श्री शिव महापुराण कथा द्वितीय खंड अध्याय 24 का भाग 3



हे नाथ इस प्रकार विचार करने के उपरांत सती अत्यंत क्रुद्ध होकर शिव नाम का जोर-जोर से उच्चारण करने लगी उन्होंने किसी की भी प्रतिष्ठा का ध्यान न रखते हुए यज्ञशाला में उपस्थित सब लोगों को देखा करते हुए कहा है उपस्थित सभा सदस्यों में तुम लोगों से यह बात सत्य ही कह रही हूं कि इस समय तुम्हारी बुद्धि नष्ट हो गई है अतः मैं तुम्हें बहुत अधिक पछताना पड़ेगा तुम में से अनेक मारे जाएंगे और अनेक भाग का किसी गुप्त स्थान पर छुप जाने के लिए विश्वास होंगे इस सभा में जी जिसने शिव की निंदा की है और जिसने उसे सुना है उन सबको महापाप लगा है सभा सदस्यों के इस प्रकार का करवे दक्ष से बोल ही दक्ष तुमने शिव की बात बहुत निंदा की है अतः तुम्हें भी बहुत पछताना पड़ेगा शिवजी सबको सुख देने वाले और सबके स्वामी है तुम उन्हें साधारण देवताओं की भांति ही समझ रहे हो तुम्हें यह नहीं मालूम कि हुए संपूर्ण सृष्टि के सभी बड़े हितेषी तुम्हें अपनी करणी का फल शीघ्र ही मिलेगा ही दक्ष वेद में मनुष्य के तीन प्रकार कह गए हैं जो किसी के गुण तथा सेल में दोस्त लगता है उन्हें आदम कहा जाता है जो किसी के बाप का पुण्य का सच्चा वर्णन करता है उन्हें मध्य कहते हैं और किसी के पापों को छिपाते हुए केवल उनके साबुनों का ही वर्णन कहलाता है उस उत्तम की संज्ञा दी जाती है इन तीनों में भी जो सर्वोत्तम प्राणी होते हैं वह अन्य लोगों के केवल गन का ही वर्णन नहीं करते अपितु हुए सबको अपने कृत्य द्वारा प्रसन्न भी रखते हैं मैं इन तीन प्रकार के प्राणियों को विचार करते हुए यह निष्कर्ष निकला है कि तुम धर्म प्रकार के हो क्योंकि तुमने शिवजी क की झूठी निंदा की है मिथ्या भाषण अहंकार क्रोध लोभ आदि जितने भी बड़े पाप हैं उन सब में महान पाप किसी दूसरे की निंदा करना है तुम जो यह कहते हो कि शिव नाम में केवल दो ही अक्षर है तो तुम्हें या जान लेना चाहिए कि यह दो अक्षर इतने प्रभावशाली हैं कि जो मनुष्य में अपने मुख से निकलता उसे संपूर्ण पाप भस्म हो जाते ऐसे पवित्र नाम की निंदा करना कभी भी उचित नहीं है परंतु तुम अपने अज्ञान के कारण इस बात को नहीं पहचानते शिवजी अनाड़ी आप प्रेमी या तथा महान है उसे द्वेष रखने वाले का कभी भी कल्याण नहीं होता जिन लोगों ने शिव जी की वास्तविक महिमा को पहचान लिया है वह सदैव उन्हीं के प्रेम में बांधना रहते हैं यह मेरा शरीर तुम्हारे द्वारा उत्पन्न हुआ है आज तू मैं अपना वेट नष्ट करने में निर्मित आप इसे अवश्य त्याग दूंगा क्योंकि शिव निंदक पिता की पुत्री कहना मुझे सहन नहीं होगा यह दक्ष तुमने जो यह कहा है कि शिव का कोई कम नहीं करते और आशु बेस धारी है उसका उत्तर यह है कि वह परम ब्रह्म शरीर रहित एवं आनंदित हैं माया का ग्रहण किए रहने के कारण ही हुए अपना ऐसा मंगल बेस बने रहते हैं भला उन्हें किसी कम से क्या प्रयोजन है तुमने जो यह कहा है कि वह चिता भस्म लगने वाले नाग-नया निधन तथा अवधूत हैं उसका उत्तर केवल यही है कि मुझे उनका यह स्वरूप देखकर ही प्रसन्नता होती है उनके इस स्वरूप के अतिरिक्त किसी अन्य रूप को देखना मुझे स्वीकार नहीं है बस तू अब मैं अपनी निश्चय अनुसार अपने को भस्म करती हूं क्योंकि इससे शिवजी को प्रसन्नता की प्राप्ति होगी इतनी कथा सुनकर ब्रह्मा जी ने कहा ही नारा दिया कह कर सती उत्तर दिशा की ओर मुख करके पृथ्वी पर बैठ गई उन्होंने स्नान करने के उपरांत अपने संपूर्ण शरीर को वास्तव को वेस्टन से लिपट लिया दादू प्राण योग धारण कर विधि पूर्वक आसन लगाते हुए प्रणाम किया सर्वप्रथम उन्होंने समान वायु को नाभि चक्र में लगाकर उदान वायु को ऊपर चढ़ना और शिव की सुंदर कृति को अपने हृदय में स्थापित किया था दुकानों में अपने भोम के बीच दृष्टि जमाते पति के चरणों का ध्यान किया और अग्नि तथा वायु को उत्पन्न कर दिया उसे पवित्र अग्नि तथा वायु के द्वारा उन्होंने अपने इस निष्पाप शरीर को भस्म कर दिया इस दृश्य को देखकर सब हो रहा है कर मच गई यज्ञशाला में उपस्थित सभी लोग अत्यंत भयभीत तथा दुखी हुए और दक्ष की पत्नी बिरनी शोभा पल हो गई उसे समय शिव के गानों में अत्यंत क्रुद्ध होकर सब लोगों को संबोधित करते हुए इस प्रकार कहा

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O Lord, after thinking like this, Sati became very angry and started chanting the name of Shiva loudly. Without caring for anyone's prestige, she looked at all the people present in the yajnashaala and said, "I am telling you the truth that at this time your wisdom has been destroyed, so I will make you regret a lot. Many of you will be killed and many will be forced to hide in some secret place. In this assembly, those who have criticized Shiva and those who have heard it, all of them have committed a great sin. The members of the assembly should do this and say to Daksh, Daksh, you have criticized Shiva a lot, so you will also have to regret a lot. Shiva Ji is the one who gives happiness to everyone and is the master of all. You are considering him as an ordinary deity. You do not know that he is the biggest well-wisher of the entire creation. You will soon get the fruits of your deeds. Daksh has mentioned three types of humans in the Vedas. The one who finds happiness in someone's qualities and qualities is called Adam. The one who describes the true virtues of someone's father is called Madhya and the one who hides someone's sins is called Shiva. Only the description of his qualities is called the best. Among these three, the best beings not only describe the qualities of others but also keep everyone happy through their actions. After thinking about these three types of beings, I have come to the conclusion that you are of the Dharma type because you have falsely slandered Lord Shiva. False speech, ego, anger, greed etc. The greatest sin among all of them is to slander someone else. You who say that there are only two letters in the name of Shiva, then you should know that these two letters are so effective that whatever comes out of the mouth of a person, all his sins get destroyed. It is never right to slander such a holy name, but you do not recognize this due to your ignorance. Shiva is an innocent lover and great. The one who hates him never prospers. Those who have recognized the real glory of Shiva always remain bound in his love. This body of mine has been born from you. Today, I will definitely give it up because I will not be able to bear being called the daughter of a father who slanders Shiva. Daksha, you have said that no one does any work for Shiva and he has a tearful body, the answer to this is that he is the supreme Brahma, bodyless and blissful, he remains in such a blissful state only because he is under the influence of Maya, what does he have to do with any work, what you have said that he is a serpent, a new-born and an Avdhoot who looks like the ashes of the pyre, the answer to this is only that I feel happy only by seeing this form of him, I do not accept seeing any other form of him other than this form, now I will burn myself as per my determination because this will please Lord Shiva, after listening to this story, Brahma Ji gave a slogan, saying this Sati sat on the earth facing the north direction, she wrapped her whole body with the western cloth, Dadu, taking a proper asana, took a bow by adopting Prana Yoga, first of all she applied the saman vayu in the navel chakra and made the udana vayu rise upwards and had established the beautiful creation of Shiva in her heart, she meditated on the feet of her husband while looking at the middle of her womb and produced fire and air, she purified it With the help of fire and air he burnt his innocent body. Seeing this scene everyone got shocked. All the people present in the yagnashaala got very scared and sad and Daksha's wife Birni Shobha became very angry. At that time Shiva became very angry and addressed everyone and said this

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