इतना सुनकर नाराज जी ने ब्रह्मा जी से पूछा ब्रह्मा जी बोले हे नारद शिवजी ने सप्त ऋषियों के चले जाने के पश्चात ब्राह्मण का रूप धारण कर किया तथा ब्रह्मचारियों के समान दंड लेकर मस्तक में त्रिकुंड लगाया गले और हाथ में रुद्र के माला पहनी फिर ऐसे स्वरूप धारण करवे वहां पहुंचे जहां पार्वती तब कर रही थी पार्वती ने उन्हें प्रणाम किया तथा कुशल के पश्चात पूछा कि तुम कौन हो और कहां से आए हो यह सुनकर ब्राह्मण रूपी शिवजी ने ठंडी सांस लेकर कहा हम ब्रह्म मछारियों का प्रीत धारण किए सृष्टि की भलाई के लिए इधर-उधर घूमते हैं तुमने हमको धर्म निष्ठा जानकर हमारा जो आदर और सत्कार किया इससे हमको बड़ी प्रसन्नता हुई है अब हम तुमसे पूछते हैं कि है देवी तुम कौन हो और किस उद्देश्य से आई हो श्री पार्वती जी ने यह सुनकर कुछ सोचकर अपनी एक सखी से संकेत किया उसने आदि से आनंद तक सब वृतांत जिस प्रकार नाराज जी ने आकर भविष्यवाणी की थी की पार्वती का विवाह शिव से होकर का सुनाया उसने सुनकर ब्राह्मण के पश्चाताप करके कहा है पार्वती तुम हमसे यह हंसी क्यों करती हो तुम स्वयं हमको उत्तर क्यों नहीं देती पार्वती बोल ही ब्राह्मण मेरी सखी ने आपसे जो कुछ कहा है वह सब सत्य है मैं यह चाहती हूं कि मेरा विवाह शिव के साथ हो यह सुनकर ब्राह्मण बेसधारी शिव जी ने शब्द जल फ्लेट हुए कहा हे गिरजे तुम जो चाहे शो करो हमको उससे क्या मतलब परंतु तुमने मेरा आधार और सत्कार किया है इसलिए मुझसे बिना कहे नहीं रहा जाता इसके अतिरिक्त जानबूझकर किसी बात को छिपाना भी बहुत बड़ा पाप है है पार्वती तुम हिमाचल की पुत्री होकर इतनी मूर्ख क्यों हो गई हो जो आपने ऐसे कोमल शरीर को तपस्या द्वारा भस्म कर रही हो तुम इस प्रकार अपनी सुंदरता को क्यों नष्ट करना चाहती हो यह भाग्य की बात है कि तुम विष्णु एवं ब्रह्मा को छोड़कर शिव के लिए तब करती हो क्या तुम्हारे लिए शिव के समान अशोक तथा अनुचित पति चाहिए उसकी चाल ढाल तो संसार से अलग है देखो विष्णु आदि सर्वप्रथम संपन्न कुलवंत तथा प्रतिष्ठित है परंतु शिव में ऐसी कोई बात नहीं है वह माता-पिता से हैं तथा छपरा एवं भरम शरीर से लपटे रहते हैं वह बैलों पर सवार होकर नाना प्रकार के बीच एवं भांग का सेवन करते हैं उमेश सिंह जी तथा डमरू हाथ में लिए हुए भूत प्रेत के साथ लीला करते हैं तथा वन में अकेले उदास बैठे रहते हैं उन्होंने कामदेव को जो स्त्रियों को प्रिया है दाल दिया है नारद ने भी तुमको उसके अवगुण नया बढ़कर इस प्रकार चला है कि फिर भारत का तो यह स्वभाव है कि वह संपूर्ण सृष्टि में इसी प्रकार के उपवास करते फिरते हैं उन्होंने दक्ष प्रजापति के सब लड़के नष्ट कर डाले तथा हिरण कश्यप शिशु के लड़के के साथ कितना चल किया हुई प्रगति में साधु बनकर सबको चला करते हैं तुम उन सब बातों को भूल कर समझ से कम को तथा अपना काम करो अब भी कुछ नहीं बिगड़ा है तुम स्वर्ण जटिल अंगूठी छोड़कर कांच को क्यों ग्रहण करती हो गंगाजल छोड़कर कुएं के जल की क्यों इच्छा करती हो
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On hearing this, Naraz Ji asked Brahma Ji. Brahma Ji said, O Narada, after the departure of the Saptarshis, Shiv Ji took the form of a Brahmin and took a staff like the brahmacharis, put a trikund on his head, wore garlands of Rudra in his neck and hand. Then assuming this form, he reached where Parvati was staying. Parvati bowed to him and after inquiring about his well-being, asked who he was and from where he had come. On hearing this, Shiv Ji in the form of a Brahmin took a deep breath and said, I have the love of Brahma Machharis and roam around for the welfare of the universe. Knowing my devotion to religion, the respect and hospitality you have shown me has made me very happy. Now I ask you, O Goddess, who are you and for what purpose have you come? On hearing this, Shri Parvati Ji thought for a while and signaled one of her friends. She narrated the entire story from the beginning till the end, the way Naraz Ji had come and predicted that Parvati would get married to Shiv. On hearing this, the Brahmin repented and said, Parvati, why do you laugh at me? Why don't you answer me yourself? Parvati speak, Brahmin, whatever my friend told you. All that is true, I want to get married to Shiva. Hearing this, the Brahmin-like Shiva ji got stunned and said, O Goddess, you can do whatever you want, what do I care about it, but you have supported and honoured me, so I cannot stop myself from saying anything. Besides, hiding something intentionally is also a big sin. Parvati, being the daughter of Himachal, why have you become so foolish that you are burning such a soft body by penance. Why do you want to destroy your beauty in this way? It is a matter of fate that you are leaving Vishnu and Brahma and marrying Shiva. Do you need a cruel and inappropriate husband like Shiva? His behaviour is different from the world. See, Vishnu etc. are rich, noble and respected, but there is no such thing in Shiva. He is from his parents and is covered with lust and illusion. He rides on bulls and consumes different types of bees and bhang. Umesh Singh ji and holding a damru in his hand, he plays with ghosts and spirits and sits alone and sadly in the forest. He has killed Kaamdev, who is the favourite of women. Narada has also given you his demerits and has increased it in such a way that it is the nature of Bharat that he keeps on fasting in this type of way in the entire universe. He destroyed all the sons of Daksh Prajapati and did so much work with the son of Hiran Kashyap Shishu that he becomes a sage and leads everyone in his progress. You forget all those things and do your work with understanding, nothing has been lost even now, why do you accept glass instead of the gold intricate ring? Why do you desire well water instead of Ganga water?
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