इतनी कथा सुना कर सूद जी ने कहा हे सौका नदी ऋषियों ब्रह्मा जी के मुख से यह वृत्तांत सुनकर नारद जी ने संयम युक्त हो या प्रार्थना की है पिता आप मुझे तर्क देते द्वारा देवताओं को दुख देने कामदेव के भस्म होने तथा शिव जी द्वारा गिरजा को पुनः ग्रहण करने का वृतांत विस्तार पूर्वक सुनने की कृपा करें ब्रह्मा जी बोले ही पुत्र तुम ध्यान देकर इस कथा को सुनो कश्यप की द्वितीय नामक स्त्री के गर्भ से हिरण कश्यप शिशु तथा हिरण यश नामक दो अत्यंत बलवान तथा तेजस्वी पुत्र उत्पन्न हुए उन्होंने अपने शक्ति द्वारा तीनों लोक को वश में कर लिया उसके अत्याचारों के कारण देवताओं को स्वप्न में भी आनंद नहीं मिलता था तब विष्णु जी ने अवतार लेकर हिरण कश्यप शिशु को मारा तथा 12 अवतार लेकर हिरण्याक्ष का वध किया उसे समय सब देवता प्रसन्न होकर विष्णु जी की स्तुति करने लगे हे नारद अपने दोनों पुत्रों की मृत्यु से द्वितीय को बहुत दुख हुआ उसने कश्यप के पास जाकर सब समाचार का सुना तदुपरांत उसे ने अपने पति की अत्यंत सेवा करके उसे आनंद प्रदान करने वाले एक पुत्र की मांग की द्वितीय की सेवा से प्रसन्न होकर कश्यप ने उनसे यह कहा है द्वितीय तुम एक सहस्त्र वर्ष तक तपस्या करो यदि तुम्हारा तब सिद्ध हुआ हो तो तुम्हें अवश्य ही भगवान पुत्र की प्राप्ति होगी यह सुनकर द्वितीय ने तब करना आरंभ कर लिया जब इंद्र ने द्वितीय को इस प्रकार कब करते देखा तो हुए पास जाकर द्वितीय की सेवा करने लगे द्वितीय ने उसकी सेवा से प्रसन्न होकर पूछा है इंद्र तुम मेरी इतनी सेवा की इच्छा से कर रहे हो तुम मुझे अपनी अभिलाषा बदलाव तो मैं उसे अवश्य पूर्ण करूंगी यह सुनकर इंद्र ने उत्तर दिया है माता हम अपनी सेवा के बदले तुम से यही वर मांगते हैं कि जिस पुत्र के लिए तुम ऐसा कठिन तक कर रहे हो वह जब जब ले तो हमारे भाइयों के समान हमारा परम हितेषी हो और हम देवताओं का दुख दूर किया करें यह बात सुनकर द्वितीय ने अत्यंत दुखी होकर कहा है इंद्र तुमने चल करके मुझे ठग लिया है फिर भी मैं तुम्हारी इच्छा पूर्ण करुंगा इतन कहकर द्वितीय ना उग्र तप करने लगी हे महाराज एक दिन आश्चर्यजनक की द्वितीय सोते समय अशुद्ध हो गई उसे समय इंद्र छिद्र के मार्ग द्वारा उसके गर्भ में प्रवेश कर गए वहां पहुंचकर उन्होंने द्वितीय के गर्भ में जो बालक था उसके साथ खंड कर डालें परंतु इतना पर भी जब वह बालक नहीं मारा और एक स्थान पर साथ स्वरूप में विभाजित हो गया तब इंद्र ने उसमें से प्रत्येक खंड के साथ-साथ टुकड़े पर दिए किस प्रकार हुए सब 49 टुकड़े हो गए परंतु वह सब टुकड़ों मृत्यु को प्राप्त न होकर अलग-अलग बालक के रूप में जीवित बने रहे यह देखकर इंद्र द्वितीय के गर्भ भाषण से बाहर निकल आए किसी बीच द्वितीय की नींद टूट गई तब उन्होंने अत्यंत चिंतित होकर इंद्र से पूछा कि कुछ देर पूर्व मेरे गर्भ में किसने प्रवेश किया था द्वितीय की बात सुनकर इंद्र ने उन्हें स्थान का समय उसे घटना को सुनकर द्वितीय को अत्यंत प्रसन्नता हुई जब वह 49 खंड बालक के रूप में प्रगति हुई तब उनका नाम मारुति गाड़ी अर्थात वायु रक्षक गया वह उंझासों मारुदगान इंद्र के भाई होकर देव पद को प्राप्त हुआ
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After narrating this much tale, Sood ji said, O sages of Sauka river, after listening to this tale from Brahma ji, Narad ji has prayed with restraint, father, please tell me in detail the tale of how Kaamdev was burnt to ashes for troubling the gods by giving arguments and how Shiv ji took back Girja. Brahma ji said, son, listen to this tale carefully. From the womb of Kashyap's wife named Dwitiya, two very strong and radiant sons named Hiran Kashyap Shishu and Hiran Yash were born. They controlled all the three worlds by their power. Due to his atrocities, the gods did not get happiness even in their dreams. Then Vishnu ji took an incarnation and killed Hiran Kashyap Shishu and took 12 incarnations and killed Hiranyaksha. At that time, all the gods became happy and started praising Vishnu ji. O Narada, Dwitiya was very sad with the death of both his sons. He went to Kashyap and heard all the news. Thereafter, she served her husband very much and asked for a son who would give her happiness. Pleased with the service of Dwitiya, Kashyap told him this Dwitiya said, you should do penance for one thousand years, if you are successful then you will certainly get a son of God. Hearing this Dwitiya started doing it. When Indra saw Dwitiya doing this, he went near her and started serving her. Dwitiya was pleased with her service and asked, Indra, you are serving me with such a desire, if you change your wish for me then I will certainly fulfill it. Hearing this Indra replied, mother, in return of our service we ask only this boon from you that whenever the son for whom you are doing such hard work is born, he should be our well-wisher like our brothers and we should remove the sorrows of the Gods. Hearing this Dwitiya became very sad and said, Indra, you have cheated me by tricking me, still I will fulfill your wish. Saying this Dwitiya started doing fierce penance, O King, one day surprisingly Dwitiya became impure while sleeping. At that time Indra entered her womb through the hole. Reaching there he cut the child in Dwitiya's womb into pieces, but even after this when the child was not killed and got divided into two forms at one place, then Indra took each one of them. Along with the part, the pieces got broken into 49 pieces, but all the pieces did not die, but remained alive in the form of separate children. Seeing this, Indra came out of the womb of Indra II. Suddenly Indra woke up from his sleep, then he became very worried and asked Indra as to who had entered his womb some time ago. On listening to Indra, Indra told him the place, time and incident. Dwitiya felt very happy. When he progressed into the form of 49 part children, then he was named Maruti Gaadi, meaning Air Protector. He became the brother of Unjhaso Marudgan Indra and attained the position of a god.
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