श्री शिव महापुराण कथा द्वितीय खंड अध्याय 19



ब्रह्मा जी ने कहा है नारद शिव की लीला अत्यंत थी पवित्र एवं स्वाध्याय जिसको पूर्ण रूप से वेद तथा पुराण में नहीं जानते अब मैं तुम्हें शिव जी के चरित्र के विषय में और बताता हूं एक बार शिव जी अपनी पत्नी सती सहित तीनों लोक के अवलोक नाथ चले पृथ्वी पर घूमते घूमते हुए दंड वन में पहुंचे उन्होंने वहां रामचरित्र जी को लक्ष्मण सहित देखा कि वह चारों ओर दुख से विलाप करते हुए सीता जी को ढूंढ रहे हैं उन्हें रामचंद्र जी ने देखकर प्रणाम किया क्योंकि वह पहले विष्णु को ऐसे वरदान दे चुके थे शिवजी फिर जय का कर आगे बढ़े तथा उचित समय न जानकर उनसे कुछ वार्ता ना कि इसलिए सती ने जब यह हाल देख किसी की अपने परम भक्त राम को इस प्रकार छोड़कर आगे बढ़ गए तो बोल ही अनाड़ी सर्वपरी ब्रह्म अपने ब्रह्मा विष्णु सूर्य मुनि तथा संपूर्ण सृष्टि की उत्पत्ति की है यह सब आपकी सेवा उपासना करते हैं फिर आज दशरथ के पुत्र रामचंद्र जो वन में मिले तो अपने उनको प्रणाम क्यों किया हमारी समझ में नहीं आता कि इसका कारण क्या है मुझे इसकी बहुत चिंता है शिव जी ने जब सती को ऐसी चिंतन में मग्न देखा तो हुए बोले ही सती रामचंद्र जी राम के प्रति विष्णु है जो संसार के पालन का अधिकार रखते हैं उनका अवतार भक्तों के लिए ही है फिर शिव जी ने सती को उनके अवतार लेने का कारण बताया परंतु सती का मंत्र फिर भी संतुष्ट न हुआ तब शिव जी ने विष्णु के अवतार के अनेक चरित्र सती को सुनाएं परंतु फिर भी उन्हें कोई नहीं भाया और ना कुछ विश्वास ही हुआ यह देख शिवजी ने पुनः उनसे कहा है सती यदि तुमको विश्वास ना हो तो स्वयं जाकर परीक्षा क्यों नहीं करती तुम वही करो जिसे तुम्हारा संदेश दूर हो सके मैं या वृक्ष की छाया में बैठा तुम्हारी जब तक प्रतीक्षा करूंगा जब तक तुम परीक्षा लेकर लौट ना आओगे सती शंकर की आज्ञा पाकर संदेश युक्त चली उन्होंने मन में विचार किया कि मैं किसी प्रकार उनकी परीक्षा लूं बहुत सोचने के पश्चात निश्चय किया कि मैं रामचंद्र जी के सम्मुख श्री सीता जी का स्वरूप धारण कर जाऊंगा यदि वह वास्तव में विष्णु होंगे तो मुझे अवश्य पहचान लेंगे और यदि केवल राजपत्र होंगे तो नहीं पहचान सकेंगे यह विचार करवे सीता के रूप में हंसते हुए श्री रामचंद्र जी की ओर आगे लक्ष्मण से जब सती को इस स्वरूप में देखा तो अवश्य में आकर जाना किया सती है परंतु पूर्ण ज्ञान न होने के कारण हुए कुछ ना बोले परंतु जब रामचंद्र जी ने सती को ऐसे चल स्वरूप में देखा तो वह हंस पड़े तथा शिव शिव कहते हुए बोले जिसका ध्यान करने से संपूर्ण दुख तथा भरम दूर हो जाते हैं और जिसके हृदय में सदाशिव का स्थान है आपने उसे धोखा देने का प्रयत्न किया है वह सब शिव की ही माया है धन्य है कि ऐसी माया को जो सबको इस प्रकार ना चाहती है इसके पश्चात रामचंद्र जी ने अत्यंत नम्रता के साथ अपना पिता सहित नाम लेकर पूछा शिवजी वहां है तथा है माता तुम उसने अलग वन में अकेले क्यों फिर रहे हो तुमने अपना स्वरूप त्याग कर यह स्वरूप क्यों धारण किया है सती या सुनकर आश्चर्य चकित हुई तथा उन्होंने सदा शिव का ध्यान कर रामचरित्र इंद्र जी को विष्णु का अवतार जाना फिर हुए अपना रूप धारण कर रामचंद्र जी से बोले आप मुझे पूर्ण विश्वास है कि तुम विष्णु के अवतार हो जिन्होंने राजा दशरथ से यह अवतार लिया है परंतु एक शंका है कि वह तुमसे पूछते हुए शिव जी तुम्हारा चतुर्भुजी स्वरूप देखकर कभी इतने प्रसन्न नहीं हुए जितने या स्वरूप देखकर आज प्रसन्न हुए अत्यंत प्रेम से उनकी स्तुति वह चले तथा वह तुम्हारे प्रश्न करने लगे तुम मुझे सत्य बताओ कि इसका मुख्य कारण क्या है सती के मुख से ऐसे वचन सुनकर रामचंद्र जी प्रेम बेहाल हो गए तथा उसके नेत्रों से आंसू उधर प्रवाहित होने लगे उन्होंने प्रेम निमांगन होकर चाहा कि इस समय चलकर शिव को देखें परंतु उचित समय न जानकर तथा सती की आज्ञा पाकर उन्होंने केवल शिव क तथा सती की आज्ञा पाकर उन्होंने केवल शिव का ध्यान ही किया फिर रामचंद्र जी ने कहा आज मैंने उसे देखा जो तीनों लोक में प्रगति दिखाई नहीं देता यह मेरा सौभाग्य है कि मैं उसे स्वरूप को देखा है मेरे भाग्य धन्य है कि उसकी मेरी ऊपर ऐसी कृपा है जिसका ज्ञान सिद्ध मुनि देवता आदि करते हैं तथा वेद स्तुति में मांग न रहते हैं जिनकी कृपा से बिहार की रात नंद पंचांग की स्त्री हर से तथा इंद्रधनुष को परम पद प्रदान किया है शिव जी ने किसी के ऊपर कृपा नहीं किया है श्री रामचंद्र इतना का कर सती से बोल ही देवी शिव जी ने जो कुछ मुझे प्रणाम किया है उसका यही एकमात्र कारण है कि वह मुझ पर प्रसन्न है

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Brahma ji has said that Narad Shiva's Leela was extremely sacred and self-study which is not fully known in Vedas and Puranas. Now let me tell you more about the character of Shiva ji. Once Shiva ji along with his wife Sati became the lord of all the three worlds. While roaming on the earth, they reached Dand forest, there they saw Ramcharitra ji along with Lakshman, who were looking for Sita ji while wailing in sorrow. Seeing them, Ramchandra ji saluted them because he had earlier given such a boon to Vishnu. Shivji then moved forward after praising him and not knowing the right time did not talk to him, hence when Sati saw the condition of someone leaving her devotee Ram in this manner and moved ahead, she said, 'Anaadi Sarvapari Brahma, his Brahma, Vishnu, Surya, Muni and the entire You have created the universe, all of them serve and worship you, then why did Dashrath's son Ramachandra meet him in the forest, why did he pay his obeisance to him, we do not understand what is the reason for this, I am very worried about it, when Shiv ji said to Sati like this When he saw me engrossed in contemplation, he said that Sati Ramchandra ji is Vishnu towards Ram who has the right to maintain the world, his incarnation is only for the devotees, then Shiv ji told Sati the reason for taking his incarnation but the mantra of Sati was still satisfied. When this did not happen, Lord Shiva narrated many characters of Vishnu's incarnation to Sati, but still she did not like any of them and neither did she believe in anything. Seeing this, Lord Shiva again said to her, Sati, if you do not believe then why don't you go and test yourself. Do only that which can get your message across, or I will sit in the shade of the tree and wait for you till you return after taking the test. After receiving the permission of Sati Shankar, she left with the message. She thought in her mind that I should test her somehow. I thought a lot. After this I decided that I will assume the form of Shri Sita ji in front of Ramchandra ji. If he is really Vishnu then he will definitely recognize me and if it is only a newspaper then he will not be able to recognize me. Thinking this, Shri Ramchandra ji laughed in the form of Sita. Later, when Lakshman saw Sati in this form, he definitely came and said Sati, but due to lack of complete knowledge, he did not say anything, but when Ramchandra ji saw Sati in such a moving form, he laughed and said Shiva Shiva Saying this, he said that by meditating, all the sorrows and illusions go away and in the heart of which Sadashiv has a place, you have tried to deceive him, all that is Shiva's Maya, blessed is the Maya which does not like everyone like this. After this, Ramchandra ji very politely asked his father along with his name, Shivji is there and mother is you, why are you wandering alone in a separate forest, why have you given up your form and assumed this form, Sati? Ya was surprised to hear this and He always meditated on Shiva and knew Ramcharitra Indra ji as the incarnation of Vishnu. Then he took his form and said to Ramchandra ji, I have full faith that you are the incarnation of Vishnu who has taken this incarnation from King Dasharatha, but there is a doubt that he will not accept it from you. Asking, Shiv ji has never been so happy after seeing your four-armed form as he is today. He praised him with utmost love and he started asking you questions. You tell me the truth, what is the main reason for this? Hearing such words from the mouth of Sati. Ramchandra ji became restless with love and tears started flowing from his eyes. Out of love, he wanted to go and see Shiva at this time, but not knowing the right time and after getting the permission of Sati, he saw only Shiva and after getting the permission of Sati, he saw only Shiva. After meditating, Ramchandra ji said, "Today I have seen that which cannot be seen progressing in all the three worlds. It is my good fortune that I have seen that form. My fortune is blessed that it has such a blessing on me that knowledge of which is given by proven sages, gods etc." And there is no demand in praising the Vedas, by whose grace the night of Bihar has given the supreme status to the woman of Nand Panchang and to the rainbow. Shiv Ji has not blessed anyone. Shri Ramchandra, after doing so much, just speak to Sati, Goddess Shiv Ji. The only reason why he has saluted me is because he is pleased with me.

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