श्री शिव महापुराण कथा द्वितीय खंड अध्याय 21


इतनी कथा सुनकर नाराज जी बोले हे जगत् पिता इसके पश्चात शिव जी ने जो जो कार्य किया उन पर भी प्रकाश डालिए ब्रह्मा जी ने कहा है नारद सती को रामचंद्र का वृतांत सुन अत्यंत आनंद हुआ परंतु उन्हें अपने कर्म का विचार कर बहुत चिंता हुई वह हृदय में आती भयभीत तथा दुखी होकर लौटी मार्ग में उन्होंने सोचा कि मैं शिव की अवज्ञा की तथा रामचंद्र के विष्णु होने पर विश्वास किया अब मैं शिव को क्या उत्तर दूंगा सतीश प्रकार सोचती हुई शिव के निकट पहुंची तथा उन्हें प्रणाम किया शिवजी ने कुशल छैयां पूछ कर हंस कर कहा है शक्ति तुमने रामचंद्र कि जिस प्रकार परीक्षा ली वह सब हमें बताओ सती ने यह सुनकर लज्जा से सिर नीचा कर लिया और कोई उत्तर ना दिया तब शिव जी के ध्यान धर कर देखा तथा जो चरित्र सती ने किया था उसे जाना उन्होंने अपने पहले बात को जो विष्णु को अभिषेक के समय कही थी स्मरण का अत्यंत क्रुद्ध किया और हृदय में निश्चय किया कि आप यदि मैं सती से प्रेम करता हूं तो मेरा प्रथम वाक्य झूठा सिद्ध होता है सती जैसे स्त्री को छोड़ नहीं जा सकता यदि छोड़ता नहीं हूं तो जो मैं पहले कह चुका हूं वह झूठा होता है आज तो शिव जी ने पुनः सोच और नीचे किया कि आप सती से भेंट न होगी मैं अपनी वचन को झूठ नहीं कहूंगा या विचार कर शिव शक्ति को छोड़ अपने स्थान को चल दिए जिस समय हुए वहां से चले तब आकाश से या शब्द हुआ की है शिव अपने अपने वचन का पूर्ण रूप से पालन किया आपके समान दूसरा कौन है जो इस प्रकार अपने वचन का पालन करें यह शब्द सुनकर सती भयभीत हो गई उन्होंने कुछ सोचकर शिव से पूछा है प्रभु आपने क्या निश्चय किया है और सत्य बोलने वाले है अस्तु आप मुझसे सच-सच कहिए सती के बार-बार पूछने पर भी शिवजी ने यह बात छुपा रखी यह देखकर सती को विश्वास हो गया कि शिव जी ने उन्हें त्याग दिया है कुछ देर के पश्चात सती शिवजी से बोली है नाथ मैंने जो कुछ भी किया वह अज्ञान तथा मूर्खतावास किया है अब आप दूध और अपनी अलग करके देखें क्योंकि प्रतीत की यह रीति है मैं स्वयं ही अपने कर्म पर बहुत लज्जित हुआ परंतु शिवजी ने उसे बात को प्रकट करना उचित न समझ हुए अनेक प्रकार की कथा आदि के सुनने में समय डालते रहे परंतु अंत में उनका सत्य बात कहनी ही पड़ी इस प्रकार हुए कैलाश पर्वत पर पहुंचे शिवजी मन मे विचार कर बरगद के नीचे आसन लगाकर बैठ गए तथा अपने स्वरूप का ध्यान करने लगे इधर सती मंदिर में अत्यंत उदास हुई उनका एक-एक दिन युग के समान बीता था परंतु शिव उनके और किसी को यह हाल प्रतीत ना हो पाया दिन-दिन दुख बढ़ता ही जाता था वह सोचते कि यह दुख खाने के योग्य नहीं है पता नहीं इस दुख सागर से मैं कब पर होगा मैं शिव का कहना ना मां यह उसी का परिणाम है तीनों लोक में ऐसा कौन है जो शिव की आवाज क्या से आनंद प्राप्त कर सके फिर हुए मन ही मन कहता है शिव आपका कोई दोस्त नहीं है मैंने जो कुछ भी किया उनका फल प्राप्त कर रही हूं यह भाग्य तुझे ऐसा ना चाहिए यह था कि मुझे शिव के विरुद्ध किया है ब्रह्मा ऐसे संकट के समय तुम मेरी मदद करो ताकि मेरा शरीर बदल जाए ही मृत्यु मैं तुमसे निवेदन करती हूं कि तुम मुझे इस संसार से उठा लो शिवजी को इस प्रकार समाधि में 87000 वर्ष व्यतीत हुई इतने समय के पश्चात जब हुए समाधि से जागे तो उन्होंने सती को अपने सम्मुख खड़ा पाया शिव जी ने उनको अपने सम्मुख बैठाया तथा उसे बात को समाप्त कर अन्य बातें आरंभ की जिससे सती को कोई दुख ना हो इस प्रकार वह प्रसन्न रहने लगे शिव में भी अपने प्राण को ना तोड़ा यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि सती को पिछले बात का कुछ दुख ना हुआ तथा वह सभी बातें भूल गए शिवजी प्रत्येक शरीर में है बहुत से मुनिया कहते हैं कि शिव और शक्ति का बिछोर या पीछे के वचन है शिव के चरित्र हर कल्प के अलग-अलग हैं कल्प भेद का हाल किसको ज्ञात है वह जो कुछ करें सब उचित है इसमें किसी प्रकार का सन्देह नहीं करना चाहिए शिव तथा शक्ति का भेद अत्यंत गुप्त एवं कठिन है उसको कोई नहीं जान सकता शेष तथा विष्णु भी उनके चरित्र का वर्णन करने में असमर्थ है यह जानकर भक्तों को उचित है कि सन्देह रहित होकर उनकी पूजा आराधना करे हे नारद इस प्रकार जब बहुत समय व्यतीत हो गया तब शिव ने अपना वह चरित्र किया जिसको देखकर सब की बुद्धि भ्रमित हो गई

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After listening to this story Naraaj Ji said, O father of the world, throw some light on the deeds done by Shiv Ji after this. Brahma Ji has said to Narad. Sati was very happy to hear the story of Ramchandra but she was very worried thinking about her deeds. She returned fearfully and saddened. On the way she thought that I have disobeyed Shiv and believed that Ramchandra is Vishnu. Now what answer will I give to Shiv. Thinking like this, she reached near Shiv and bowed to him. Shiv Ji asked about her well being and said smilingly, O Shakti, tell us the way you tested Ramchandra. Sati lowered her head in shame after listening to this and did not give any answer. Then she meditated on Shiv Ji and saw him and came to know the character of Sati. He remembered his first statement which he had said to Vishnu at the time of Abhishek and decided in his heart that if I love Sati then my first statement is proved to be false. I cannot leave a woman like Sati. If I do not leave her then whatever I have said before is a lie. Today Shiv Ji thought again and said that I will not meet Sati, I will not tell a lie by my word. After thinking this, Shiva left Shakti and went to his place. When they left from there, a voice came from the sky that Shiva has kept his word completely, who else is there like you who keeps his word like this. Hearing these words, Sati got scared. After thinking for a while, she asked Shiva, Lord, what have you decided and you are going to tell the truth, so tell me the truth. Even after Sati asking him repeatedly, Shiva kept this thing hidden. Seeing this, Sati got convinced that Shiva has forsaken her. After some time, Sati said to Shiva, Nath, whatever I have done, I have done out of ignorance and foolishness. Now you separate milk and yourself and see because this is the way of life. I myself felt very ashamed of my deed, but Shiva did not think it right to reveal it. He kept on spending time in listening to various kinds of stories etc., but at last he had to tell the truth. In this way, they reached Kailash mountain. Shiva, after thinking in his mind, sat down under the banyan tree and started meditating on his form. Here, in the Sati temple I became very sad. Each day of mine passed like an age, but Shiv and no one else could see this condition. My sorrow kept increasing day by day. He thought that this sorrow is not worth bearing. He does not know when he will be free from this ocean of sorrow. I do not say anything to Shiv, mother. This is the result of that. Who is there in the three worlds who can get happiness by hearing Shiv's voice? Then he said to himself, Shiv, you are not a friend. Whatever I have done, I am getting the result of that. You should not have such fate that you have turned me against Shiv. Brahma, in such a time of crisis, you help me so that my body changes to death. I request you to take me from this world. Shivji spent 87000 years in this way in Samadhi. After so much time, when he woke up from Samadhi, he found Sati standing in front of him. Shivji made her sit in front of him and after finishing the conversation with her, started talking about other things so that Sati does not feel any pain. In this way, she became happy. Shiv also did not take his breath away. It is not surprising that Sati did not feel any pain about the past incident and she was very happy. You have forgotten these things. Lord Shiva is present in every body. Many monks say that Shiva and Shakti are separated or these are the words of the past. The character of Shiva is different in every Kalpa. Who knows the condition of the difference in the Kalpa. Whatever he does is right. There should not be any doubt in this. The difference between Shiva and Shakti is very secret and difficult. No one can know it. Even Shesh and Vishnu are incapable of describing their character. Knowing this, it is right for the devotees to worship them without any doubt. O Narada, when a lot of time passed in this way, then Shiva performed that character of his, seeing which everyone's mind got confused.

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