूं कि वह संसार से विरक्त वन वीडियो अद्भुत तथा संभव व्यास धारी है भला मैं ऐसे व्यक्ति के साथ अपनी कन्या का विवाह कैसे कर दूं इस प्रकार के वर्क को कन्यादान करने से पिता मरगामी होता है क्योंकि विवाह मैथिली और वेयर बराबर वाले से ही करना चाहिए इसलिए मैं शिव जी के साथ अपनी कन्या का विवाह नहीं करना चाहता हिमाचल की इस बात सुन आहुति ने उत्तर दिया है राजन वेद के अनुसार तीन प्रकार के वचन होते हैं एक ऐसा होता है जिसमें सुनने में ऊपर से जो आनंद होता है परंतु वास्तव में वह आनंद का नाश करने वाला होता है दूसरे प्रकार का चयन वचन सुनने में भी अमृत के समान होता है और उसका अंत भी शुभ होता है तीसरे प्रकार का वचन सत्य धर्म से विभूति होता है आज तो हम बीच वाले वचन का आश्रम लेकर तुझे समझते हैं कि शिवजी संपूर्ण संसार के राजा तथा सबके स्वामी है हुए निर्गुण तथा साथ गुण दोनों रूप वाले हैं कुबेर के समान धन माटी उनके सेवक हैं ब्रह्मा विष्णु तथा हर उन्हें के तीनों गानो द्वारा उत्पन्न हुए हैं ब्रह्मा जी बोले हे नारद आहुति ने पुन कहा है राजन गिरजा तो 57 कल से शिवजी की शक्ति है अतः तुम्हें उचित है कि तुम गिरजा का विवाह शिव जी के साथ कर दो ऐसा करने से तीनों लोक में तुम्हें यह प्राप्त होगा तथा संपूर्ण देवता तुम्हारे वसीभूत हो जाएंगे यदि तुमने ऐसा नहीं किया तो यह निश्चय रखो कि गिरजा तो शिवजी को अवश्य प्राप्त करेगी ही तुम्हें व्यर्थ की संताप उठाना पड़ेगा जिस प्रकार राजा रंजन ने अपनी कन्या का विवाह ब्राह्मण के साथ करके अपने वंश की रक्षा की इस प्रकार तुम्हें भी उचित है कि तुम गिरजा का विवाह शिव जी के साथ करके अपने कुल की रक्षा कर लो

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The Saptarishis have said Himachal, it is appropriate for you to stabilize your intellect and marry Girja to Shivji. By adopting Shivji, you will achieve the best position. See, at this time in the world, a demon named Tark is doing a lot of mudras. Shivji has accepted to marry him only to kill him. Today, do not delay this task to complete the work of the gods. Hearing this, Himachal replied with folded hands, “Sage, I ask you one thing that he is detached from the world and is a wonderful and capable Vyasdhari. How can I marry my daughter to such a person? By giving Kanyadan to such a person, the father dies because marriage should be done only with someone of Maithili and Ware's equals, that is why I do not want to marry my daughter to Shivji.” Hearing Himachal's words, Aahuti replied, “Rajan, according to the Vedas, there are three types of vows. One is such that there is happiness on hearing it, but in reality it destroys the happiness. The second type of vow is also like nectar to hear and its The end is also auspicious. The third type of promise is glorified by true religion. Today, we take the shelter of the middle promise and explain to you that Shivji is the king of the entire world and the master of all. He has both Nirgun and Sagun forms. Like Kuber, Dhan Maati are his servants. Brahma, Vishnu and Hari are born from his three Gunas. Brahma said, O Narad. Aahuti said again, Rajan, Girja is Shivji's power from yesterday. Therefore, it is right for you to get Girja married to Shivji. By doing this, you will get everything in the three worlds and all the gods will be under your control. If you do not do this, then rest assured that Girja will definitely get Shivji. You will have to bear useless sorrow. Just as King Ranjan protected his clan by marrying his daughter to a Brahmin, similarly, it is right for you to protect your clan by marrying Girja to Shivji.

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