श्री शिव महापुराण कथा तृतीय खंड अध्याय 32 का भाग 2



यह नारद देवताओं की प्रार्थना सुनकर मैं बहुत विचार किया परंतु शिवजी की माया को किसी प्रकार नहीं समझ सका तब मैं उन सबको अपने साथ लेकर विष्णु जी के पास जा पहुंचा विष्णु जी भी शिव जी की माया को जान सकेंगे तब हम सब लोग शिव जी के पास पहुंचे और स्तुति प्रणाम करके प्राप्त उसने कहने लगे यह प्रभु हम सब आपकी शरण में आए हैं आप सबसे श्रेष्ठ तथा सबके स्वामी है वस्तु आप कृपा करके हमारे दुख को दूर कीजिए हमारी प्रार्थना सुनकर शिवजी ने हंसते हुए कहा है देवताओं तारक द्वारा कठिन तपस्या की जाने के कारण ही सब लोगों की यह दशा हो रही है वह देवताओं को दुख देने के लिए उग्रता कर रहा है इसलिए हम उसे वरदान देने में संकोच करते हैं शिव जी के मुख से यह वचन सुनकर देवताओं ने अत्यंत अराज्य में भरकर कहा है प्रभु आप तर्क को वरदान अवश्य दे दे क्योंकि उसे वरदान देने पर हम इतनी जल्दी नष्ट नहीं होंगे जितने इस समय अग्नि के कारण भस्म हुए जाते हैं तब शिवजी बोल ही देवताओं क्या तुम में से कोई भी इतना बलवान नहीं है जो अपनी माया द्वारा तारक की तपस्या को नष्ट कर दे यह सुनकर विष्णु जी ने अहंकार में भरकर उत्तर दिया है प्रभु यदि आप मुझे आज्ञा दें तो मैं तारा की तपस्या को भंग कर सकता हूं विष्णु जी की आवाज सुनकर शिव जी ने उन्हें आज्ञा दे दी तब विष्णु जी मोहिनी रूप धारण करके तर्क के पास जा पहुंचे परंतु शिव की लीला के कारण वह तर्क पर कुछ भी प्रभाव नहीं डाल सके और असफल मनोरथ होकर लौट आए इतनी कथा सुनकर ब्रह्मा जी ने कहा यह नारद शिव जी की माया अत्यंत बलवान है इसके कारण विष्णु जी मोहिनी रूप धारण करके भी शिव भक्ति तर्क की तपस्या भ्रष्ट करने में असमर्थ रहे अस्तु विष्णु जी ने शिव के पास जाकर यह प्रार्थना की है प्रभु धारा की तपस्या भंग करने में माया सफल रहा हूं अस्तु आप उसे वरदान दे दीजिए यह सुनकर शिवजी तारक का वरदान देने के लिए उसके पास जा पहुंचे और उसे सुनते हुए बोले ही तर्क मैं तुम्हारी तपस्या से अत्यंत प्रसन्न हूं तुम जो चाहे वह वरदान मांग लो यह सुनकर तारक में अत्यंत प्रसन्न हो पहले तो शिव जी को प्रणाम किया और फिर हाथ जोड़कर यह कहा यह प्रभु मैं आपकी अतिरिक्त अन्य किसी के हाथ में ना मारूंगा और करोड़ों वर्षों तक तीनों लोक का राज करूंगा यह वरदान आप मुझे दीजिए शिवजी ने तर्क किया प्रार्थना स्वीकार कर ली दादू प्रांत हुए उसे इच्छित वरदान दे कैलाश पर्वत पर लौट आए तर्क भी शिवजी से वरदान प्राप्त कर अत्यंत प्रसन्न हो अपने घर को लौट गया

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After listening to the prayers of the gods, Narad thought a lot but could not understand the illusion of Lord Shiva. Then I took them all with me and went to Lord Vishnu. Vishnu ji will also be able to understand the illusion of Lord Shiva. Then we all reached Lord Shiva and after praising and bowing down, they said, “O Lord, we all have come to your shelter. You are the best and the master of all. Please remove our sorrows by being kind to us.” Hearing our prayers, Lord Shiva said smilingly, “Gods, because of the difficult penance done by Tarak, all the people are in this condition. He is being aggressive to give pain to the gods. That is why we hesitate to give him a boon.” Hearing these words from the mouth of Lord Shiva, the gods got very angry and said, “Lord, you must give a boon to Tarak because by giving him a boon, we will not be destroyed so soon as we are being burnt to ashes due to fire at this time.” Then Lord Shiva said, “Gods, is there no one amongst you so strong that he can destroy the penance of Tarak by his illusion?” Hearing this, Vishnu ji replied arrogantly, “Lord, if you give me permission, I can break the penance of Tarak.” On hearing Vishnu's voice, Shiv gave him permission. Then Vishnu assumed the form of Mohini and went to Tarak, but due to Shiva's leela, he could not have any effect on Tarak and returned with his wish unfulfilled. On hearing this story, Brahma said, "Narad, Shiv's Maya is very strong. Due to this, even after assuming the form of Mohini, Vishnu was unable to spoil the penance of Shiv Bhakti Tarak. So Vishnu went to Shiv and prayed, "Lord, Maya has been successful in spoiling Dhara's penance. So please give him a boon." On hearing this, Shiv went to him to give Tarak a boon and while listening to him said, "Tarak, I am very pleased with your penance. You can ask for any boon you want." On hearing this, Tarak was very pleased. First he bowed to Shiv and then with folded hands said, "Lord, I will not die in the hands of anyone else except you and I will rule the three worlds for millions of years. Please give me this boon." Shiv accepted Tarak's prayer. Dadu agreed and gave him the desired boon. Returned to Mount Kailash. Tarak also returned to his home very happy after receiving the boon from Shiv.

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