ब्रह्मा जी ने कहा हे नारद सती ने अपने पिता के घर यज्ञ का हाल सुना कर चाहा कि मैं भी वहां जाऊंगा वह इसी इच्छा से अकेली सदाशिव के पास पहुंची वहां पहुंच कर देखा कि सेवगढ़ शिव जी की सेवा में कर नॉन हुए दिगंबर केवल रुद्राक्ष धारण किए हुए थे उसे शिष्य पर जताए लटक रही थी शरीर पर भस्म शोभित थे शिव कहां ऐसा स्वरूप देख सती ने उन्हें प्रणाम किया सती को वहां देख शिवजी में बड़े प्रेम के साथ उन्हें बैठा लिया यद्यपि शिव सब कुछ जानते थे फिर भी उन्होंने सांसारिक लीलाओं से निर्मित वहां आने का कारण पूछा तब सती अत्यंत प्रसन्न होकर बोली हे प्रभु क्या आपको यह अच्छा नहीं लगा कि दक्ष ने यज्ञ प्रारंभ किया है मित्रों तथा बांधों को भेंट मा धर्म है इसी से अच्छे लोग भले बांधों की संगति स्वीकार करती है तथा आनंद प्राप्त करते हैं वास्तु आपको यह उचित है कि वहां चलकर यज्ञ को पवित्र करें तथा मुझे भी अपने साथ ले जाकर मेरी इच्छा की पूर्ति करें मेरे पिता की यज्ञ में ब्रह्मा विष्णु आदि सब देवता पहुंच गए हैं परंतु आप वहां नहीं गए शायद दिया है यज्ञ आपको अच्छा मालूम नहीं हुआ आप वहां न जाने का कारण मुझे विस्तार पूर्वक कहिए मैं आपकी दासी हूं मेरी हार्दिक इच्छा है कि मैं अपने पिता के घर जाऊं इसलिए आप मुझे अपने साथ लेकर वहां चलिए शिव जी ने सती के वचन सुनकर मुस्कुराते हुए कहा है सती तुमने पिता दक्ष ने मुझको ही यज्ञ का निमंत्रण नहीं भेजा है तथा शत्रुता रखकर मेरा अंदर किया है तुम ही सोचो वहां केवल तुम ही को ना बुलाकर अन्य सभी लड़कियों को बुलाया है इसका एकमात्र कारण केवल शब्द होता ही है ऐसे स्थान पर बिना बुलाए जाना कहां तक उचित है यदि अभी धर्मशास्त्र कहता है कि अपने पिता मित्र गुरु तथा स्वामी के घर बिना बुलाए भी जाना उचित है परंतु उनके मन में शत्रुता भी नहीं होनी चाहिए किसी के घर बिना बुलाए जाना मृत्यु से अधिक तथा अनदर एवं लोक निंदक का कारण होता है सती यह सुनकर बोली है स्वामी आप इस पर का कारण तो बताएं शिवजी में पूछा तब वृतांत सुन कर कहा इसलिए उचित है कि तुम दक्ष यज्ञ में नाम जो नहीं तो तुम बड़ा कष्ट उठाना पड़ेगा शिवजी में सती को अनेक प्रकार से समझाया परंतु शक्ति को यह इच्छा ना लगा वह दश पर आती होकर कहने लगे है शिवजी आप तीनों लोगों को आनंद प्रदान करने वाले हैं सभी देवता आपका स्मरण करते हैं आप यज्ञ कर्म तथा यज्ञ के फल है आप ही सृष्टि मात्र से ही तीनों लोक को तृप्त हो जाते हैं आपसे यज्ञ पूर्ण तथा पवित्र होता है मूर्ख दक्ष ने आपको अपने यज्ञ में नहीं बुलाया तो मुझे चिंता है कि उसका यज्ञ किस प्रकार पूर्ण होगा मेरा पिता इस प्रकार क्यों अज्ञानी हो गया मुझे बड़ी चिंता है यदि आप मुझे आज्ञा दें तो मैं जाकर उसकी सील या दुखशील अथवा उसके पर भाव को देखकर ही नाराज शिवजी को तो कुछ और ही लीला करनी थी इसलिए उन्होंने शादी के आगरा को ना डालकर उन्हें नदी पर सवार होकर यज्ञ में जाने की आज्ञा दे दी उन्होंने शादी के साथ 60000 गण देकर उन्हें विदा किया अच्छे-अच्छे वस्त्र आभूषण दिए सभी का स्वरूप भी अति उत्तम कर दिया है नारायण शिव ने ऐसे माया की की शादी पड़ी धूमधाम से चली शादी में उसे माया अपनी जैसे शोभा प्रकट की वैसे किसी प्रकार में भी प्रगति न की थी उनके चालान के समय बड़ा शब्द हुआ कोई गाना उछलता खुलता था अन्य गांड भी सबको प्रधान तथा आनंदित करते हुए चले और सती का प्रताप वर्णन करता तो कोई शिव की महिमा का दान करता था इस प्रकार सब अत्यंत प्रसन्न हो अनेक प्रकार की गति से चलते सती की सेवा करते दक्ष के घर जा पहुंचे
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Brahma Ji said, O Narada, Sati told the condition of Yagya at her father's house and wished that she too would go there. With this desire, she went alone to Sadashiv. On reaching there, she saw that the Digambaras who were busy in the service of Sevgarh Shiva Ji were wearing only Rudraksha, it was hanging on the forehead, ashes were adorned on the body. Seeing Shiva in such a form, Sati bowed to him. Seeing Sati there, Shiva Ji made her sit with great love. Although Shiva knew everything, yet he asked the reason for coming there, created by worldly pastimes. Then Sati said, O Lord, did you not like it that Daksha has started the Yagya? It is the religion to give gifts to friends and brothers. By this, good people accept the company of good brothers and get happiness. It is right for you to go there and sanctify the Yagya and take me along with you and fulfill my desire. Brahma, Vishnu and all other gods have reached my father's Yagya, but you did not go there. Perhaps you did not like the Yagya. Tell me in detail the reason for not going there. I am your maid, my heartfelt condolences. I want to go to my father's house, so please take me with you there. Shiv Ji smilingly said to Sati, Sati, your father Daksh has not invited me to the yagna and has made me feel enmity towards him. You only think about it. He has invited all the other girls and not only you. The only reason for this is the words. How far is it right to go to such a place without being invited. Even though the religious texts say that it is right to go to your father, friend, Guru and husband's house without being invited, but there should not be any enmity in their hearts. Going to someone's house without being invited is worse than death and the cause of public slander. Hearing this, Sati said, Swami, please tell me the reason for this. Shiv Ji asked her and after listening to the story, he said, therefore, it is right that you do not mention your name in Daksh's yagna, otherwise you will have to bear great trouble. Shiv Ji explained to Sati in many ways, but Shakti did not like this. She came to Dash and said, Shiv Ji, you give joy to all the three worlds. All the gods remember you. You are the fruit of yagna and yagna. You alone satisfy all the three worlds by creation. You make the yagya complete and pure. The foolish Daksh did not invite you to his yagya. So I am worried that how will his yagya be completed. Why did my father become so ignorant? I am very worried. If you allow me, I will go and see his sadness or his anger. Angry Shiv had to do some other leela, so instead of putting the wedding ceremony, he gave him permission to go to the yagya by riding on the river. He gave him 60000 Ganas with the wedding and sent him off. He gave him good clothes and ornaments. He also made everyone's appearance very good. Narayan Shiv married Maya in such a way that the marriage took place with great pomp and show. Maya displayed her beauty in the marriage, but she did not progress in any way. At the time of their procession, there was a loud noise. Some would sing songs and dance. Others would also walk making everyone happy and describing the glory of Sati, while some would donate the glory of Shiv. In this way, everyone was very happy and walking at various speeds, serving Sati, they reached Daksh's house.
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