श्री शिव महापुराण कथा तृतीय खंड अध्याय 41 का भाग 2


इतना कह कर शिवजी ने पार्वती के स्वरूप की प्रशंसा करते हुए कहा है पार्वती देखो तुम्हारे इस सुंदर मुख कमल और आसन के चंद्रमा हूं की क्रांत विद्यमान है तुम्हारा मुख्य चंद्र सुंदरता की खान के समान सुंदर है तुम इस प्रकार अपने सुंदर शरीर को व्यर्थ ही क्यों नष्ट करती हो तुम्हारा विवाह के लिए केवल विष्णु ही तुम उन्हीं से विवाह करो हम तुमसे कहते हैं यह बात उचित नहीं है तुम संभल जाओ इस प्रकार ब्राह्मण रूपी रूप धारी शिवजी चल की बात का कर खेत सहित तथा रुके हो अलग बैठ गए पार्वती ने शिव जी के निंदा सुन मन में उपित हो बार-बार खेत किया उसे समय के पश्चात पार्वती मां ही मां बोली मैं इस व्यक्ति को ब्राह्मण जानकर धोखा खाया है यदि मैं पहले से इस ब्राह्मण की को दुष्ट तथा शिव की इतनी निंदा करने वाले जानी तो चुप रही रहती इसने वेद के विरुद्ध शिव जी की इतनी निंदा की है कि यदि आप मैं उसको उत्तर नहीं देती हूं तो शिव निंदा सुनने का पाप मुझे लगेगा यह विचार कर पार्वती ने कहा है ब्राह्मण तू हमको धोखा क्यों देता है तूने तो वेद के विरुद्ध शिव जी की अत्यंत निंदा की है तुमको ब्राह्मण होने के नाते प्राण दान नहीं दिया जा सकता है आप मैं वेद पुराण तथा इस मूर्ति के वचन के अनुकूल शिवजी का वर्णन करती हूं तो आप तक शिव जी के घोड़े को नहीं जान पाया है इसलिए तेरा वचन वेद के विरुद्ध आए यदि तू शिव को जानता तो वेद के विरोध कभी ऐसा वचन ना कहता शिव की समस्त अशोक सामग्री शुभ ही है कोई भी देवता उसे श्रेष्ठ नहीं है वह सब विधाओं के ज्ञाता पूर्ण ब्रह्म आलेख जगदीश उन्होंने ही ब्रह्मा को अपने स्वास्थ्य मार्ग से वेद किया वहीं शिव सब का आदि मध्य एवं अंत है उनका तेज एवं प्रताप आज तक कोई नहीं जाना पाया वह अपने भक्तों को तीनों लोक प्रदान करते हैं उनकी सेवा द्वारा ही मनुष्य मृत्यु पर विजय प्राप्त करते हैं शिवजी की निंदा करने से मनुष्य बहुत दुख प्राप्त करता है जो दुष्ट एवं अनौपचारिक ब्राह्मण शिव के विरुद्ध है हुए करोड़ों जन्म तक दरिद्र रहा करते हैं है ब्राह्मण उन्हें शिव की निंदा करके अपने लिए नर्क का मार्ग खोला है तेरा आधार करने से कोई फल प्राप्त नहीं हुआ वरना मेरे समस्त पूर्ण नष्ट हो गए आप तो उसे गिरा अपने घर को चला जा क्योंकि मेरा मन शिव जी में लग रहा है ब्राह्मण या बात सुनकर हंस तथा मन में पार्वती की प्रशंसा करके चाहा कि कुछ कहे परंतु पार्वती ने ब्राह्मण की इच्छा समझा अपनी सहेली से कहा अब इस स्थान को छोड़कर कहीं और चलो क्योंकि यहां रहने से बड़ा दुख होता है इस ब्राह्मण में शिव की निंदा करके हमको दुख पहुंचा है शिव की निंदा करने वाले को आंख से ना देखना ही उचित है इसके व्यर्थ की बात सुनने से महा पाप होगा जो शिव निंदा को आंखों से देख ले उसको तुरंत स्नान कर डालना चाहिए और यदि वह चले तो उसकी जीहा को काट डाले नहीं तो अपने दोनों कान बंद कर वहां से उठ जाना चाहिए वेद भी यही कहते हैं आज तो आप तुम देरी न करो उठो किसी और वन में चल कर रहो अन्यथा जाकर तब करूंगी यदि मेरा मिश्रा दिन है तो शिवजी मुझे अवश्य प्रसन्न होंगे किसी के धोखा देने से क्या होता है शिव जूते केवल प्रेम से ही प्रसन्न होते हैं मैं गुरु से सुना है कि तब करने में इसी प्रकार के विद्यमान सामने आते हैं उन्हें धोखा खाकर जो तब से विमुख हो जाते हैं वह मूर्ख है और तब का फल प्राप्त नहीं कर पाते जो विभिन्नता पूर्वक धोखे से बचने रहकर ताप में संलग्न रहते हैं वह ही सिद्ध प्राप्त करते हैं शिवजी अपने भक्तों का पालन करने वाले हैं पहले तो वह अपने भक्तों की परीक्षा लेते हैं फिर प्रसन्न हो जाते हैं यह कहकर पार्वती अपने साथियों के साथ वहां से चली गई

TRANSLATE IN ENGLISH 

After saying this, Shivji praised Parvati's form and said, Parvati, look at your beautiful face, lotus and seat, the moon's glow is present, your main moon is beautiful like a mine of beauty, why do you waste your beautiful body like this, Vishnu is the only one for your marriage, you should marry him, we tell you, this is not right, you should be careful, in this way Shivji, who was in the form of a Brahmin, stopped and sat separately with the field, Parvati, hearing Shivji's slander, became upset in her mind and repeatedly slandered him, after some time, Parvati said, I have been deceived by knowing this person to be a Brahmin, if I had known this Brahmin to be evil and one who slanders Shiv so much, then I would have remained silent, he has slandered Shiv Ji so much against the Vedas that if I do not answer him, then I will be guilty of listening to Shiv slander. Thinking this, Parvati said, Brahmin, why do you deceive me, you have slandered Shiv Ji a lot against the Vedas, you cannot be given life being a Brahmin, I am following the words of Vedas, Puranas and this idol. When I am describing Shiva, you have not been able to know Shiva's horse, that is why your words are against the Vedas. If you knew Shiva, you would never have said such a thing against the Vedas. All the wealth of Shiva is auspicious. No god is superior to him. He is the knower of all the arts, the complete Brahma, Alekh Jagdish. He gave Vedas to Brahma through his path. Shiva is the beginning, middle and end of everything. No one has been able to know his glory and majesty till today. He gives all the three worlds to his devotees. It is by serving him that man conquers death. By criticizing Shiva, man gets a lot of sorrow. The evil and unprincipled Brahmins who are against Shiva remain poor for millions of births. Brahmins have opened the way to hell for themselves by criticizing Shiva. You did not get any fruit by criticizing him, otherwise all my wealth would have been destroyed. You drop it and go to your house because my mind is in Shiva. Brahmin laughed after listening to this and praised Parvati in his mind and wanted to say something, but Parvati understood the desire of the Brahmin and said to her friend, now leave this place and go somewhere else because living here causes a lot of sorrow. By criticizing Shiva in Brahmin, we have been hurt. It is better not to look at the person criticizing Shiva. Listening to his useless talks will be a great sin. The one who sees someone criticizing Shiva should immediately take a bath and if he does, his tongue should be cut off. Otherwise, both your ears should be closed and you should leave from there. Vedas also say the same thing. Today, you should not delay. Get up and go to some other forest. Otherwise, I will go and do it. If it is my day, then Shiva will definitely please me. What happens if someone deceives me? Shiva is pleased only with love. I have heard from the Guru that similar things come up while doing this. Those who turn away from it after being deceived are fools and are unable to get the fruits of that. Those who remain engaged in meditation by avoiding deception in different ways, only they achieve Siddhi. Shiva is the protector of his devotees. First, he tests his devotees and then he becomes pleased. Saying this, Parvati left from there with her companions.

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ