श्री शिव महापुराण कथा तृतीय खंड अध्याय 26



ब्रह्मा जी ने कहा हे नारद फिर पर्वत राज हिमाचल सब लोगों को साथ लेकर शिवजी की सेवा में जा पहुंची और हाथ जोड़कर उसकी स्तुति करने लगे यह देखकर शिव जी ने उनसे हंसते हुए पूछा है राजन तुम क्या चाहते हो हम तुम्हारे प्रत्येक मनोकामना को पूर्ण करेंगे यह सुनकर हिमाचल ने अपने इच्छा को प्रकट करते हुए कहा हे प्रभु आपकी लीला जानी नहीं जाती आप कृपा करके मेरे संपूर्ण अपराधों को क्षमा कीजिए और मुझे ऐसा ज्ञान प्रदान कीजिए कि जिसमें हुए सदैव चिंतन बना रहो हे प्रभु आपका वर्णन वेदों से भी नहीं हो सकता यदि नारद जी हमें आश्चर्य रूपी समुद्र से बाहर न निकलते तो हमारी अज्ञानता कभी दूर नहीं होती हे नाथ आप मेरा संपूर्ण अहंकार नष्ट हो गया है आप नगर में पधार कर गिरजा को स्वीकार कीजिए और हम सब लोगों को प्रसन्नता प्रदान कीजिए हे प्रभु आपके दोनों शिष्यों ने नगर का संपूर्ण अंग का डाला है जिसके कारण लोग अत्यंत दुखी है आप कृपा करके इस दुख को भी दूर कर दीजिए इस समय मेरे प्रतिष्ठा आपके हाथ में है मैं आपकी शरण में आया हूं हे नारद हिमाचल ने इन शब्दों को सुनकर शिव जी ने प्रसाद न होते हुए कहा है है राजन अब तुम प्रसन्नता पूर्वक अपने नगर को लौट जाओ तुम्हारे संपूर्ण मनोरथ पूर्ण होंगे तुम विवाह की सामग्री एक खतरा करो है पर्वतराज तुम्हें अपने राज तथा सामग्री एकत्र करने का बहुत अहंकार हो गया था उसे नष्ट करने के लिए ही हमने यह लीला दिखाई है अब तुम घर जाकर बारात की अवगनी की प्रतीक्षा करो तुम्हारे घर की सभी वस्तुएं जिओ की क्यों प्रकट हो जाएगी शिवजी की आज्ञा प्रकार हिमाचल अपने घर लौट गए वहां जाकर जब उन्होंने नया देखा कि जब सामग्री पुन प्रकट हो गई है तो अत्यंत प्रसन्नता हुई महीना भी गिरजा की ओर देखकर अत्यंत आनंदित हुई साधु प्रांत हिमाचल बारात की आवागमी के लिए सभी लोगों के साथ लेकर आगे चल इधर हिमाचल को विदा करने के उपरांत शिव जी ने सिंगी नाथ करके अपना डमरु बजा दिया उसके शब्द को सुनते ही मन विष्णु इंद्र आदि संपूर्ण देवता तथा ऋषि मुनि संपूर्ण दृष्टि को साथ लेकर शिव जी के समीप जा पहुंचे उसे समय शिव जी ने वस्त्र अलंकारों से सुसज्जित होकर अपना सुंदर दूल्हा स्वरूप बनाया भगवान सदा शिव के उसे परम तेजस्वी स्वरूप का दर्शन प्राप्त कर सब लोगों को अत्यंत प्रसन्नता हुई

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Brahma Ji said, O Narada, then the mountain king Himachal, along with all the people, went to serve Lord Shiva and started praying to him with folded hands. Seeing this, Lord Shiva smilingly asked him, “O King, what do you want? We will fulfill your every wish.” Hearing this, Himachal expressed his desire and said, “O Lord, your divine play is not known. Please forgive all my sins and give me such knowledge that I always remain in my thoughts. O Lord, you cannot be described even in the Vedas. If Narada Ji had not taken us out of the sea of ​​wonder, our ignorance would never have been removed. O Lord, my entire ego has been destroyed. Please come to the city and accept the temple and give happiness to all of us. O Lord, your two disciples have destroyed the entire city, due to which people are very sad. Please remove this sorrow also. At this time, my prestige is in your hands. I have come to your refuge.” O Narada, hearing these words of Himachal, Lord Shiva said, “O King, now you return to your city happily. All your wishes will be fulfilled. You will get married.” The material is a danger, Parvatraj, you had become very proud of your kingdom and the material collection; to destroy that we have shown this leela only. Now go home and wait for the arrival of the wedding procession. All the things in your house will appear as if by God. Following Shiva's order, Himachal returned to his home and when he saw that the material had appeared again, he was very happy. Mahina too was very happy on seeing the church. Sadhu Pradesh Himachal moved ahead with all the people for the arrival of the wedding procession. After bidding Himachal farewell, Shiva ji played his damru after ringing it. On hearing its sound, all the gods like Man, Vishnu, Indra etc. and sages and saints reached near Shiva with their full vision. At that time Shiva, adorned with clothes and ornaments, took on his beautiful groom form. Everyone was very happy on seeing the extremely radiant form of Lord Sada Shiva.

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