श्री शिव महापुराण कथा तृतीय खंड अध्याय 28


ब्रह्मा जी ने कहा हे नारद उसे समय हिमाचल के पंडित ने आकर लग्न का मुहूर्त बताया तब मैं और विष्णु जी शिव जी को साथ लेकर हिमाचल के घर जा पहुंचे भगवान सदा शिव के उसे समय के स्वरूप का वर्णन नहीं किया जा सकता उसका संपूर्ण शरीर कपूर था अथवा कुंदन के पुष्प के समान श्वेत था वह सिर्फ से भाव तक वस्त्र आभूषण से अलंकृत थे और माथे पर मोर रखे हुए थे जिस बल पर हुए आरोप थे उसके सौंदर्य और सिंगर का भी वर्णन नहीं किया जा सकता जब शिवजी के घर के भीतर पहुंचे तब उसकी ओर से मैं तथा हिमाचल की ओर से उपरोक्त में मिलकर संपूर्ण कृतियां संपन्न की हिमाचल ने शिवजी का मधु परख सहित अर्थ प्रदान किया तथा दो वस्त्र भेद किए का दूसरा अंत मैं उसी स्थान पर गिरजा को बुलवाया यह नारद गिरजा के आ जाने पर उपरोहित के हवन किया तदुपरांत अग्नि को साक्षी करके हिमाचल में कन्यादान किया जिस समय शिवजी ने गिरजा के हाथ को अपने हाथ में पड़ा उसे समय सब लोग अत्यंत प्रसन्न हो गए हिमाचल के फोटो बंधिया ने शिव तथा विजय दोनों के चरणों की पूजा की दोनों ओर से सेवकों को उसे समय इतना पुरस्कार दिया गया कि वह सबतृप्त हो गए भवरे हो जाने के उपरांत शिव तथा वीजा को एक स्वर्ण सिंहासन पर बैठाया गया था जो ऋतियां शेष रह गई थी उन्हें मैं उपरोहित के साथ संपन्न कराया फिर शिव जी ने मेरी आज्ञा अनुसार गिरिजा के मस्तक में सिंदूर लगाया उसे समय मैं तथा वह रोहित ने भी अपना-अपना पुरस्कार प्रदान कर दोनों की आशीर्वाद दिया है पुत्र शिव कथा पार्वती के विवाह का हुआ अत्यंत तीनों लोक में भर गए फिर स्त्रियां शिवजी को अत्यंत पूर्व में ले गए वहां जो भी रठिया होने को थी उन सबको शिव जी ने प्रसन्नता पूर्वक किया दूसरे दिन भी हिमाचल में बारात को थेरे रखा और इस दिन भी उसके संपूर्ण बारात का अत्यंत स्वागत सत्कार किया तीसरे दिन हिमाचल में अत्यंत इसने में भरकर शिवजी को प्रणाम किया और गिरजा का हाथ उसके हाथ में देकर बारात को वेदना किया हिमाचल के नगर से विदा होकर बारात कैलाश पर्वत पर जा पहुंची वहीं भी अनेक प्रकार के उत्सव होता दो फ्रांस सब देवता शिव जी से भी विदा लेकर अपने अपने घर लौटे माय तथा विष्णु जी अपने-अपने लोक को लौट आए शिवजी तथा गिरिजा जी के विवाह उत्सव का वर्णन करते हुए सब लोग अत्यंत प्रसन्न होते थे

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Brahma Ji said O Narada, at that time the Pandit of Himachal came and told the auspicious time of marriage. Then I and Vishnu Ji took Shiv Ji along and reached Himachal's house. The form of Lord Shiv cannot be described. His entire body was like camphor or was white like a Kundan flower. He was adorned with clothes and ornaments from the top of the head and had a peacock on his forehead. The beauty and charm of the body on which the amulets were made cannot be described. When we reached Shiv Ji's house, I and Himachal on his behalf together performed all the above rituals. Himachal gave the meaning of the honey test of Shiv Ji and made two divisions. At the other end, I called Girja at the same place. When Girja came, Narada performed the havan of Uparohit. Thereafter, by witnessing the fire, Himachal performed the kanyadaan. When Shiv Ji placed Girja's hand in his hand, everyone became very happy. Himachal's Phot Bandhiya worshipped the feet of both Shiv and Vijay. The servants from both sides were given so much reward that they were all satisfied. Shiv and Vija were seated on a golden throne. I completed the remaining rituals with the help of Uparohit. Then Shiv Ji applied sindoor on Girija's forehead as per my order. Shiv and Vija also gave their respective rewards and blessed both of them. The story of Shiv and Parvati's marriage was celebrated. The three worlds were filled with joy. Then the women took Shiv Ji to the far east. Shiv Ji welcomed all the people there happily. On the second day also the wedding procession was kept in Himachal and on this day also the entire wedding procession was welcomed with great respect. On the third day in Himachal, Shiv Ji bowed down to Shiv Ji with great joy and gave Girija's hand in his hand. After leaving the city of Himachal, the wedding procession reached Kailash Parvat. There also many types of celebrations were held. All the gods took leave from Shiv Ji and returned to their homes. Maa and Vishnu Ji returned to their respective worlds. Everyone used to be very happy while describing the wedding celebrations of Shiv Ji and Girija Ji.

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