श्री शिव महापुराण कथा तृतीय खंड अध्याय 31 का भाग 2



यह नारद मरोड़ गानों को जन्म के पक्ष द्वितीया के कश्यप जी की फिर बहू सेवा की और क्या कहा कि हे प्रभु आप मुझे एक ऐसा लड़का दीजिए जिसके सिर पर किसी भी शास्त्र का प्रहार प्रभाव ना हो सके यह सुनकर कश्यप ने उत्तर दिया तुम दास सहस्त्र वर्ष तक तपस्या करो तो तुम्हें निश्चय ही ऐसे पुत्र की प्राप्ति होगी पत्नी की आज्ञा सुनकर द्वितीय ने पुनः 10 शास्त्रों वर्ष तक कठिन तपस्या किया जब उसकी तपस्या पूर्ण हुई तो उसके गर्भ से एक बालक ने जन्म लिया उसका नाम बजरंग रखा गया वह बालक महा प्रतापी तेजस्वी देर वीर तथा बुद्धिमान था उसने अपनी माता द्वितीय की आज्ञा से इंद्र को पकड़ लिया फिर उसे लात दोसा से अच्छी तरह पीटा और पृथ्वी पर घसीटता हुआ अपने माता के सामने लाकर खड़ा कर दिया हर कर इंद्र ने वज्रांग की अधीनता स्वीकार कर ली है नारद जब मैं इंद्र किया दशा देखी उसे समय मैं तथा कश्यप ने वज्र के पास जाकर यह कहा है पुत्र तुमने इंद्र को अपने वश में कर लिया है अस्तु अब तुम हमारे ऊपर कृपा करके इसे छोड़ दो तुम अपने पल में सूर्य के समान प्रतापी हो तुम्हारी शक्ति का वर्णन कहां तक किया जाए या सुनकर वज्रांग ने उत्तर दिया मैं आप लोगों के कहने से इंद्र को छोड देता हूं मुझे इंद्रलोक प्राप्त करने की इच्छा नहीं है मैंने तो अपनी माता की आज्ञा मानकर ही इंद्र को यह दंड दिया है इतना कहा कर वह मुझसे बोला है पितामह आप तीनों लोगों के स्वामी है अत माय चाहता हूं कि आप मुझे तीनों लोगों का कर बता दे उसकी बात सुनकर मैं बहुत देर तक सोच विचार करने के उपरांत उसे तपस्या तथा योग का कर बता दिया और वाराणसी नामक एक स्त्री उसे देखकर बोला यह बजरंग यह स्त्री तुम्हारी पत्नी होगी तुम इसे स्वीकार करो हे नारद इतना करके मैं तो अपने लोग को लौट आया उधर बजरंग समुद्र में घुसकर तपस्या करने लगा उसकी स्त्री वज्र भी समुद्र के तट पर स्थित एक पर्वत के समीप बैठकर तपस्या करने लगी उसे समय इंद्र ने उसकी तपस्या भ्रष्ट करने के लिए अपने अनेक सेवकों को भेजा उन्होंने अनेक प्रकार के स्वरूप धारण कर वरंगिणी को डराया परंतु उसे स्त्री के ऊपर किसी का कुछ वर्ष ना चला यह देखकर इंद्र ने अत्यंत भयभीत हो मनुष्य रूप धारण कर उसकी शरण में पहुंच परंतु जैसे ही वरंगिणी ने उसकी और अपनी दृष्टि घुमाई वैसे ही इंद्र की संपूर्ण माया इस प्रकार लुप्त हो गई जिस प्रकार शिव जी के दर्शन प्राप्त करके संपूर्ण पाप नष्ट हो जाते हैं तब इंद्र अपने गानों के साथ उसे स्थान से चला गया है नारद कुछ समय बाद बजरंग की तपस्या से प्रसन्न होकर मैं उसे व देने के लिए पहुंचा उसे समय उसने मेरी बहुत प्रार्थना करते हुए यह कहां है पितामह आप मुझे अपना सेवक जानकारियां वरदान दीजिए कि मुझे आसुरी भाव उत्पन्न ना हो मेरा मन धार्मिक कार्य में सदैव लग रहे बजरंग की बिनती सुनकर मैं उसे इच्छित वरदान दे दिया और अपने लोग को लौट आया तब उपरांत बज रहा की भी जल से बाहर निकाल कर अपनी स्त्री के पास जा पहुंचा स्त्री ने उसे देखकर रोते हुए इंद्र के गानों द्वारा कष्ट देने का सब हल्का सुनाया परंतु बजरंग ने उसे शांत करते हुए धर्म का उपदेश किया और यह कहा कि हमें इंदिरा के ऊपर क्रोध करना उचित नहीं है उसे समय तो बजरंग को यह सुनकर चुप रह गई जब कुछ समय उसे पट्टी की सेवा करते हुए व्यतीत हुई तब एक दिन उसे बजरंग ने कहा कि है स्वामी इंद्र हम लोग का शत्रु है और उसने मुझे बहुत दुख दिया वस्तु आप मेरी मानो अभिलाषा पूर्ण करने के निर्मित मुझे एक ऐसा पुत्र दीजिए जो इंद्र से मेरे अपमान का बदला ले सके इतना कह कर वह अपने पति के चरणों में गिर पड़ी

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This Narad Marod served Kashyap ji on the second day of his birth and said, "O Lord, please give me such a son on whose head the blow of any weapon cannot have any effect." Hearing this, Kashyap replied, "If you do penance for a thousand years, you will definitely get such a son." Hearing his wife's command, Kashyap again did tough penance for 10 years. When his penance was completed, a child was born from her womb. He was named Bajrang. That child was very majestic, radiant, brave and intelligent. He caught Indra by his mother's command. Then he beat him well with kicks and dosa and dragged him on the earth and made him stand in front of his mother. Defeated, Indra accepted Vajrang's subordination. When Narad saw Indra's condition, Kashyap went to Vajrang and said, "Son, you have brought Indra under your control. So now you have mercy on us and let him go. You are as majestic as the Sun in your moment. How far should I describe your power?" Hearing this, Vajrang said, "Son, you have brought Indra under your control. He replied that I am letting Indra go as per your wish. I do not wish to attain Indralok. I have punished Indra by obeying my mother's order. After saying this, he said to me, Grandfather, you are the master of all three people, so I want you to tell me the tax of all three people. After listening to him, after thinking for a long time, I told him the tax of penance and yoga. A woman named Varanasi saw her and said, "Bajrang, this woman will be your wife. You should accept her, O Narada." After doing this, I returned to my people. Bajrang entered the sea and started doing penance. His wife Vajra also started doing penance by sitting near a mountain situated on the seashore. At that time, Indra sent many of his servants to disrupt his penance. They took many forms and frightened Varangini, but no one had any effect on the woman. Seeing this, Indra got very scared and took human form and took shelter in her. But as soon as Varangini turned her gaze towards him, Indra's entire illusion vanished in the same way, just as all sins are destroyed by getting a glimpse of Lord Shiva. Then Indra returned to his people. Narada left the place with the songs. After some time, pleased with Bajrang's penance, I reached there to give him a boon. At that time, he prayed to me a lot and said, "Grandfather, please make me your servant and give me a boon that I should not have demonic feelings and my mind should always be engaged in religious work." On hearing Bajrang's request, I gave him the desired boon and returned to my people. Then I took Bajrang out of the water and went to my wife. The wife, on seeing him, started crying and told him all the stories about Indra's troubles through songs, but Bajrang calmed her down and preached religion and said that it is not right for us to get angry with Indra. She remained silent on hearing this. When some time was spent serving her, one day Bajrang said to her, "Oh lord Indra is our enemy and he has given me a lot of pain. To fulfill my wish, give me a son who can take revenge for my insult from Indra." Saying this, she fell at the feet of her husband.

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