ब्रह्मा जी ने कहा हे नारद हिमाचल में अब अपनी पत्नी मैं को देवताओं की आज्ञा सुने तो मैं को बहुत प्रसन्नता हुई तब उपरांत दोनों पति-पत्नी गृहस्थ धर्म का अति उत्तम रीति से पालन करने लगे मैं ने शिव जी की सेवा पूजा आरंभ कर दी तथा प्रतिदिन उन्हें कार्यों में अपना समय व्यतीत करने लगे जिसके करने से शिवजी प्रसन्न होते हैं दोनों पति-पत्नी शिव तथा शिवरानी के स्मरण एवं ध्यान में मग्न हो गए हे नारद शिव जी के भक्ति परम धन्य है वह लोक तथा परलोक में अत्यंत आनंद तथा पूर्ण प्राप्त करते हैं तथा अपने कुल को ही नहीं अपितु और को भी मुक्त कर देते हैं वास्तु हिमाचल में भगवती जगदंबा की प्रार्थना आरंभ की और मैं से भी यह कहा कि तुम अपनी तपस्या द्वारा आदि शक्ति तथा शिव जी को प्रसन्न करने का उपाय करो इस प्रकार हुए दोनों शिव तथा शक्ति की उपासना करने लगे हे नारद उन दोनों ने शिव तथा शक्ति की उपासना करने की अतिरिक्त अन्य सब कार्यों को भुला दिया हुए अष्टमी के दिन व्रत रखने तथा शिव का पूजन किया करते थे श्रावण मास में शिव व्रत रखने के उपरांत उसकी पूर्णता के निर्माता गंगा तट पर बसे और शब्द प्राप्त देश में जा पहुंचे वहां उन्होंने शिवलिंग की स्थापना का तपस्या करना आरंभ किया पुस्तक की अवधि 20 वर्ष की थी उसे बीच में उन्होंने कभी बिना एंजल ग्रहण किया और कभी केवल वायु का ही भाषण करते हुए शिव तथा शक्ति का विधिवत पूजन किया जब वह तपस्या पूर्ण हुई तब भगवती उमा ने प्रगट होकर उन्हें अपना दर्शन देकर कृतार्थ किया उनका शरीर सजल में के समान श्रेष्ठ श्याम वर्ण तथा आठ हाथ और तीन आंखें थी वह सब प्रकार के वस्त्र आभूषण से अलंकृत थे है नारद तब उन भगवती ने प्रकट होकर मैं से कहा है मैं तुम अपने मनोरथ को प्रकट करो जो चाहो मांग लो हे नारद जब महीना ने अपने नेत्र खोलकर भगवती जगदंबा के स्वरूप को देखा तो अत्यंत प्रसन्नता हुई उसके हाथ जोड़कर स्तुति करते हुए कहा एक माता मेरे धन्य भाग्य हैं जो मुझे आपके दर्शन प्राप्त करने का यह सौभाग्य प्राप्त हुआ है मैं इस समय आपकी कुछ स्थिति करना चाहती हूं परंतु है माता ना तो मुझे कुछ ज्ञान ही है और ना ही मैं विद्या ही जानती हूं जिससे आपने इस अभिलाष को पूर्ण कर सुकून यह जानकर भगवती महामाया ने मैं के शरीर से अपने हाथ से स्पर्श कर दिया जिसके कारण उसे इस समय श्रेष्ठ ज्ञान की प्राप्ति हुई तब वह अत्यंत प्रेम मगन होकर अपनी आंखों से आशुतो वर्षा करने लगी उसे समय उसने ऐसी कठिन शब्दों से युक्त श्रेष्ठ पद्मावली में जगदंबा की स्तुति की जिससे बड़े-बड़े विद्यमान भी अच्छी तरह नहीं समझ सके उसे स्तुति को सुनकर भगवती ने कहा है मैं जो व्यक्ति इस स्तुति को सुनेगा तो अथवा पड़ेगा वह अपने संपूर्ण मनोरथ को प्राप्त करेगा तथा संसार में स्त्री पुत्र धन आदि प्राप्त करेंगे अंत में मेरे लोक में आए आवेगी भगवती महामाया के इस कृपा पूर्ण वचनों को सुनकर मैं ने हाथ जोड़कर कहा है मातेश्वरी तीनों लोक में ऐसी कौन सी वस्तु है जिससे आप नाथ दे सकते हो आज तो आप मेरी आपसे यह प्रार्थना है कि सर्वप्रथम मेरे घरों से अत्यंत वीर तथा गुड़ी 100 पुत्रों का जन्म हो वह ब्रह्म ज्ञानी होकर अपनी फूल का मान बढ़ेगा तथा दोनों मानसून को मुक्ति देने वाला सिद्ध हो तदुपरांत मेरे घर से एक कन्या का जन्म हो जो सब बातों में आपका समान ही हो तीनों लोकों में उसके सामान और कोई ना हो और वह देवता हूं कि दुख रूपी जड़ को काटने में कुल्हाड़ी के समान सिद्ध हो सके महीना की प्रार्थना को सुनकर भगवती जगदंबा ने मुस्कुराकर कहा है मैं तुम्हारी बुद्धि को धन्य है जो तुमने ऐसा वर्क मांगा है मैं तुम्हें इच्छित वर देता हूं और यह बताते हुए तुमने जिस प्रकार के 100 पुत्रों की कामना की है वह तुम्हारे गर्व से इस रूप से जन्म लेगा परंतु अपने सामान में स्वयं ही हूं अस्तु तुम्हारी मानव अभिलाषा की पूर्ति के हेतु में स्वयं ही तुम्हारे घर में अवतार लूंगा इतना कह कर भगवती जगदंबा अंतर ध्यान हो गई तब जिस दिशा की और वह अंतर्ध्यान हुई थी उसे दिशा की ओर प्रणाम करने के पश्चात मैं भी अपने घर को लौट चली जब उसे घर जाकर हिमाचल को सब वृतांत सुनाया तो अत्यंत प्रश्न हो या अरुण उन्होंने महीना की बहुत प्रकार से प्रशंसा करता दो प्रांत हिमाचल में इस उपलक्ष में एक बहुत बड़ा उत्सव मनाया
TRANSLATE IN ENGLISH
Brahma ji said, O Narad, now in Himachal, my wife I heard the orders of the gods and I felt very happy. After that, both the husband and wife started following the household dharma in the best manner. I started serving and worshiping Lord Shiva and Every day they started spending their time in work, by doing which Lord Shiva becomes happy. Both the husband and wife became engrossed in the remembrance and meditation of Lord Shiva and Lord Shiva. O Narad, the devotee of Lord Shiva is extremely blessed. He attains immense happiness and fulfillment in this world and the next world. He does this and frees not only his own family but also others too. He started praying to Bhagwati Jagdamba in Vastu Himachal and also told me to find ways to please Adi Shakti and Lord Shiva through my penance. This is how it happened. Both of them started worshiping Shiva and Shakti, O Narada. Apart from worshiping Shiva and Shakti, both of them had forgotten all other activities and used to observe fast and worship Shiva on the day of Ashtami. After observing Shiva fast in the month of Shravan, its completion was completed. The creator of the book settled on the banks of the Ganga and reached the country where he received words. There he started doing penance for the establishment of Shivalinga. The duration of the book was 20 years. In between, he sometimes read the book without angels and sometimes while talking only about Vayu, Shiva and When the penance was over, Bhagwati Uma appeared and gave him her darshan. His body was as dark as water, he had eight hands and three eyes. He was decorated with all kinds of clothes and ornaments. Narad then. That Goddess appeared and said to me, I, you express your wish, ask for whatever you want, O Narada, when the month opened its eyes and saw the form of Goddess Jagdamba, it was very happy, folded its hands and praised it and said, 'A mother is my blessed fortune.' I have got this privilege of getting your darshan, I want to do something for you at this time, but mother, neither do I have any knowledge nor do I know the knowledge by which you have fulfilled this desire, I feel relieved knowing this. Bhagwati Mahamaya touched my body with her hand due to which she attained supreme knowledge at that time. Then she became very engrossed in love and started showering rain from her eyes. At that time she praised Jagadamba in the best Padmavali containing such difficult words. Bhagwati, after listening to the praise of which even the great people could not understand it properly, has said that the person who listens to this praise will achieve all his desires and will get wife, son, wealth etc. in the world, in the end my people will After listening to these gracious words of the impulsive Bhagwati Mahamaya, I folded my hands and said, Mateshwari, what is the thing in the three worlds with which you can give Nath? Today, I request you to first of all remove from my houses a very brave and good girl. May 100 sons be born, he will be knowledgeable about Brahma, his flower's honor will increase and he will prove to be the one who frees both the monsoons, then a daughter will be born from my house who will be equal to you in all things, there will be no one else like her in all the three worlds and I am that God who can prove to be like an ax in cutting the root of sorrow. Hearing the prayer of the month, Bhagwati Jagdamba smiled and said, I am blessed with your intelligence that you have asked for such a task, I give you the desired boon and while telling this, you The kind of 100 sons that you have desired will be born in this form due to your pride, but I am myself in my belongings, therefore, to fulfill your human desire, I will incarnate in your house myself. Saying this, Bhagwati Jagadamba became antar meditation. Then, after paying obeisance towards Disha and the direction in which that introspection had taken place, I also returned to my home. When I went home and narrated the whole story to Himachal, whether it was an extreme question or Arun, he praised the month in many ways, two provinces, Himachal. A huge celebration was held to mark this occasion.
0 टिप्पणियाँ