श्री शिव महापुराण कथा तृतीय खंड अध्याय 43



ब्रह्मा जी ने कहा हे नारद भगवान सदा शिव की महिमा जान अत्यंत कठिन है उसकी महिमा करोड़ों वर्ष तक करके भी कठिनता से जानी जा सकती है वह शरीर धारण करने प्रकार की लीलाएं रास्ते हैं तथा संसार के जीवन की भांति प्रगट होकर अपने भक्तों के कार्य पूर्ण करते हैं यह नारद तुम ध्यान से सुनो जी समय शिवजी पार्वती को व देकर चले गए उसे समय उन्होंने भिक्षु का रूप धारण किया और नृत्य एवं गण में पूर्ण आभास करके एक सहस्त्र गति के ज्ञाता वन गए फिर उन्होंने अपने बाएं हाथ में श्रृंग तथा दाहिने हाथ में डमरू लिया और समस्त शरीर में सफेद भस्म लगाकर लाल वस्त्र पहने इस प्रकार से वृत बन गए उनका शरीर दिन बूढ़ों की भांति का तेरा था परंतु वाणी अत्यंत मधुर थी ऐसे अनूप रूप तथा वस्त्र आभूषणों से सुशोजित होकर श्री सदस एन जी हिमाचल पर्वत के पास गए उन्होंने अनेक प्रकार के नित्य ज्ञान तट कर्तव्य मधुर स्वर भी श्रम तथा डमरू के बाद से नगर निवासी को मोहित कर लिया उनके इस कर्तव्य को देखने के लिए चारों ओर उनसे ढूंढ के झुंड पर्वत निवासी एकत्र होकर यहां तक की सभी बूढ़े बालक स्त्री पुरुष व मधु शब्द सुनो घर से बाहर निकल आई इस प्रकार कोई भी शिव के उत्तम उत्तम लाल एवं प्रिय स्वर्ण सहित पराग द्वारा मोहित बहाल तथा अधीर होने से शेष न रहा पार्वती उस आनंद दायक स्वर में मग्न हो गई विश्व की मूर्ति का मन में ध्यान करके अत्यंत प्रसन्न हुई तथा उन्होंने अपने मन में शिव की स्तुति की तब शिवजी कृपालु होकर बैठ गए जब मैं को छेड़ आया तब वह योगी को अत्यंत प्रसन्न हो हीरा पन्ना मोती मनी आई हाल में भरकर देने लगी परंतु उसे योगी ने कुछ ना लेकर केवल पार्वती को मांगा तथा फिर नित्य करने को उठ खड़ा हुआ या सुनकर मैं ने ऑपरेशन होकर उसे बहुत डराया धमकाया तथा या इच्छा कि उसे योगी को निकाल दे जीतने में हिमाचल भी वहां पहुंचे और सब वृद्धन सुनकर क्रोधित हुए उन्होंने आज्ञा दी कि इस योगी को तुरंत यहां से निकाल दो हिमाचल के सेवक इस आदेश को पाकर उसे योगी को निकालने को उत्पन्न हुए परंतु हुए उसे योगी के प्रताप से उसके निकट भी ना जा सके उसे समय हिमाचल में मन में सोचा कि यह कौन मनुष्य है जब उन्होंने बहुत ध्यान से विचार पूर्वक योगी को देखा तो उन्होंने शिव जी को चतुर्भुज स्वरूप सिर्फ पर मुकुट कानों में कुंडल पीले वस्त्र पहने हुए तथा जो पुश पी विष्णु पर चढ़ाए जाते हैं उनसे घोषित देखा एक हिमाचल ने उसे समय दो पूज्य मूर्ति इस प्रकार अच्छी देख हां कि वह अपने को गोलों के समान घोषित किया मुरली हाथों में लिए चंद्रमा के समान उत्तम किशोर अवस्था को प्राप्त दिखाई दे रहे हैं

TRANSLATE IN ENGLISH 

Brahma Ji said, O Narada, it is very difficult to know the greatness of Lord Shiva. His greatness can be known with difficulty even after praying for millions of years. He takes a body and performs many divine acts and appears like the life of the world and completes the work of his devotees. Listen carefully to this Narada. At that time, Shiva gave birth to Parvati and went to the forest. At that time, he took the form of a monk and became a master of a thousand speeds after becoming adept in dance and dance. Then he took a horn in his left hand and a damru in his right hand and applied white ash all over his body and wore red clothes. In this way, he became a circle. His body was like that of an old man, but his voice was very sweet. Decorated with such a unique form and clothes and ornaments, Shri Sadas N Ji went to the Himachal mountain. He taught many types of daily knowledge, duties, sweet voice and the sound of the damru fascinated the residents of the city. To see this act of his, the residents of the mountain gathered in groups in search of him from all around. All the old people, children, men, women and children came out of their houses. No one could remain untouched and fascinated by Shiva's best red and favourite gold and pollen. Parvati got immersed in that blissful voice. She became very happy by meditating on the image of the universe and she praised Shiva in her mind. Then Shiva sat down mercifully. When Shiva started teasing her, she became very happy and started giving diamonds, emeralds, pearls and money to the Yogi in a full bowl. But the Yogi did not take anything from her and asked only for Parvati and then stood up to do his daily chores. On hearing this, Shiva got very scared and threatened her a lot and wanted to expel the Yogi. Himachal also reached there and all the elders got angry on hearing this. They ordered to immediately expel this Yogi from here. On receiving this order, Himachal's servants came to expel the Yogi but could not even go near him due to the brilliance of the Yogi. At that time Himachal thought in his mind that who is this man? When he looked at the Yogi very carefully and thoughtfully, he saw Shiva in a four-armed form, only with a crown, earrings in the ears, wearing yellow clothes and the flowers which are offered to Lord Vishnu, declared that he should be given time to worship him. The idol looks so good that it has declared itself as sphere shaped and holding flute in hand, it looks like moon in the perfect teenage stage.

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