हे नारद गिरजा की बात सुनकर मुनियों ने हंसते हुए इस प्रकार कहा है गिरजे तुम नाराज की बातों पर विश्वास कर बैठी इससे बढ़कर मूर्खता और क्या होगी तुम्हें यह पता नहीं है कि नारद की बातों से अनेक नगर तथा गांव गुर्जर चुके हैं इस संबंध में हम एक इतिहास सुनते हैं ब्रह्मा जी के पुत्र दक्ष प्रजापति में 10 सहस्त्र पुत्रों को उत्पन्न किया था वह सब बड़े गुणवान रूपवान बलवान तथा बुद्धिमान थे दक्ष ने उसे सृष्टि उत्पन्न करने की आज्ञा दी परंतु इस समय नारद ने उसके पास पहुंचकर ऐसा उपदेश किया कि वह संसार त्याग कारवां में चले गए फिर कभी लौटकर नहीं आए इसके उपरांत दक्ष ने फिर उतने ही पुत्र उत्पन्न के परंतु वह भी नारद के उपदेश से इस स्थान पर जा पहुंचे जहां पहले उनके भाई गए थे यह गति देखकर दक्ष ने नारद को यह श्राप दिया कि तुम एक मुहूर्त से अधिक किसी स्थान पर नहीं ठहर सकोगे इसके अतिरिक्त नारद ने राजा चित्र केतु के घर को भी नष्ट कर दिया और उन्होंने हिरण कश्यप शिशु का भी सर्वस्व नष्ट कर दिया हम भारत को बहुत अच्छी तरह जानते हैं क्योंकि बहुत दिनों तक हम उनके साथ रहे हैं इसलिए हम यह कहते हैं कि तुम नारद के बुलावे में आकर बहुत बड़ी भूल कर रही हो हे गिरजे इसके अतिरिक्त जिन शिवजी को प्राप्त करने के लिए तुम या घोर तपस्या कर रही हो उसके संबंध में भी हम तुम्हें यह पता देना चाहते हैं कि हुए निर्गुण अशोक निर्जल तथा बड़ा देश धारण करने वाले हैं ना तो उसके कुल परिवार का कोई पता है और ना उनके पास सेवक आदि है तुम्हें उसे भाग नारद ने मोहित करके तुम्हारे बुद्धि को भ्रष्ट कर दिया है भला ऐसा पति पाकर तुम्हें कौन सा सुख मिल सकेगा तुम इस बात पर भली भांति विचार करो तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि हमारा कथन सत्य है अथवा नहीं शिवजी ने पहले दक्ष की पुत्री के साथ भी विवाह किया था परंतु जब हुए उसका निर्माण नहीं कर सके तो उसे मिथ्या दोष लगाकर त्याग दिया तब से हुए अपने आप में ध्यान लगाकर निश्चित बैठे रहते हैं भला जो आदमी एकांत में ही रहना पसंद करता है उसके साथ किसी स्त्री का विवाह किस प्रकार हो सकता है हमारा तो यह कहना है कि अब भी कुछ नहीं बिगड़ा है तुम अपना है छोड़ कर घर चली जाओ यदि तुम अपने लिए श्रेष्ठ वर्ग को नहीं चाहती हो तो हम तुम्हें यह भी पता देते हैं कि विष्णु से अधिक श्रेष्ठ और कोई नहीं है वह सब देवताओं के स्वामी है और तुम्हारे व बनने के सर्वथा योग्य है हे नारद सप्त ऋषियों की बात सुनकर पार्वती ने उन्हें उत्तर देते हुए कहा है ऋषियों आपका कहना सत्य हो सकता है परंतु मेरे हाथ में किसी प्रकार की कमी नहीं आएगी मैं तो इस राज में जाती रहूंगी जिस अब तक गति आई हूं मेरा शरीर पहाड़ से उत्पन्न हुआ है आता है उसमें पहाड़ की जड़ता प्रत्यक्ष देखने में आती है मैं नारद जी को अपना गुरु स्वीकार कर चुकी हूं अतः उनकी बात को किसी प्रकार नहीं डालोगी क्योंकि जो लोग गुरु के वचन को मिथ्या समझते हैं वह कल को भर भटकते रहने पर भी कभी ईश्वर को प्राप्त नहीं कर पाते मैं आपकी इस बात को मान लेती हूं कि विष्णु में सब गुना भरे हुए हैं तथा शिवजी अवगुणों की खान है परंतु आपको यह भी अवश्य बता देना चाहती हूं कि शिवजी निर्गुण है और उन्हें अपने भक्तों की प्रसन्नता के निर्माता ही शरीर धारण किया है वह अपनी शक्ति और ऐश्वर्या का विज्ञापन नहीं करना चाहते हैं इसलिए वह परमहंस गति में रहकर आहूतों के समान दिखाई देते हैं वस्त्र और आभूषण को पहनना तो साधारण मनुष्य का काम है शिवजी तीनों गुना से रहित तथा सांप के स्वामी है वस्तुएं इन वस्तुओं को स्वीकार नहीं करते मैंने अपने गुरु की कृपा से शिवजी को भली भांति पहचान लिया और इसलिए हुए नीचे पूर्वक करती हूं किया तो मैं शिव जी के साथ विवाह करूंगी अन्यथा जन्म भर कुंवारी रहूंगी आज तू आप मुझे इस प्रकार का उपदेश देने की कृपा ना करें हे नारद इतना कह कर गिरिजा के सब करिश्मा को प्रणाम किया तदुपरांत और पहले ही भांति शिव जी के ध्यान में मग्न हो गए गिरजा के उसे दिन निश्चय को देखकर सप्त ऋषि जय जयकार करने लगे तथा आशीर्वाद देते हुए बोले ही गिरजे तुम परम धन्य हो तुम्हें शिवजी अवश्य प्राप्त होंगे इतना कहकर वह गिरजा को प्रणाम करने के उपरांत शिव जी के पास चले गए कैलाश पर्वत पर पहुंचकर उन्होंने शिवजी से कहा हे प्रभु हमने गिरजा की बहुत प्रकार से परीक्षा ली तथा आपने वह जल द्वारा चलने का भी बहुत पर्याप्त किया परंतु निपट हुए हमारे धोखे में आए और ना उन्हें आपके चरणों से अपने ज्ञान को ही हटाया वस्तु आपको उचित है कि आप उन्हें वहां जाकर वरदान दें इतना कह कर सबूत सी अपने स्थान को चले गए
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O Narada, after listening to Girja, the sages laughingly said, Girja, you believed in the words of Narada, what can be more foolish than this, you do not know that many cities and villages have been transformed by the words of Narada. In this regard, we hear a history that Brahma ji's son Daksha Prajapati had produced 10 thousand sons, all of them were very talented, handsome, strong and intelligent. Daksha ordered him to create the world, but at this time Narada reached him and preached him in such a way that he renounced the world and went in a caravan and never returned. After this, Daksha again produced the same number of sons, but he also reached the place where his brother had gone earlier due to the preaching of Narada. Seeing this, Daksha cursed Narada that you will not be able to stay at any place for more than a moment. Apart from this, Narada also destroyed the house of King Chitra Ketu and he also destroyed everything of Hiran Kashyap child. We know India very well because we have lived with them for a long time. We say that you are making a big mistake by coming to Narada's call, O Girja. Besides this, we also want to tell you about the Shivji for whom you are performing severe penance, that he is Nirgun Ashok Nirjal and holds a big country. Neither do we have any information about his family nor does he have any servants etc. Narada has corrupted your mind by luring him. What happiness will you get by getting such a husband? Think about this well and it will become clear whether our statement is true or not. Shivji had earlier married Daksha's daughter also, but when he could not create her, he left her by accusing her of falsehood. Since then he keeps sitting in meditation on himself. How can a woman marry a man who likes to live in solitude? We say that nothing has been lost even now. You leave yours and go home. If you do not want the best class for yourself, then we also tell you that there is no one better than Vishnu. He is the lord of all the gods and is completely worthy of becoming yours. O Narada, after listening to the words of the seven sages, Parvati replied to them saying, sages, what you say may be true but I will not suffer any loss. I will keep going to this kingdom. The way I have come till now, my body has originated from a mountain and in it the inertia of the mountain is clearly visible. I have accepted Narada as my Guru, hence I will not ignore his words in any way because those who consider the words of the Guru to be false, they can never attain God even after wandering for a long time. I accept your words that Vishnu is full of all the qualities and Shivji is a mine of defects, but I also want to tell you that Shivji is Nirgun and he has taken a body only to make his devotees happy. He does not want to advertise his power and opulence, therefore he stays in Paramhansa Gati and looks like a demon. Wearing clothes and ornaments is the work of an ordinary man. Shivji is devoid of all the three qualities and is the lord of snakes and things. I do not accept these things. With the grace of my Guru, I have recognized Shiv Ji very well and that is why I do this with great respect. If I do this then I will marry Shiv Ji, otherwise I will remain a virgin all my life. O Narada, please do not give me this kind of advice today. Saying this, he bowed to all the miracles of Girija. Thereafter, he got immersed in the meditation of Shiv Ji as before. Seeing Girija's determination on that day, the Saptarshis started hailing her and while blessing her said, O Girija, you are extremely blessed, you will definitely get Shiv Ji. Saying this, after bowing to Girija, he went to Shiv Ji. Reaching Mount Kailash, he said to Shiv Ji, O Lord, we tested Girija in many ways and you also showed him how to walk on water, but you were deceived by us and he did not even remove his knowledge from your feet. It is appropriate that you go there and bless him. Saying this, he went to his place as a proof.
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