रामचंद्र जी ने कहा हे देवी एक बार शिव जी ने विश्वकर्मा को बुलाकर हमारे गौशाला में एक अति सुंदर मंदिर बनाने की आज्ञा दी तथा उसे मंदिर में एक उत्तमोतम सिंहासन बनाने का आदेश दिया इस प्रकार जब मंदिर बंद कर तैयार हो गया तो शिव ने संपूर्ण देवताओं मुनियों तथा ब्रह्म को आमंत्रित कर वहां पर एक उत्सव का आयोजन किया शिवजी ने मुझे भी बैकुंठ से लाकर वहां बैठाया तथा सब जड़ी बूटी तथा धन द्रव्य वस्त्र आदि एकत्र कर मेरे विष्णु स्वरूप का अभिषेक करना चाहा मेरे सिर पर एक बड़ा ऊंचा छत रख कर तथा दूसरे सिंहासन पर बैठकर उत्तम वस्त्र पहने और रात में जटिल मुकुट मेरे सिर पर बंधुवाया इसके पश्चात लक्ष्मी जी सहित मेरा अभिषेक किया उसे समय आपने भी लक्ष्मी का बहुत आदर किया देव नारियों गण करने लगे अनेक प्रकार के बजे बजने लग तप शिव जी ने अपने कमल रूपी मुख से ऐश्वर्या से पूर्ण वचन कहे फिर उन्होंने मुझे संपूर्ण सृष्टि का स्वामी बना दिया अनेक आशीर्वाद दिए तथा स्वयं मेरी स्तुति की फिर ब्रह्मा से कहा कि तुम भी इनको प्रणाम करके उनकी बधाई करो तथा समझो कि आज से विष्णु तुम सबके स्वामी हुए वह सबको आनंद प्रदान करेगा तथा तुम सब की इच्छाओं की पूर्ति करेगा शिवजी का यह आदेश सुनकर शब्दों ने मुझे प्रणाम किया चारों ओर से जय जयकार का शब्द मुझे लगा फिर शिव ने मुझे वरदान दिया है विष्णु तुम सबके स्वामी होकर सबके कासन को दूर करो तुम्हारी तीनों लोक में पूजा करेंगे धर्म काम तथा मोक्ष देने वाले होकर बड़े विजई वीर बनाओगे हम स्वयं भी तुम पर विजय प्राप्त न कर सकेंगे तुम ब्रह्मा के भी स्वामी हो हमने तुमको तीनों लोक प्रदान किया अब तुम अवतार लेकर तीनों लोगों का पालन करो हम तुम्हारे भक्तों को आनंद दिया करेंगे तथा उसकी मुक्ति करेंगे साथ ही तुम्हारे शत्रुओं का वध कर हर प्रकार से तुम्हारी सहायता किया करेंगे ब्रह्मा हमारी दाहिनी तथा तुम भाई भुज हो तुम्हारे अवतार जो की राम एवं कृष्ण के रूप में होंगे उनको हम स्वयं जाकर देखेंगे तथा संसार के देखने के लिए सदैव उसकी भक्ति किया करेंगे ही माता तब से जहां शिवजी निवास करते हैं मैं भी वही स्थिर रहता हूं शिवलोक मैं ही विष्णु लोक है जिसको गोलोक भी कहते हैं माय शिव के आदेश अनुसार ही अवतार लेता हूं मेरे मत्स्य आदि अनेक अवतार हो चुके हैं मैंने उन्हें अवतारों में सांसारिक कम पूरे किए हैं है देवी इस समय मेरा अवतार चारों रोपण में हुआ है राम भरत लक्ष्मण तथा शत्रुघ्न उन चारों का मन एक है परंतु शरीर अलग-अलग है मैं अपने पिता की आज्ञा से वन में आया हूं क्योंकि उन्होंने कई को वरदान दिया था मेरे साथ लक्ष्मण तथा सीता भी आई थी रावण सीता को हर ले गया है उसी को हम ढूंढते हैं आपके दर्शन से मेरे सब कार्य सिद्ध होंगे इस प्रकार मुझको तो सीता हरण अत्यंत शुभ हुआ है जिससे आपके चरणों का दर्शन प्राप्त कर सका मुझे पूरा विश्वास है कि आप मुझे सीख रही सीता का पता लग जाएगा तथा मैं शत्रु पर विजय प्राप्त कर सीता को प्राप्त करूंगा संसार में उनसे महान कौन है जिनके ऊपर शिवजी तथा उसकी कृपा हो तीनों लोक में शिव जी के समान कोई कृपा करने वाला नहीं है उनके अनेक अवतार हैं उन्होंने पापियों को बहुत उद्धार किया था तथा मैं उनका चरित्र का आऊंगा यह कहकर रामचंद्र जी ने सती से विदा मांगी इस प्रकार सती से आ गया तथा आशीर्वाद प्राप्त कर शिवजी का ध्यान धार रामचंद्र जी आगे चले गए तथा इस प्रकार अपने कार्य में संलग्न हुए
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Ramchandra Ji said, O Goddess, once Shiv Ji called Vishwakarma and ordered him to build a very beautiful temple in our cowshed and ordered him to build a wonderful throne in the temple. Thus, when the temple was built and ready, Shiv invited all the gods, sages and Brahma and organized a festival there. Shiv Ji brought me from Vaikunth and made me sit there and collected all the herbs, wealth, clothes etc. and wanted to anoint my Vishnu form. He put a big high roof on my head and sat on another throne and wore wonderful clothes and tied an intricate crown on my head at night. After this, he anointed me along with Lakshmi Ji. At that time, he also respected Lakshmi a lot. Gods and women started doing many types of instruments. Many types of instruments started playing. Shiv Ji spoke words full of Aishwarya from his lotus-like mouth. Then he made me the master of the entire universe. He gave many blessings and praised me himself. Then he told Brahma that you also bow down to him and congratulate him and understand that from today Vishnu is the master of all of you. He will give happiness to everyone and fulfill the desires of all of you. Hearing this order of Shiv Ji, the words stopped. I bowed down to him. I heard cheers from all sides. Then Shiva blessed me. Vishnu, being the lord of all, remove the troubles of all. You will be worshipped in all the three worlds. Being the giver of Dharma, Kama and Moksha, I will make you a great victorious warrior. Even we ourselves will not be able to defeat you. You are the lord of Brahma as well. We have given you all the three worlds. Now you take an incarnation and take care of all the three worlds. We will give happiness to your devotees and liberate them. Along with that, we will help you in every way by killing your enemies. Brahma is our right hand and you are my brother Bhuj. Your incarnations which will be in the form of Ram and Krishna, we will go and see them ourselves and will always worship them for the world to see. Mother, since then, wherever Shivji resides, I also remain stable there. Shivlok is Vishnu lok which is also called Golok. Mother, I take incarnation only as per Shiv's orders. I have had many incarnations like Matsya etc. I have completed their worldly tasks in those incarnations. Devi, at this time I have taken incarnation in all the four worlds. Ram, Bharat, Laxman and Shatrughan. All of them have the same mind but different bodies. I have come to the forest by my father's order because he had given blessings to many. Lakshmana and Sita had also come with me. Ravana has abducted Sita. We are searching for her. All my tasks will be accomplished by meeting you. Thus, the abduction of Sita has been very auspicious for me because I could meet your feet. I have full faith that you will find Sita who is teaching me and I will defeat the enemy and get Sita. Who is greater in the world than him who has Lord Shiva and his blessings? There is no one as kind as Lord Shiva in the three worlds. He has many incarnations. He has saved a lot of sinners and I will follow his character. Saying this, Ramchandra ji took leave from Sati. Thus, he was blessed by Sati and after receiving blessings, Ramchandra ji meditated on Lord Shiva and went ahead and thus got engaged in his task.
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