श्री शिव महापुराण कथा द्वितीय खंड अध्याय 24 का भाग दो


इतना कहा कर सती ने अंत क्रोध ब्रह्मा तथा विष्णु से इस प्रकार कहा है ब्रह्मा तथा है विष्णु दक्ष ने जो कुछ किया है उसके मूल में तुम दोनों हो क्योंकि तुम दोनों शिव के ना आने पर भी इस यज्ञ में शामिल हुए हो आज तो तुमने जैसा कार्य किया उसका फल तुम्हें अवश्य भोगना पड़ेगा आश्चर्य है कि जिन शिवाजी द्वारा चारों वेद तथा संपूर्ण सृष्टि की उत्पत्ति हुई है उन्हें तुम बिल्कुल नहीं पहचान सके यदि तुम दोनों दक्ष के इस यज्ञ में नहीं आते तो दक्ष को इतना अहंकार कभी ना होता यदि या उपस्थित देवता तथा ऋषि मुनि को भी ना आते तो दक्ष को कभी भी यह हिम्मत ना होती कि वह शिवजी से विरुद्ध होकर कोई कार्य करते तुम लोगों की बुद्धि वास्तव में भ्रष्ट हो गई है जो तुम्हें दधीचि मुनि का सभा से उठ जाना भी अच्छा नहीं लगा है नारद सती के मुख से निकले हुए इन शब्दों को सुनकर दक्ष ने अत्यंत क्रुद्ध होकर कहा अरे माटी मंत्र तू ऐसी बात क्यों कर रही है मेरा और तेरा पिता पुत्री का संबंध समाप्त हो चुका है यदि तेरी इच्छा हो तो तू यहां रह अन्यथा अपने घर चली जा तेरा पति अत्यंत अशुभ है उसके नाम में केवल तो ही अक्षर है वह भूत प्रेत एवं पिशाचार के साथ रहता है चिंता की भस्म को अपने शरीर में लगता है और श्याम में घूमता घूमा करत है और उनके माता-पिता स्कूल जाती पाती आदि का कुछ भी पता नहीं है इस वर्णन वेद में भले हो परंतु उसे कोई शुभ लक्षण नहीं दिखाई देती इसलिए मैंने उसे यहां नहीं बुलाया क्योंकि ऐसे मूर्ख मनुष्य का यज्ञ में आना मिश्रित कहा गया है है सती मैं वास्तव में बड़ी मूर्खता की जो औरों के कहने पर तुझे जैसे अपनी श्रेष्ठ पुत्री का विवाह उसे नग धारण और चढ़ के साथ कर दिया मुझे इस बात का बहुत बड़ा पैसे तप है अस्तु तू मेरी बातों पर विचार करके अपना यह क्रोध त्याग दे दक्ष की बात को सुनकर सती पुणे क्रोधित हो उठी और अपने पिता को महा पापी अनुमान कर बहुत दुखी भी हुई वह बोले शिवजी का अपमान कभी सुना नहीं चाहिए यदि कोई व्यक्ति शिव की निंदा कर रहा हो तो सुनने वाले तो उचित है कि वह यहां तो उसकी निंद करने वाले की जीप काट ले अन्यथा अपने दोनों कान बंद करके वहां से उठ जाए और अपने शरीर को अग्नि में जलकर भस्म कर दे इसके विपरीत चलने से महा पाप होता है जो व्यक्ति शिवजी क करने वाले की जीप काट ले अन्यथा अपने दोनों कान बंद करके वहां से उठ जाए और अपने शरीर को अग्नि में जलकर भस्म कर दे इसके विपरीत चलने से महा पाप होता है जो व्यक्ति शिवजी की निंदा करता है वह उसे समय तक नग में पड़ा रहता है जब तक की इस ब्रह्मांड में सूर्य और चंद्रमा स्थित रहे यह बात वेद के कथन से भी पक्की होती है इस प्रकार का कर सती अपने मन मे अत्यंत पछताते हुई सोचने लगी कि मैं यहां आकर शिव की निंदा अपने थानों से सुनिए यह अच्छा नहीं हुआ उन्हें इस बात से और भी अधिक दुख हो रहा था कि वह यहां किस लिए आए और आप कौन सा मुंह लेकर शिव के पास लौटी हुए सोचने लगे कि यद्यपि शिव के श्री चरणों का दर्शन प्राप्त करना मेरे लिए अत्यंत आवश्यक है परंतु आप भला किस मुंह से मैं उसके पास जाऊं मुझे तो दोनों ही प्रकार से कठिनाई दिखाई दे रही है

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Having said this, Sati angrily said to Brahma and Vishnu, Brahma and Vishnu, you both are the root of whatever Daksh has done because you both have participated in this yagya even when Shiva did not come. Today you will definitely have to face the consequences of your actions. It is surprising that you could not recognize Shivaji from whom the four Vedas and the whole universe originated. If you both had not come to this yagya of Daksh, then Daksh would never have been so arrogant. If the gods and sages present there had also not come, then Daksh would never have had the courage to do something against Shivaji. Your intellect has really become corrupted that you did not even like Dadhichi Muni leaving the assembly. Hearing these words coming out of Sati's mouth, Daksh became very angry and said, O Mati Mantra, why are you saying such things? The relation of father and daughter between us has ended. If you wish, then stay here, otherwise go to your home. Your husband is very inauspicious. His name has only the letter 'Tai'. He lives with ghosts and spirits. He applies the ashes of worry on his body and keeps roaming around in the evening and nothing is known about his parents, school, etc. This description may be there in the Vedas but he does not show any auspicious sign, that is why I did not call him here because the coming of such a foolish man to the yagya has been said to be auspicious. Sati, I have really committed a great foolishness that on the advice of others, I got my best daughter married to her wearing gems and offerings. I have a great penance for this. So you should think over my words and give up your anger. On hearing Daksh's words, Sati became very angry and considering her father a great sinner, she became very sad. She said that one should never hear the insult of Lord Shiva. If someone is criticising Lord Shiva, then it is appropriate for the one who is listening to him to cut off the head of the person criticising him, or else he should close both his ears and get up from there and burn his body to ashes in the fire. Doing the opposite of this commits a great sin. The person who criticises Lord Shiva should cut off the head of the person criticising him, or else he should close both his ears and get up from there and burn his body to ashes in the fire. By going contrary to this, it is a great sin. The person who criticises Lord Shiva remains in hell for a long time as long as the Sun and the Moon exist in this universe, this is also confirmed by the statements of the Vedas. By doing this, Sati was repenting in her mind and started thinking that it was not good that I come here and listen to the criticism of Shiva from my friends. She was feeling even more sad about why she came here and with what face should she return to Shiva. She started thinking that although it is very important for me to get the darshan of the feet of Shiva, but with what face should I go to him, I am seeing difficulty in both the ways.

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