श्री शिव महापुराण कथा तृतीय खंड अध्याय 42



इतना कह कर ब्रह्मा जी बोले हे नारद शिवजी इस प्रकार पार्वती का है तथा प्रेम देखकर अत्यंत प्रसन्न हुए तथा उन्होंने अपना यथार्थ स्वरूप जैसा कि नाराज जी ने उमा से कहा था धारण कर लिया मस्तक पर जाता गंगा की धारा तथा चंद्रमा विराजमान लता पर टीपू लगाए हुए कानों में कुंडल पहने गोल-गोल सुडौल कपूर तीन नेता तथा पोस्ट परम सुंदर हाथ पांव की उंगली लाल लाल इस प्रकार प्रत्येक अंक प्रत्यंग अत्यंत सुंदर एवं स्वभाव था जिस रूप का पार्वती ध्यान कर रही थी शिवजी ने इस प्रकार रूप धारण कर उसके दर्शन दिए और कहा कि है पार्वती तुमने हमारे इतने आराधना तथा तपस्या की है जितने आज तक किसी ने नहीं की है तुमको ग्रहण करके हम भी लोक में पवित्र होते हैं यद्यपि हमारा तप और स्वयं अत्यंत ग्रीन है परंतु तुम्हारे तब ने उसे भी हिला दिया हमने पहले भूतों को फिर शब्द ऋषियों को तुम्हारे पास भेजा जिससे तुम्हारे डेड तप की खती संसार भर में प्रसिद्ध हो तुम क्रोध न करो क्योंकि हमने यह सब बातें तुमसे प्रकट होने के लिए तथा परीक्षा लेने के लिए की है जैसा कि कुम्हार खड़े को संभाल के लिए ऊपर से पिता है हमने तुम्हारी भक्ति को सांसारिक रीति के कारण ही देखा है तुम समस्त संसार की माता तथा वह देवी हो जिसके चरण कमल की सेवा देवता आदि सब करते हैं तुम उत्पत्ति पालन तथा प्रत्येक के हेतु तीन गुना धरण करती हो तुम्हारे तीनों लोक को आनंद देने वाली हो तुम्हारे रूप गुण तथा प्रभाव संख्या है तुम्हारा ही अंग लक्ष्मी वाणी तथा ब्राह्मणी है तुमने मुझे सद्गुण अवतार लेते हुए जानकर गिरजा का अवतार लिया है जिस प्रकार शब्द एवं अर्थ में कोई अंतर नहीं है उसी प्रकार हमारे और तुम्हारे बीच में भी कोई अंतर नहीं है केवल सांसारिक जीवन की दृष्टि से में हम तुम दो शरीर रखते हैं परंतु वास्तव में हम एक हैं हमारे तुम्हारे चरित्र वेद भी नहीं जानते तुम्हारा तब आप पूर्ण हो गया तुम्हारा जो इच्छा हो वह हमसे मांगो यह कहकर शिवजी चुप हो गए पार्वती बोली है देव यदि आप वास्तव में मुझ पर प्रसन्न हैं तो मुझको मेरी इच्छा अनुसार वर दीजिए आप मेरे पति होकर संसार की रीति के अनुसार मेरी साथ विवाह कीजिए मेरे समस्त अपराधों को क्षमा कर आप मेरे पिता से जाकर विनती करें तथा अपनी संसारी चरित्र को दिखाएं पार्वती यह कह कर चुप हो गए तब शिव ने कहा है गिरजे तुमने जो वरदान मांगा है हम उसे स्वीकार करते हैं यह कहकर शिवाजी अंतर ध्यान हो गए तब देवताओं ने जय जयकार किया आकाश से पुष्प वर्षा हुई विष्णु में तथा अन्य देवता गिरजा के चरणों पर आकर गिर पड़े तथा हर्ष के कारण गिरजा की स्थिति करने लगी जो कोई उसे स्थिति का पाठ करता है उसके सब मनोरथ पूर्ण होते हैं उसे स्थिति को सुनकर पार्वती ने सब देवताओं से कहा है देवता हूं तुम सब अपने अपने घरों को जाकर प्रसन्न हो मैं कठोर तब किया है इसलिए देवताओं के सभी कार्य पूर्ण होंगे शिव जी ने मुझको वार दिया है कि तुम्हारा कोई कार्य शेष नहीं रहेगा यह आज्ञा सुनकर सब देवता वहां से चले गए तथा वीजा भी घर जा पहुंची उसे समय जो हर्ष हिमाचल एवं महीना को हुआ उसका वर्णन नहीं किया जा सकता हिमाचल में हर प्रकार से आनंद मंगल मनाया तथा संघ द्रव्य दान दिए यद्यपि गिरिजा ने वरदान का वृतांत किसी पर प्रार्घटना किया पर वह सब लोगों पर प्रकट हो गया

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Having said this, Brahma Ji said, O Narada, Shivji was very pleased to see Parvati's love and he assumed his true form as Narada Ji had said to Uma, the stream of Ganga flowing on his head and the moon sitting on the creeper, wearing a tippu in the ears, round and well-shaped camphor, three heads and three fingers extremely beautiful, each finger of the hand and the foot was very beautiful and natural. In this way, every digit and every part was extremely beautiful and natural. Shivji assumed this form and gave her darshan and said, O Parvati, you have worshipped and done so much penance for me, which no one has done till date. By accepting you, I too become pure in the world. Although my penance and I myself am very green, but your prayer has shaken that too. I first sent the ghosts and then the sages to you, so that the glory of your penance becomes famous all over the world. Do not be angry because I have done all these things to appear before you and to test you, as the potter is the father from above, to take care of the standing person. I have seen your devotion only because of the worldly ways. You are the mother of the whole world and that You are the Goddess whose feet are served by all the Gods etc. You are the creator and maintainer of everything three times. You give joy to all the three worlds. Your form, qualities and influence are your parts. Lakshmi, speech and Brahmani are yours. You have taken the form of Girja knowing me to be the incarnation of virtue. Just as there is no difference between words and meaning, similarly there is no difference between us and you. Only from the viewpoint of worldly life, we have two bodies, but in reality we are one. Even the Vedas do not know our character. Then your wish is fulfilled. Ask us for whatever you wish. Saying this, Shivji became silent. Parvati said, “O Lord, if you are really pleased with me, then give me a boon according to my wish. You become my husband and marry me according to the customs of the world. Forgive all my crimes and go and request my father and show your worldly character. Parvati became silent saying this. Then Shiv said, Girja, we accept the boon you have asked for. Saying this, Shivaji went into deep meditation. Then the Gods hailed and flowers rained from the sky. Vishnu and other Gods came to the feet of Girja. They fell down and due to joy the Girija started doing the stupa. Whoever recites that stupa, all his wishes get fulfilled. On hearing that stupa, Parvati said to all gods, I am a god, all of you go to your homes and be happy. I have done this hard, therefore all the works of the gods will be completed. Shiv Ji has blessed me that none of your work will remain pending. On hearing this order, all gods left from there and Visa also reached home. The joy that Himachal and Mahina felt at that time cannot be described. Himachal celebrated with joy and auspiciousness in every way and the Sangh donated wealth. Although Girija prayed the story of the boon to someone, it was revealed to everyone.

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