श्री शिव महापुराण कथा तृतीय खंड अध्याय 44



ब्रह्मा जी बोले हे नारद गुरु के आदेश अनुसार समस्त देवताओं ने हमारे पास आकर अपना मनोरथ कहा हमने उनसे कहा कि तुम हमें शिवजी की निंदा करना सिखाते हो क्या अच्छे लोगों का यही धर्म है भला पिता की यही सेवा करना लड़कों का धर्म है शिव की निंदा सबको दुख देने वाली है यह यह विपत्ति की जड़ तथा सब प्रकार के आनंद मंगल को नष्ट करने वाले हैं मैं तुम्हारे इस विषय में कोई सहायता नहीं करूंगा तुम सब मिलकर शिव के पास जो तथा विनय करो क्योंकि पर निंदा दोनों लोगों में दुखदाई होती है यह सुनकर वह सब कैलाश पर्वत में जाकर शिव की प्रशंसा एवं स्तुति करने लगे हुए बोले ही विश्व पति हिमाचल आपका बड़ा भक्त है उसने आपको परम ब्रह्म जानकारी इच्छा की है कि आपने पुत्री आपको देखकर मुक्ति प्राप्त करें और तू आप इस प्रस्ताव को स्वीकार करें देवताओं की यह विनती सुनकर शिवजी हंस दिए तथा उन सबको अनंत प्रसन्न कर विदा किया उसके पश्चात व्यक्ति सुंदर ब्राह्मण शरीर धारण कर हाथ में श्वेत रतन की माला पहने मस्तक पर तिलक लगाए गले में साल ग्राम की मूर्ति डालें उत्तम उत्तम वस्त्र धारण कर वैष्णवी वस्त्र से विद्युत हुए अति चतुर्थता से हिमाचल के घर गए हिमाचल सब परिवार उसके आधार के लिए उठ खड़ा हुआ पार्वती ने उसे ब्रह्म रूपी की बड़ी भक्ति से पूजा की उन्होंने पहचान लिया कि यह शिव ही है ब्राह्मण ने आशीर्वाद देकर कुशल से पूछा तब हिमाचल ने उनसे पूछा यह महात्मा आप कौन हैं तथा किस कार्य से आए हैं ब्राह्मण रूपी शिवजी ने उत्तर दिया मैं ब्राह्मण हूं और पर्यटन करता रहता हूं मैं अपने गुरु की कृपा से तीनों लोक को पहचानता तथा सब बातों को जानता हूं मनुष्य तीनों लोकों में कोई काम करता है मैं उसे अपने मन में ही जान लेता हूं ब्राह्मण ने कहा है राजन तुम्हारी यह प्रबल इच्छा है की पार्वती का विवाह शिव जी के साथ हो मैं तुम्हारे भले के लिए कहता हूं कि तुम ऐसे रूपवती गुणवती कन्या को ऐसे बुरे एवं निर्गुण व्यक्तियों को क्यों देते हो उसकी सेवा संपूर्ण सृष्टि देवता मुनि दैत्य सिद्ध आदि सब करते हैं उन विष्णु के ही साथ इसका विवाह करना उचित है इस विषय में तुम अपने भाई बंधुओ से परामर्श ले लो यदि तुम यह कहोगे की पार्वती को शिव के अतिरिक्त अन्य पति स्वीकार नहीं है तो यह बात स्पष्ट है कि रोगी को कुपाठी भी भाता है क्योंकि गुणकारी औषधि रुचिकर नहीं लगती यह कहकर ब्रह्म रूप धारी शिव वहां से चल दिए उसे समय हिमाचल के नेत्रों से दुख और चिंता के आंसूट वह चले तब महीना में हिमाचल से कहा है स्वामी मेरी बात सुनो जो अंत को अच्छी खलदायक होगी आपको यही उचित है कि सब पर्वतों को बुलाकर उसे ब्राह्मण की कथन के विषय में अवश्य पूछे क्योंकि उसकी बातें सुनकर मुझको बड़ा संडे हुआ है जब तक यह बात स्पष्ट न होगी मुझे बहुत ही भाई बना रहेगा आप भी ब्राह्मण की बातों पर अच्छी तरह विचार करेंगे यदि ऐसा ना किया तो मैं यह तो घर त्याग कर वन में जा रहा हूं या 20 खाकर मर जाऊंगी मैं यह कहकर अत्यंत कुपित होकर पार्वती को साथ ले गए हो भवन में जा बैठी हिमाचल महीना का यह चरित्र देख अत्यंत दुखी हुए तथा उसके पास जाकर आने प्रकार से समझने लग उन्होंने समझते हुए कहा कि तुम इस प्रकार के को भवन में क्यों पड़ी हो फिर हिमाचल बड़े आश्चर्य में पड़कर सोने वालों की शिव ने या चरित्र कैसा किया

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Brahma Ji said, O Narad, as per the order of Guru, all the Gods came to us and told us their wish. We told them that you are teaching us to criticize Lord Shiva. Is this the religion of good people? Is it the duty of sons to serve their father? Criticizing Lord Shiva causes pain to everyone. It is the root of trouble and destroys all kinds of happiness and prosperity. I will not help you in this matter. All of you go together and request Lord Shiva because criticizing others causes pain to both the people. Hearing this, all of them went to Mount Kailash and started praising and praising Lord Shiva. They said, Vishwapati Himachal is your great devotee. He has wished to know you as Param Brahma. That your daughter should get salvation by seeing you and you should accept this proposal. Hearing this request of the Gods, Lord Shiva laughed and made them all very happy and sent them off. After that, the person took the form of a beautiful Brahmin, wore a garland of white gems in his hand, applied tilak on his forehead, put an idol of Sal gram around his neck, wore the best clothes, got electrified with Vaishnavi clothes and went to Himachal's house from the fourth position. Himachal's entire family stood up for him. Parvati saw him in the form of Brahma. He worshipped with great devotion and recognized that it was Shiva. The Brahmin blessed him and asked about his well being. Then Himachal asked him, “Oh Mahatma, who are you and for what purpose have you come?” Shiva in the form of a Brahmin replied, “I am a Brahmin and I keep travelling. I know all the things in the three worlds by the grace of my Guru. If a man does any work in the three worlds, I know it in my mind.” The Brahmin said, “O King, it is your strong desire that Parvati should marry Shiva. I am saying this for your own good. Why do you give such a beautiful and talented girl to such bad and virtueless people? The entire universe, gods, sages, demons, Siddhas etc. serve her. It is appropriate to marry her to Vishnu only. You should consult your brothers in this matter. If you say that Parvati does not accept any other husband except Shiva, then it is clear that a patient likes a bad man also because an effective medicine does not seem to be appealing to him.” Saying this, Shiva in the form of Brahma left from there. When Himachal’s eyes were filled with tears of sorrow and worry. As he left, he said to Himachal. O Swami, listen to me, which will be good and bad in the end. It is appropriate for you to call all the mountains and ask them about the statement of the Brahmin, because I have become very sad after listening to his words. Till this matter is not clear to me, I will remain very upset. You too should think well about the words of the Brahmin. If this is not done then I am leaving this house and going to the forest or I will die by eating food. Saying this, he became very angry and took Parvati with him and sat down in the house. Himachal became very sad seeing this character of Parvati and went to her and started explaining to her. After understanding, he said, why are you lying in the house like this. Then Himachal was very surprised and asked, how did Shiva do this character of the sleeping people.

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