श्री शिव महापुराण कथा तृतीय खंड अध्याय 1


सूट जी बोले है ऋषियों इतनी कथा सुनकर नारद जी ने ब्रह्मा जी से कहा हे पिता अब आप मुझे यह बताएं की सती ने दूसरा अवतार किस प्रकार लिया उसका विवाह शिव जी के साथ किस प्रकार हुआ और उन्होंने अर्धांगिनी नाम किस प्रकार पाया इसके अतिरिक्त आप मुझे शिव पार्वती के अन्य लीलाओं को भी सुनाएं क्योंकि शिवचरित्र सुनने से मेरी तरफ नहीं होती इसके विपरीत या इच्छा अधिक बढ़ती जाती है कि मैं भगवान शिव के चरित्र को निरंतर सुनता रहूं नारद जी ने मुख से यह वचन सुनकर ब्रह्मा जी ने अध्ययन प्रसन्न होकर कहा हे नारद दक्ष यज्ञ में भस्म होने से पूर्व साथी ने शिवजी से यह वरदान मांगा था कि मुझे आपके चरणों की भक्ति सदैव प्राप्त हो आपकी प्रति भी मेरे ऊपर कभी काम ना हो इतना कहकर उन्होंने अपने शरीर को भस्म कर दिया दादू प्रांत मैं के घरों से दूसरा जन्म लिया यह सुनकर नारद जी बोले ही पिता मैं मैं को नहीं जानता हूं आज तो आप विस्तार पूर्वक यह बताने की कृपा करें कि मैं किसकी पुत्री थी और उसके साथ विवाह हुआ था ब्रह्मा जी ने कहा है नारद उत्तर दिशा की ओर संपूर्ण पर्वत का राजा है हिमालय नामक पर्वत है वह पर्वत प्रदेश अत्यंत रमणीक है इस हिमालय प्रदेश के एक देश में एक राजा राज करता था उसके राज्य की शोभा का किसी प्रकार वर्णन नहीं किया जा सकता वहां बिना तेल के ही दीपक जलते हैं और वहां के निवासी अपने घरों में देव दारू की लकड़ी जलाकर प्रकाश करते हैं वही की बर्फ पर्वत की शीला के समान कठोर होती है जिसके ऊपर लोग चलते हैं यदि कोई छोटा मनुष्य भी वहां जा पहुंचता है तो वहां के निवासी उच्च पद को अपने व्यक्ति भी उसका आधार तथा सम्मान करते है उसका पर्वत पर ऐसी गए हैं कि लोग अपनी पूछ का मोर जल बनाते हैं और वह ओपन में निर्भय होकर स्वच्छ चांद विचरण किया करते हैं वहां की स्त्रियां भी निर्मल होकर स्वच्छ चंद जहां भी चाहे वहां घूमते रहते है शास्त्रों प्रकार के सुगंधित पुष्प वहां सर्वत्र खेल ले रहते हैं यह नारद अब मैं तुम्हें उसे पर्वत की श्रेष्ठता का वर्णन करता हूं जिस प्रकार की उसने मेरी वह ना तो औरों को दिखाई देता है और ना कोई उसके पास पहुंच ही सकता है पर्वतों का स्वामी होने के कारण होने के पश्चात वह नीति पूर्वक राज करता हुआ प्रजा का पालन करने लगा उसकी प्रजा भी शुद्ध आचरण वाले तथा व्रत नियमों को धारण कर धर्म मार्ग पर सदैव ट्रेन रहती है जिस प्रकार सूर्य पृथ्वी से रस लेता है तथा वर्षा द्वारा पुनः उसी को दे देता है इस प्रकार वह राजा भी अपनी प्रजा से जियो कर लेता था उसे सबको उसी की भलाई में भी आए कर देता था यह नारद हिमाचल संपूर्ण राज लक्षणों को धारण किए हुए था वह परम शास्त्र ज्ञान बुद्धिमान तथा दूरदर्शी था वह चिकित्सा तथा उपाय से रहित होकर अपने शरीर का पालन करता था और किसी कार्य में शीघ्रता नहीं दिखता था वह दूसरों के आनंद के लिए ध्यान संचित करता था और इसलिए मौन रहता था कि अधिक ना बोलने से श्रेष्ठ बुद्धि की प्राप्ति होती है शक्तिशाली होते हुए भी वह दिन बना रहा था त्याग तथा संतोष की कृति का प्रकाश बढ़ाकर उसे जाकर से अपना संबंध तोड़ लिया था यद्यपि वह युवा था तो भी वृद्ध-पिता की भांति अपनी पुत्र स्वरूपी राजा का उद्धार पूर्वक पालन करता था वह दंड देने योग्य व्यक्तियों को इसलिए दंड देता था ताकि धर्म स्थिर बना रहे वह प्रत्येक विद्या तथा गुण का ज्ञाता था उसके राज्य में चारों ने चोरी करना छोड़ दिया और वह वेद के आजा अनुसार चलने लगे उसके मित्र उसके प्रति हृदय में चर्चा स्नेह रखते थे उसके राज्य में किसी को कष्ट नहीं था हे नारद उसे श्रेष्ठ राजा के विवाह के लिए सब देवताओं ने उद्योग किया उन्होंने अपने मनोरथ की पूर्ति हेतु पितरों से कहा कि आप अपनी बड़ी पुत्री जिसका नाम महीना है वह विवाह हिमाचल के साथ कर दीजिए ऐसा करने से देवताओं के अनेक कार्य सिद्ध होंगे तथा सब लोग के दुख दूर हो जाएंगे अपनी पुत्री के श्राप का स्मरण कारों मे पितरों ने देवताओं की यह बात स्वीकार कर लेता था एक शुभ लग्न में महीना का विवाह हिमाचल के साथ कर दिया विवाह में आनंद मंगल की होती है वह सब यथाविधि संपन्न हुई उसे विवाह को देखकर मुझे विष्णु जी को तथा देवताओं को यह समझकर विशेष प्रसन्नता हो रही थी कि इसके घर में जो पुत्री उत्पन्न होगी वह भगवान सदाशिव को विवाह जाएगी वस्तु विवाह हो जाने के उपरांत हिमाचल महीना को साथ ले अपने घर को लौट गए

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Suit ji said, Rishis, after listening to this story, Narad ji said to Brahma ji, O father, now you tell me how Sati took the second incarnation, how she got married to Shiv ji and how she got the name Ardhangini. Apart from this, you tell me. Shiv should also narrate the other Leelas of Parvati because listening to Shiva's character does not favor me, on the contrary, the desire increases that I should keep listening to Lord Shiva's character continuously. Hearing this word from Narad ji, Brahma ji became happy and said - Before being burnt to ashes in Narad Daksh Yagya, the companion had asked for a boon from Lord Shiva that I should always have devotion at your feet and that I too should never work against you. Having said this, he burnt his body. Second of the houses in Dadu province. After hearing that I was born, Narad ji said, Father, I do not know myself. Today please tell me in detail whose daughter I was and with whom I was married. Brahma ji has said that Narad is the king of the entire mountain towards the north. There is a mountain called Himalaya. That mountain region is very beautiful. A king used to rule in a country in this Himalayan region. The beauty of his kingdom cannot be described in any way. There, lamps burn without oil and the residents there live in their homes. The Gods light the fire by burning the wood of Daru and the ice is as hard as the rock of the mountain on which people walk. If even a small human being reaches there, the residents of that place consider him to be of high status as their own person and respect him. They have gone to the mountains in such a way that the people turn their tails into water and they roam fearlessly in the open, the clean moon, the women there also become pure, the clean moon keeps roaming wherever they want, the fragrant flowers of the scriptures play everywhere there. Now let me describe to you the superiority of the mountain as it is mine. It is neither visible to others nor can anyone reach it. Since it is the lord of the mountains, it rules it in a policy manner. He started obeying the people, his people also follow the rules of pure conduct and fast and always remain trained on the path of religion. Just as the sun takes juice from the earth and gives it back to it through rain, in the same way the king also obeys his subjects. This Narad Himachal was the embodiment of all the qualities of a king. He was wise and far-sighted with supreme knowledge of scriptures. He used to take care of his body without any treatment or remedy. He did not seem to be hasty in his work. He concentrated on the happiness of others and hence remained silent because not speaking much leads to superior intelligence. Despite being powerful, he was making the day by increasing the light of his work of renunciation and contentment. Although he was young, he followed his son-like king faithfully like an old father. He punished those who deserved punishment so that the religion remained stable. He was knowledgeable in every knowledge and virtue. In his kingdom, all four of them stopped stealing and started following the instructions of the Vedas. His friends had love for him in their hearts. No one had any trouble in his kingdom, O Narad. All the gods made efforts to get him married to the best king. To fulfill his wish, he told the ancestors that they should marry their elder daughter, whose name is Mahisha, to Himachal. By doing this, many works of the Gods will be accomplished and everyone's sorrows will go away. Remember the curse of your daughter in the cars. The ancestors used to accept this from the Gods, in an auspicious ascendant, the month's marriage was done with Himachal, the joy in the marriage is of Mars, everything was completed as per the procedure, seeing the marriage, I should understand that Lord Vishnu and the Gods should be especially happy. It was said that the daughter born in this house would be married to Lord Sadashiv. After the marriage, Himachal returned to his home taking the month with him.

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