श्री शिव महापुराण कथा तृतीय खंड अध्याय 21



ब्रह्मा जी बोले हैं नारद हिमाचल की आज्ञा पाकर जो लोग पर हाथ को ढूंढने गए थे उन लोगों ने लौट कर या समाचार दिया कि हमें बारात कहीं नहीं मिली हिमाचल या सुनकर पहले तो बहुत दुखी हुए परंतु जब उन्होंने गिरजा की सखियों की दुर्गति का समाचार सुना तो उन्होंने अपने मन में निश्चय किया कि संभवत वही शिवजी होंगे या विचार आते ही हुए बहुत पछता कर कहने लगे है ब्रह्मण आदि तो शिवजी की बहुत प्रशंसा किया करते हैं फिर क्या कारण है जो वह ऐसा भयानक स्वरुप बनकर मेरी पुत्री को बहाने आए हैं अब मुझे वास्तव में पता चला कि पुरोहित ने मेरे साथ धोखा किया है मैं राजा होकर ऐसे भिखारी के साथ अपने पुत्री का विवाह कदापि नहीं करूंगा इस प्रकार की बातें कहते हुए हिमाचल तथा मैं बहुत चिंतित हुए जो बंधु बंधन विवाह में सम्मिलित होने के निर्माता हिमाचल के घर आए हुए थे हुए सभी का कुल होकर कहने वालों की अरे यह क्या हुआ है नारद उसे समय हिमाचल आदि के जीत की चिंता को देखकर गिरिजा ने विजय नामक साथी को अपने पास बुलाया और उनसे एक पत्र देते हुए कहा है सखी तुम इसी समय इस पत्र को लेकर शिवाजी के पास चले जाओ और निर्भय होकर हाथ जोड़कर उसने मेरी ओर से प्रार्थना करते हुए यह कहना कि आपकी इज्ज के इस पत्र का उत्तर तुरंत देवें फिर हुए जो भी उत्तर दें उसे लेकर तुम मेरे पास लौट आना यह सुनकर वह सखी गिरजा का पत्र लेकर शिव जी के पास चल दिए और वहां पहुंचकर उसे दंडवत प्रणाम करने के उपरांत पत्र देते हुए बोले हैं प्रभु आपकी जो आज्ञा हो उसे कह ताकि मैं गिरजा को जाकर यह संदेश सुना दो यह नारद गिरिजा ने अपने पत्र में या लिखा था ही परम ब्रह्म शिव जी मैं आपको भली-भांति जानती हूं परंतु मेरे माता-पिता तथा अन्य लोग आपकी महिमा को ना पहचान पाने के कारण अत्यंत चिंतित हो रहे हैं इसलिए मैं आपसे प्रार्थना करती हूं कि आप अपने परम सुंदर तथा कोमल स्वरूप को धारण कीजिए इसके अतिरिक्त आप श्रेष्ठ बारात एवं सुंदर सामग्री के साथ या पधारे उसमें सब लोग के मन की उपाधि दूर हो शिवाजी ने इस पत्र को पढ़कर उत्तर लिख दिया है और उसे देखकर सखी को विदा किया है जब से जब गिरजा को अपने पत्र का उत्तर मिल गया तब वह अपने मन मे बहुत प्रसन्न तथा सूखी हुई

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Brahma Ji has said that after getting the order of Narad Himachal, those people who went to search for the bridegroom, returned and informed that they could not find the wedding procession anywhere. Himachal was very sad on hearing this but when he heard the news of the plight of Girija's friends, he decided in his mind that probably he must be Lord Shiva. As soon as this thought came, he regretted a lot and said that Brahmins etc. praise Lord Shiva a lot, then what is the reason that he has come to take my daughter in such a terrifying form. Now I have really come to know that the priest has cheated me. Being a king, I will never marry my daughter to such a beggar. Saying such things, Himachal and I became very worried. All the people who had come to Himachal's house to participate in the wedding, started saying, "Hey, what has happened Narad?" Seeing the worry of Himachal etc. at that time, Girija called a friend named Vijay to her and giving him a letter said, "Friend, you go to Shivaji right now with this letter and fearlessly, with folded hands, she prayed on my behalf. He told her to immediately reply to this letter of your honour and then return to me with whatever reply she gives. On hearing this, he took the letter of Sakhi Girja and went to Shiv Ji and after reaching there and bowing down to her, giving her the letter said, Prabhu, tell me whatever you command so that I can go and convey this message to Girja. This is what Narad Girija had written in his letter, that Param Brahma Shiv Ji, I know you very well but my parents and other people are getting very worried due to not being able to recognise your glory, therefore I pray to you that you should assume your extremely beautiful and gentle form, besides this you should come with the best procession and beautiful materials, in which the anxiety of everyone's heart should be removed. Shivaji wrote the reply after reading this letter and after seeing it sent the Sakhi away. Since the time Girja got the reply to her letter, she felt very happy and content in her heart.

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