श्री शिव महापुराण कथा तृतीय खंड अध्याय 7



इतनी कथा सुनकर नारद जी ने कहा है पिता अपने शिवचरित्र का वर्णन कर मुझे अत्यंत प्रसन्नता प्रदान की है अब आप शिवजी की अन्य कथाओं का विस्तार पूर्वक वर्णन कीजिए तथा उसके कैलाश पर्वत पर निवास करने का सब फल सुनाइए ब्रह्मा जी बोले हे नारद कैलाश पर्वत पर पहुंचकर शिव जी ने सती का स्मरण किया और वीरभद्र आदि गानों के सम्मुख सती जी की महिमा का वृद्ध प्रकार से वर्णन किया उन्होंने सांसारिक मनुष्य को कामदेव की महिमा दिखाई ने के लिए सती के वियोग में शोक प्रकट करते हुए अनेक प्रकार के चरित्र दिखाएं टाङू प्रांत में बहुत समय तक एक ही आसान पर बैठकर ध्यान मांगना हो गए जब उन्होंने बहुत दिनों बाद उसे समाधि का त्याग किया उसे समय उसके ललाट से कुछ पसीने पृथ्वी पर गिर पड़े जिसके द्वारा एक पर परम तेजस्वी पुरुष की उत्पत्ति हुई उसका उसे पुरुष के चारों हाथ थे वह लाल वर्ण वाला अपने कंठ में माला पहने तथा अन्य शक्तिशाली था उत्पन्न होते ही वह बालकों के समान होने लगा हे नारद उसे देखकर पृथ्वी ने अपने मन में यह विचार किया कि इस बालक का पालन पोषण मुझे करना चाहिए क्योंकि यह परम तेजस्वी प्रतीत होता है शिव जी की अर्थ अग्नि सती जी अपना शरीर का त्याग चुकी हे आता अब मेरे अतिरिक्त इसका पालन करने वाला और कौन है यह मेरे ऊपर उत्पन्न हुआ है इसलिए मैं इसकी माता के सम्मान हूं और माता के समान ही मुझे इसका पालन पोषण करना चाहिए यदि मैं स्त्री रूप धर कर इसका पालन नहीं करूंगा तो शिव जी मुझे अवश्य ही दंड देंगे यह निश्चय कर पृथ्वी ने अपना स्वरूप स्त्रियों के समान बनाया पृथ्वी का यह स्वरूप अत्यंत सुंदर तथा पवित्र था उसे देखकर यह प्रतीत होता है मानव कामदेव की पत्नी रति दूसरा अवतार ग्रहण किया हो अथवा भगवान विष्णु ने फिर मोहनी रूप धारण कर लिया हो ऐसा सुंदर स्वरुप बनकर पृथ्वी उसे बालक के समीप जा पहुंची आपसे अपने गोद में उठाकर तथा अपने स्तनों को उनके मुख से लगाकर दूध पिलाने लगी वह बार-बार से देखकर हंसती और उसका मुख चूमती थी शिव जी ने जब पृथ्वी को इस स्वरूप में देखा तो हुए उनकी अभिलाष जानकर मुस्कुरा पड़े फिर उसे संबोधित करते हुए बोले ही पृथ्वी तुम्हारा बड़ा भाग्य है जो हमारा पुत्र तुम्हें दिखाई दिया तुम प्रसन्नता पूर्वक इसका पालन करो यद्यपि यह बालक हमारे पसीने से उत्पन्न हुआ है तो भैया तुम्हारा नाम से प्रसिद्ध होगा अर्थात सब लोग इसे भ्रोम कह कर पुकारेंगे यह बालक तुम्हें अत्यंत सुख प्रदान करेगा इस प्रकार पृथ्वी से कह कर जब शिवजी ने उसे बाला की ओर देखा तो उसके हृदय का शौक कुछ घट गया था दो प्रांत पृथ्वी उसे बालक को देखकर अपने घर लौट गए और प्रसन्नता पूर्वक उसका पालन पोषण करने लगे वह भ्रोम नामक बालक शरद कल की रात्रि के समान निरंतर वृद्धि को प्राप्त होने लगा जब वह बड़ा हुआ तो शिवजी का पूजन करने के निर्माता मधुबन में जा पहुंचा और अत्यंत भक्ति पूर्वक शिवजी की पूजा करने लगा उसे भीष्म ऋतु में अग्नि सुलग कर तथा शीतल ऋतु में जल में बैठकर शिवजी की पूजा की 3 करोड़ शिवलिंगों की स्थापना करके उसे श्रेष्ठ व्रत तथा नियमों द्वारा उसका पूजन किया इस प्रकार कठिन तपस्या करने के उपरांत जब वह यह किस स्थान पर निश्चित होकर बैठा उसे समय शिव जी ने अत्यंत प्रसन्न होकर उसे अपने दर्शन प्रदान किया यह नारद शिवजी के दर्शन प्राप्त कर भोम में सर्वप्रथम अत्यंत कठिन शब्दावली में रचित उनकी स्तुति की दादू प्रांतीय कहा है प्रभु मैं स्वयं आपसे पूछ नहीं मांगना चाहता आज तो आप मेरे लिए जो भी उचित समझे वह वरदान देने की कृपा करें यह सुनकर शिवजी अत्यंत प्रसन्न होकर बोले ही फ्रॉम तुम्हारी वृद्धि को धन्य है तुम मेरे आराधना द्वारा भक्ति बात को प्राप्त कर चुके हो आप मेरी कृपा से तुम पवित्र मंगल ग्रह के रूप में प्रसिद्ध हो गए और तुम्हारा स्थान सूर्य लोक में भी ऊपर होगा तुम्हें सब प्रकार के आनंद और समानता की प्राप्ति होती है इतना कह कर शिवजी अंतर ध्यान हो गए तब रम भी अपने लोग को जाकर परिवार सहित आनंद करने लगा है नारद शिवजी के इस पवित्र चरित्र को सुनने अथवा करने से धन्य संतान तथा सुख की प्राप्ति होती है एवं संपूर्ण प्रकार के रोग नष्ट हो जाते हैं

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After listening to this story, Narad ji said, "Father, you have given me great happiness by describing the character of your Lord Shiva. Now, describe other stories of Lord Shiva in detail and tell all the results of his living on Mount Kailash. Brahma ji said, O Narad, on Mount Kailash. After reaching there, Lord Shiva remembered Sati and described the glory of Sati in an old manner in front of songs like Veerbhadra etc. He showed the glory of Kamadeva to the worldly man and showed many types of characters while mourning the loss of Sati. Tangu province For a long time, he started sitting on the same platform and asking for meditation. When he left Samadhi after a long time, at that time, some sweat from his forehead fell on the earth, due to which a very bright man was born. He was red in complexion, wearing a garland around his neck and was very powerful. As soon as he was born, he started becoming like a child. O Narad, seeing him, the earth thought in its mind that I should nurture this child because he seemed to be very bright. The meaning of Lord Shiva is Agni, Sati Ji has left her body, now who else is there to take care of it except me? It is born on me, therefore I am its mother's respect and I should nurture it like a mother. If I don't follow this by assuming the form of a woman, then Lord Shiva will definitely punish me. Having decided that the earth made its form like that of a woman, this form of the earth was very beautiful and pure. Looking at it, it appears that the human is the second incarnation of Kamadeva's wife Rati. Or may Lord Vishnu have again assumed the form of Mohini? Having become such a beautiful form, Prithvi went near the child, picked him up in her lap, put her breasts to his mouth and started feeding him milk. She laughed after seeing him again and again and his She used to kiss the face. When Lord Shiva saw the earth in this form, he smiled after knowing her wish and then addressed her and said, 'Earth is your great destiny, our son has appeared to you, you follow it happily, even though this child is born from our sweat. If he is born, brother, he will be famous by your name, that is, everyone will call him Bhrom, this child will give you immense happiness, saying this to the earth, when Lord Shiva looked at Bala, the passion in his heart had diminished a little. Two Provinces Prithvi, seeing the child, returned to his home and happily started raising him. The child named Bhrome started growing continuously like the autumn night. When he grew up, he went to Madhuban, the creator place, to worship Lord Shiva and was very happy. Bhishma started worshiping Lord Shiva with devotion by lighting a fire in the season and worshiping Lord Shiva by sitting in water in the winter season and established 3 crore Shivlingas and worshiped him with the best fasts and rules. In this way, after doing difficult penance, when he After getting the darshan of Narad Shivji, he decided to sit at which place and at that time, Lord Shiva became very happy and gave him his darshan. This Narad, after receiving the darshan of Shivji, for the first time in Bhom, wrote his praise in very difficult language, Dadu Prantiya has said, Lord, I myself do not want to ask you today. So, please grant whatever boon you deem appropriate for me. Hearing this, Lord Shiva became very happy and said, "Blessed is your growth. You have attained the point of devotion through my worship. By my grace, you are in the form of the holy planet Mars." Become famous and your place will be higher even in the Sun world. You get all kinds of happiness and equality. Having said this, Lord Shiva became antara, then Rum also went to his people and started enjoying with his family, this sacred character of Narad Lord Shiva. By listening or doing this one gets blessed children and happiness and all types of diseases are destroyed.

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