ब्रह्मा जी बोले हे नारद इस प्रकार सती दक्ष ने भयभीत यज्ञशाला में पहुंची परंतु वहां किसी ने उनसे बात तक ना पूछी ना किसी ने यही जानना कि यह जगमता है दक्ष ने तो वहां जाकर में उसे कुशल तक ना पूछी यह देख सती की बहनों ने जो वहां उपस्थित थी हंस कर सती की निंदा की सती ने यज्ञ में सब देवताओं का स्थान देखा परंतु वहां शिव का स्थान ना देखा तब वह मन में अत्यंत क्रोधित हुए उन्होंने अपना अनदर देख शिवजी का स्मरण किया तथा सोचा कि अपने क्रोध से दक्ष को भस्म कर डाले परंतु फिर उन्होंने सोचा कि यह उचित नहीं होगा क्योंकि जब दक्ष ने कठिन तपस्या करके मुझको प्रसन्न किया था तब मैंने उसे कहा था कि जब मैं तुम में कुछ गर्वता था अपने मन की कमी देखेगा तो इस समय अपने शरीर को त्याग दूंगा दक्ष ने भी इस बात को मान लिया था अब वही समय आ गया है अस्तु सती ने पुणे है इस बात पर विचार कर बहुत दुख प्रकट किया और मन में कहा कि मुझे बड़ा दुख है जो शिवजी बिना पुत्र के ही रहे और मेरे विवाह का कोई फल ना मिला मेरा शिवाय और कौन ऐसी स्त्री है जो मेरे पीछे शिवजी को प्रसन्न रख सकेगी फिर शिव भी तो दूसरी स्त्री को अंगिरा ना करेगा अब मैं अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार अपने शरीर को त्याग कर हिमाचल पर्वत के घर उत्पन्न होगा तथा हिमाचल की पत्नी मुझे अपनी पुत्र समझेगी और मैं भी उनको अपने माता समझ कर आनंद प्रदान करेगी तब मैं शिव के साथ पुन विवाह जाऊंगी उसे समय मेरी सब राजा समाप्त हो जाएगी तथा संसार के मनोरथ पूर्ण होंगे सती ने यह सब बातें सोचकर दक्ष से क्रोधित होकर कहा है पिता तुमने शिव को निमंत्रण क्यों नहीं भेजा क्या तुम्हारी बुद्धि नष्ट हो गई है जिन मेरे स्वामी शिव से तीनों लोक पवित्र होते हैं तुमने उन्हें वह नहीं बुलाए बिन किया उन्होंने विष्णु से कहा क्या तुम शिव को नहीं जानते जिन्होंने वेद साबुन एवं निर्गुण कक्कड़ बैठे हैं मैंने तुमको अनेक बार समझाया है परंतु फिर भी तुम धर्म मार्ग को भ्रष्ट करते हो ही ब्राह्मण तुम भी बुद्धिहीन हो गए हो क्या तुम शिव के अपार बल को नहीं जानते यदि पी शिव ने तुमसे अनेक बार कहा है फिर भी तुम्हें बुद्धि नहीं आई है तुम्हारे पांच मुख थे तुमने शिव की निंदा की इसलिए तुम्हारे चार मुख शेष रहे है विष्णु क्या तुम शिव की महिमा भूल गए जबकि उन्होंने सबर को जला दिया था यह जानकर भी तुम इस यज्ञ में क्यों सम्मिलित हुए हो सती ने फिर देवताओं से कहा है देवताओं तुमने अपने शुद्ध बुद्धि को क्यों नष्ट कर दी मैं समझ गई तुम सब बड़े अभागा हो जो बिना शिव के इस यज्ञ में चले आए है ब्रिंग अत्री वशिष्ठ तुमने यह बात बुद्धि के विरुद्ध क्यों की तुमको तो शराब देने की महान शक्ति है क्योंकि तुम भी शिवजी की शक्ति को नहीं जानते एक बार भगवान सदाशिव मगर का रूप धारण कर द्रविड़ को गए थे और वहां उन्होंने भक्त की परीक्षा लेने के लिए पूछ लीलाओं की परंतु मुनियों में उन महिलाओं के रहस्य को ना जानकर शिवजी को श्राप दे डाला और उसे श्राप का प्रभाव उन्हें के लिए प्रतिकूल पड़ा उसे समय जबकि तीनों लोक जलने लगे तथा शिव जी ने अपने लिंग को पृथ्वी पर गिरा दिया था जिसके कारण पर पुनर्जीवित हो गए थे
TRANSLATE IN ENGLISH
Brahma Ji said, O Narada, in this way Sati Daksh reached the yagnashala in fear, but no one there even asked her about it, nor did anyone want to know that this is the shining light. Daksh went there and did not even ask about her well-being. Seeing this, Sati's sisters who were present there laughed and criticized Sati. Sati saw the place of all the gods in the yagna, but did not see the place of Shiva there. Then she became very angry in her mind. She looked inside herself and remembered Shiva and thought that she should burn Daksh to ashes with her anger. But then she thought that this would not be right because when Daksh had pleased me by doing a tough penance, then I had told him that when I was a little proud of you, if you see the shortcomings of your mind, then at that time I will give up my body. Daksh also agreed to this. Now that time has come. So Sati expressed great sorrow after thinking about this and said in her mind that I am very sad that Shiva remained without a son and I did not get any result of my marriage. My Shivaay and who is the woman who can keep Shiva happy after me? And Shiva too will marry another woman. Angira will not do it. Now, according to my promise, I will sacrifice my body and be born in the house of Himachal mountain. Himachal's wife will consider me as her son and I will also consider her as my mother and give her happiness. Then I will marry Shiva again. By that time all my kings will be finished and the desires of the world will be fulfilled. Sati, thinking all these things, said to Daksh in anger, father, why did you not invite Shiva? Have you lost your wisdom? You did not invite my lord Shiva, by whom all the three worlds are purified. She said to Vishnu, do you not know Shiva, who has Vedas, Sabun and Nirgun Kakkad sitting here? I have explained to you many times, but still you corrupt the path of religion. Brahmin, you have also become foolish. Do you not know the immense power of Shiva? Shiva has told you many times, still you have not gained wisdom. You had five faces, you criticized Shiva, that is why you have four faces left. Vishnu, have you forgotten the glory of Shiva. He had burnt Sabar. Even after knowing this, why did you participate in this yagya? Sati then said to the gods, gods, why did you destroy your pure wisdom? I understood that you all are very unlucky that you have come to this yagna without Shiva. Bring Atri Vashisht, why did you say this against your wisdom, you have the great power to give wine because you also do not know the power of Lord Shiva, once Lord Sadashiv had gone to Dravid in the form of a crocodile and there he had asked about the leelas to test the devotee, but the sages, not knowing the secret of those women, cursed Lord Shiva and the effect of that curse was adverse for them, at that time all the three worlds started burning and Shiva had dropped his linga on the earth due to which the gods were revived.
0 टिप्पणियाँ