ब्रह्मा जी बोले हैं नारद जब हमने दक्ष प्रजापति का अभिषेक कर उसको सब जातियों के अधिकार प्रदान किया तो वह अहंकार में लीन हो गया जिसके कारण उसकी बुद्धि भ्रष्ट हो गई उसे समय दक्ष ने संपूर्ण सामग्री एकत्र कर प्रजापति यज्ञ करने की इच्छा प्रकट की यही इच्छा लेकर वह कनखल तीर्थ गया वहां उसने सब मुनियों को बुलाया व्यास का कुंभ गौतम भारद्वाज कश्यप अंगिरा वशिष्ठ बामदेव जैमिनी पीपल परस और ब्रिंग दधीचि नारद आदि को बुलवाया इसके अतिरिक्त संसार भर के समस्त देवता तथा ब्राह्मण जाकर वहां उपस्थित हुए अग्नि भी अपने गानों सहित यज्ञ में पहुंचे अन्य देवता भी उसके बुलावे पर विष्णु सहित प्रसन्नता पूर्वक यज्ञ में शामिल लेते हुए देवराज इंद्र अपनी पत्नी सांची सहित एरावत पर चढ़कर वहां पहुंचे इंद्र पावन में पर यह भैंस पर वायु हिरण पर तथा शिव के मित्र कुबेर पुष्पक विमान पर चढ़कर वहां आए वरुण भी आपने वहां पर अरुण होकर यज्ञशाला में पहुंचे सूर्य अपनी पत्नी सहित तथा चंद्रमा भी अपने पत्नी रोहिणी सहित वहां जा उपस्थित हुए दक्ष ने सबको उपस्थित देख अति आनंद में मग्न हो सबका आदर सत्कार किया और सबको निवास के लिए विश्वकर्मा द्वारा बनाए गए मंदिर बता दिए जिसमें सब सबने निवास किया उसे समय सती जी गढ़ मदन पर्वत पर अपनी सखी सहित कीड़ा कर रही थी उन्होंने देखा कि चंद्रमा अपनी पत्नी सहित चल जा रहा है सती ने अपनी विजय नाम की साखी को आदेश दिया कि तुम चंद्रमा से जाकर पूछो कि वह कहां जा रहा है सखी की आज्ञा अनुसार विजय ने चंद्रमा से जाकर पूछ की सती पूछता है कि तुम अपनी पत्नी सहित ऐसे कट से कहां जा रहे हो यह बात सुनकर रोहिणी ने कहा कि सती के पिता दक्ष प्रजापति ने कनखल में एक यज्ञ का आयोजन किया है वहां बहुत बड़ा उत्सव है उनके निमंत्रण पर समस्त देवता वहां आ गए हैं ब्रह्मा तथा विष्णु भी वहां स्वाभिमान है तुम तो इस प्रकार पूछती हो जैसे कोई मूर्ख हंसी से पूछे इसका क्या कारण है कि तुमको इस यज्ञ के विषय में कुछ भी पता नहीं है वह समस्त देवता अपना अपना भाग लेने गए हैं तुम वहां अपनी इच्छा से नहीं गई या दक्ष ने तुमको बुलाया ही नहीं विजय या सुनकर लौट आई तथा रोहिणी द्वारा कहे गए शब्द सती जी को का सुनाएं इस समाचार को सुनकर सती जी को अत्यंत दुख हुआ वह अपने मन मे सोचने लगी कि क्या माता-पिता ने मुझको भुला दिया है जो मुझे और शिव जी को उन्होंने नहीं बुलाया ऐसा सोच कर सती इस समय शिवजी के पास गई उधर चंद्रमा भी अपने स्त्री रोहिणी सहित दक्ष के पास गया है नाराज के यज्ञ की सजावट तथा उसे समय के आनंद जो उसे यज्ञ में माने जा रहे थे अवनी है या सब मुनि एवं देवता कंकाल में जो की हरिद्वार में है आ गए तब दक्ष ने यज्ञ आरंभ किया अध्यक्ष अपनी पत्नी सहित यज्ञ में प्रभावित हुआ ब्रिंग मुनि को यज्ञ करने वाला है आचार्य बनाया गया दक्ष ने उसे यज्ञ में सबको उपस्थित देख शिव से शत्रुता स्वीकार की उसे समय मेरे पुत्र दादी जी ने सदाशिव को यज्ञशाला में ना देखा आचार्य से कहा इस उत्सव में समस्त देवता मुनि तथा ब्रह्म के पुत्र आदि आए हैं परंतु फिर भी मैं निष्ठा ए से कहता हूं कि यह सभा सदाशिव के बिना असोभित है वह शुभ कर्मों के मूल है वह सब देवताओं के स्वामी है क्या कारण है कि वह यही नहीं है तुम लोग शिव को क्यों भूल गए है दक्ष तुम्हारी बुद्धि इस प्रकार क्यों भ्रष्ट हो गई अब भी कुछ नहीं बिगड़ा है तुम सब देवताओं मुनियों तथा ब्रह्म एवं विष्णु को साथ लेकर शिव को प्रसन्न करके यहां ले आओ साथ में शक्ति को भी प्रसन्न करके यहां लो यह निश्चय समझ लो कि बिना शिव के यहां आए यह आजा पूर्ण नहीं होगा आश्चर्य है ऐसे देवता को जिनका स्मरण करने अथवा नाम लेने से संपूर्ण कार्य सिद्ध होते हैं तुम लोग क्यों भूल गए तथा उन्हें यहां क्यों नहीं बुलाया मैं फिर क्या कहता हूं कि जब तक शिव यहां ना आए या यज्ञ पूर्ण ना होगा दादी जी के ऐसे वचन सुनकर दक्ष अत्यंत क्रोधित हुआ तथा हंसकर बोला है दादा की यहां पर सब देवताओं के स्वामी बैठे हैं सब धर्म में तथा शुभ कर्म पूर्ण रूप से उपस्थित है सबके स्वामी विष्णु भी हमारे इस यज्ञ में विराजमान है अब क्या एक्सेस रह गया है तो मुझे बता दो मेरे इस यज्ञ में ब्रह्मा वेद धर्म शास्त्र पुराण तथा उपनिषद भी अपने अपने गानों सहित आ चुके हैं मेरा यह सौभाग्य है कि इन सब ने मुझ पर बड़ी कृपा की है आज मेरे यहां इंद्र समस्त देवताओं के साथ विष्णु भगवान तथा तुम्हारे सामान अनेक मुनि विराजमान है आप फिर शिव के आने की क्या आवश्यकता है तुम सब मिलकर यज्ञ को पूरा करो मैं अपने भाग्य वास तथा ब्रह्म की आज्ञा मानकर अपनी कन्या का विवाह शिव के साथ कर दिया यद्यपि यह विवाह अनुचित हुआ क्योंकि वह कुलवन्ना था शिव संसार से विरक्त महरणकारी है उस पर भी वह माता-पिता विहीन है इसलिए मैंने ऐसे शिव को इस यज्ञ में बुलाने की आवश्यकता ना समझ कर नहीं बुलाया है मैंने तुम्हें कहा था कि तुम पुणे ऐसे वचन मूख पर ना लाना आप यही उचित है कि तुम सब मिलकर मेरा यज्ञ पूर्ण करके मुझे आनंद प्रदान करो दक्ष के ऐसे अहंकार पूर्ण वचन सुनकर किसी ने कोई उत्तर नहीं दिया सब शांत रहे उनका यही शांत रहना सबके लिए महा पाप हुआ क्योंकि सभी ने अपने कानों से शिव निंद सोनी इस पर्दा दीजिए ने पुणे कहा कि बिना शिव के यहां यज्ञ कभी भी पूर्ण नहीं हो सकता तुम सब धोखे में हो जो इसका अनुसरण कर रहे हो दक्ष बड़ा धार्मिक तथा मूर्ख है जो शिव की निंदा कर रहा है यदि इसके शिव को नहीं बुलाया तो यह यज्ञ पूरा नहीं होगा जो इस यज्ञ में रहेगा वह भी दुख का भाग होगा यह कहकर दादी जी उसे सभा से उठकर चले गए तथा बहुत से मुनि भी दुखी होकर वहां से उठ गए ए से मुनियों को अपनी सभा से आते देख दक्ष ने अत्यंत प्रसन्नता से कहा यह बहुत अच्छी बात हुई जो शिव की प्रेमी तथा भक्त जो मुझको दुख देते हैं उठकर चले गए अब तुम सब मिलकर मेरे इस यज्ञ को पूर्ण करो दक्ष की बात सुनकर यज्ञ का कार्य प्रारंभ हो गया
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Brahma Ji said that Narad when we anointed Daksha Prajapati and gave him the rights of all castes, he got absorbed in ego due to which his intellect got corrupted. At that time Daksha collected all the materials and expressed his desire to perform Prajapati Yagya. With this desire he went to Kankhal Tirth. There he called all the sages, Vyas's Kumbh, Gautam Bharadwaj Kashyap Angira Vashishtha Bamdev Jaimini Peepal Paras and Bring Dadhichi Narada etc. were called. Apart from this all the gods and Brahmins from all over the world went and attended the Yagya. Agni also reached the Yagya with his songs. Other gods also happily participated in the Yagya along with Vishnu on his call. Devraj Indra reached there riding on Airavat along with his wife Sanchi. Indra came there riding on the holy buffalo, Vayu on the deer and Shiva's friend Kuber came there riding on Pushpak Viman. Varun also reached there as Arun. Sun along with his wife and Moon also reached there with his wife Rohini. Daksha seeing everyone present, immersed in great joy, honoured everyone and showed everyone the temple built by Vishwakarma for residence in which everyone lived. Everyone stayed there. At that time Sati was doing Kriya with her friend on Garh Madan mountain. She saw that Chandrama is going with his wife. Sati ordered her friend Vijay to go and ask Chandrama where he is going. According to the order of the friend, Vijay went and asked Chandrama. Sati asked where are you going with your wife from such a place. Hearing this, Rohini said that Sati's father Daksha Prajapati has organized a Yagya in Kankhal. There is a big celebration there. On his invitation, all the gods have come there. Brahma and Vishnu are also proud there. You ask in such a way as if a fool asks with a laugh. What is the reason that you do not know anything about this Yagya? All the gods have gone to take their part. You did not go there by your own wish or Daksha did not call you. Vijay returned after hearing this and told Sati the words spoken by Rohini. Hearing this news, Sati felt very sad. She started thinking in her mind that have my parents forgotten me that they did not call me and Shiv ji. Thinking this, Sati went to Shiva. On the other hand, Chandrama also went to Daksha with his wife Rohini. The decoration of the Yagya and the joy of the time which was being considered in the Yagya, Avni and all the sages and gods came to Kankal which is in Haridwar. Then Daksha started the Yagya. The president was impressed with his wife and Bring Muni was made the acharya who was going to perform the Yagya. Daksha, seeing everyone present in the Yagya, accepted enmity with Shiva. At that time, my son Dadi ji did not see Sadashiv in the Yagyashaala and told the Acharya that all the gods, sages and sons of Brahma etc. have come to this festival, but still I say with devotion that this gathering is not graceful without Sadashiv. He is the root of auspicious deeds. He is the lord of all the gods. What is the reason that he is not here? Why have you people forgotten Shiva? Daksha, why has your mind become corrupted like this? Even now nothing is lost. Take all the gods, sages, Brahma and Vishnu along with you and please Shiva and bring them here. Also please Shakti and take this here. Understand this for sure that this festival is not complete without Shiva coming here. You must be surprised that such a deity whose remembrance or name makes all the works complete, why did you people forget and why did you not call him here, then what do I say, until Shiv does not come here or the yagya is not complete, hearing such words of grandmother, Daksh became very angry and laughingly said, Dada, the lord of all the gods is sitting here, all religions and good deeds are fully present, the lord of all Vishnu is also present in our yagya, now what is left, then tell me, Brahma, Vedas, religious scriptures, Puranas and Upanishads have also come with their respective songs in this yagya of mine, it is my good fortune that all of them have blessed me a lot, today Indra, all the gods along with Lord Vishnu and many sages like you are present here, then what is the need for Shiv to come, you all together complete the yagya, I, following my destiny and Brahma's order, got my daughter married to Shiv, although this marriage was inappropriate because he was of a noble family, Shiv is detached from the world and is a hunter, on top of that he is without parents, that is why I did not call such Shiv in this yagya, thinking it necessary, I had told you that You should not take such words seriously, it is appropriate that all of you together complete my yagya and give me happiness. Hearing such arrogant words of Daksh, no one gave any answer, everyone remained silent. Their silence was a great sin for everyone because everyone heard with their own ears the words of Shiv Nind Soni. This Pardheev said that without Shiv, the yagya here can never be completed. All of you who are following him are mistaken. Daksh is very religious and foolish, who is criticizing Shiv. If Shiv is not invited, then this yagya will not be completed. Whoever will be present in this yagya will also be a part of sorrow. Saying this, Dadi ji got up from the assembly and left. Many sages also got up from there in sadness. Seeing such sages coming from his assembly, Daksh said with great happiness, this is a very good thing, those who are the lovers and devotees of Shiv, who give me pain, got up and left. Now all of you together complete this yagya of mine. Hearing Daksh's words, the work of the yagya started.
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