श्री शिव महापुराण कथा द्वितीय खंड अध्याय 18


ब्रह्मा बोले हैं नारद सती ने सदाशिव कैसे वचन सुनकर अपने को भगवान समझा उन्होंने प्रेम पूर्वक उनसे भक्ति के अंग पूछे तथा उपासना के प्रकार जिसके पांच अंग हैं पूछे शिवा जी ने तंत्र शास्त्र का स्त्रोत कवच सहस्त्रनाम पटल तथा पद्धति सहित और अनेक प्रकार यंत्र मंत्र चेष्टा आदि गुना सहित वर्णन किया उन्होंने प्रेम में प्रीत करने वाले कथाएं तथा आनंद उत्पन्न करने वाले वृतांत अपने भक्तों की महिमा जिससे भक्ति में वृत्त होती है तथा उनके धर्म जैसे निर्धारित धार मारत राजनीतिक स्त्री धर्म वन श्रम धर्म पुत्र धर्म तथा शंकर धर्म आदि का विस्तार पूर्वक वर्णन किया सामुद्रिक शास्त्रीय तथा ज्योतिष आदि शस्त्र भी सती को बताएं इस प्रकार शिव तथा सती कैलाश में निवास करते रहे और बहुत वर्ष तक बिहार करते रहे इसके पश्चात सती ने अपने पिता के यज्ञ में शिव का मानदेय क्रोध से शरीर को प्राण रहित कर दिया वहीं सती फिर हिमाचल के घर उत्पन्न होकर शिवजी की सेवा में पहुंची नारद जितने कथा सुनकर बोल ही ब्रह्मा जी संपूर्ण सृष्टि के स्वामी सदाशिव जो किसी के भी शत्रु नहीं है उनके साथ दक्ष ने इस प्रकार से बैर क्यों किया उनकी बुद्धि क्यों और कैसे भ्रष्ट हो गई शिवजी ने अपने शक्ति को किसी प्रकार त्याग तथा सती ने शिवजी का क्या अपराध किया था जो उन्हें अपना शरीर त्यागने को विनाश हो पड़ा साथी का नादर किस प्रकार हुआ था जिन लोगों ने उनका अनादर किया था उन्हें सती ने ब्रह्म क्यों नहीं कर दिया वह स्वयं क्यों अपनी अंधेर छोड़ बैठी आदि शक्ति होते हुए भी हुए इस प्रकार के अंतर ध्यान हुए यह चरित्र मेरे हृदय में संदेह बढ़ रहा है सबसे बड़ा आश्चर्य तो यह है कि सती दक्ष प्रजापति को अत्यंत प्रिय भी थी फिर दक्ष ने उसके प्रति अप्रिय व्यवहार कैसे किया नारद की यह बात सुनकर पितामह ब्रह्मा ब्रह्मा जी ने कहा है पुत्र यह सब शिव जी की महिमा है इनमें और किसी का दृश कैसे किया जाए आज तो अब हम तुम्हें यह वृतांत सुनाते हैं जिस प्रकार श्री शिव जी ने दक्ष प्रजापति से शुद्ध बुद्धि को फास्ट करके उनसे पर बढ़ाया था हे नारद एक बार दक्ष प्रजापति ने एक यज्ञ राज आया उसका उत्सव में भाग लेने के लिए सभी देवता तथा ऋषि मुनि आदि अपने पत्तियों सहित दक्ष के घर पहुंचे मैं भी अपने सेवकों सहित यज्ञशाला में गया मुझे देखकर सभी सभा सदस्यों में अत्यंत प्रसन्नता हुई कुछ देर बाद जब भगवान सदा शिव भी वहां पहुंचे तो हम सब लोग उन्हें देखते ही उठकर खड़े हो गए तथा हाथ जोड़कर बहुत प्रकार से उसकी स्तुति करने लगे चारों ओर जय जयकार जय शिव का आनंद कुंज उठा हमने प्रार्थना करते हुए कहा हे प्रभु आपने इस यज्ञशाला में उपस्थित होकर हम लोगों के ऊपर अत्यंत कृपा किया है है नारद हम लोगों द्वारा इस प्रकार की कही स्तुति को सुनकर शिवजी अत्यंत प्रसन्न हुआ था दो प्रांत उसकी आज्ञा से हम सब लोग किया था स्थान बैठ गए उसे समय हम सभी सभा सदस्य अपने को परम धन्य मानकर मन ही मन प्रसन्न हो रहे थे इसके कुछ देर बाद ही उसे यज्ञशाला में दक्ष प्रजापति भी आए उन्होंने देखा सब देवता तथा ऋषि मुनि फिर उठ खड़े हुए तथा दंडवत प्रणाम करने की उपरांत उसकी स्तुति करने लगे मैं विष्णु जी तथा शिवजी अपने आसन पर जिओ के त्यों बैठे रहे या देख-दङ्क्ष ने क्रोध भारी सृष्टि से देखते हुए मुझे प्रणाम किया फिर अत्यंत अहंकार पूर्व अपने आसन को ग्रहण किया तब दो प्रात जब दक्ष ने या देखा कि उसके जगमता शिव जी ने भी उसे प्रणाम नहीं किया तब वह अत्यंत अहंकार से भरकर शिवजी एक प्रति कूट शब्द कहने लगा शिवजी की माया के वशीभूत होकर मृत्यु को प्राप्त होने वाला दक्ष शिवजी की निंदा करता हुआ समस्त सभा सदस्यों को संबोधित करते हुए इस प्रकार बोला है सभा सदस्यों आप लोग मेरी बात को मन लगाकर सुन इस सभा में उपस्थित बड़े-बड़े देवताओं ने मुझे हाथ जोड़कर दंडवत किया परंतु शिव ने जगमता होते हुए भी मुझे प्रणाम ना करके अपने मूर्खता का भारी परिचय दिया शिव का यह कार्य वेद के विरुद्ध है ना तो इसके माता-पिता का ही कुछ पता है और ना इसके कल सेल के संबंध में कोई कुछ जानता है हस्त विधु मानव का या धर्म है कि वह मूर्ख को दंड अवश्य दें यदि वह ऐसा ना करें तो संसार में उपदंड बहुत पढ़े जाएगा इसलिए मैं शिव को श्राप देता हूं और अपने ब्राह्मण वंश का तेज प्रगति करता हूं

TRANSLATE IN ENGLISH 

Brahma has said that Narad Sati how after listening to the words of Sadashiv, he considered himself God. He lovingly asked him about the parts of devotion and the types of worship which have five parts. Shiva ji asked about the source of Tantra Shastra, Kavach, Sahastranam Patal and method and many other types of Yantra Mantra Chestha. Along with Adi Guna, he described the love-loving stories and joy-inducing stories, the glorification of his devotees which leads to devotion and his religions like political religion, women's religion, forest labor religion, son's religion and Shankar's religion etc. in detail. Described the weapons like Samudraika scriptures and astrology etc. were also told to Sati. In this way, Shiva and Sati continued to reside in Kailash and continued to live in Bihar for many years. After this, Sati, in her father's yagya, killed Shiva out of anger and killed her body. Sati was again born in the house of Himachal and reached the service of Lord Shiva. As soon as Narad heard the story, Brahma ji said, Sadashiv, the master of the entire creation, who is not the enemy of anyone. Why did Daksh have enmity with him in this way? Why and how did his intellect get corrupted? How did Shivji sacrifice his power and what crime did Sati commit against Shivji that he had to give up his body, how was his companion dishonored, why did Sati not convert those who disrespected her into a brahma? Why did she leave her darkness and in spite of having the Adi Shakti, did such differences occur in this character? Doubts are increasing in my heart. The biggest surprise is that Sati was very dear to Daksh Prajapati, then how did Daksh behave unpleasant towards her. Hearing these words of Narad, Grandfather Brahma Brahma Ji said, Son, all this is the glory of Lord Shiva, how can anyone else be seen in these? Today, we will tell you this story of how Lord Shiva gave fast to the pure intellect from Daksh Prajapati. O Narad, once Daksh Prajapati came to participate in a Yagya festival, all the gods, sages, sages etc. reached Daksh's house along with their leaves. I also went to the Yagya hall along with my servants. Seeing me, all the members of the assembly gathered. I felt extremely happy, after some time, when Lord Shiva also reached there, we all stood up as soon as we saw him, folded our hands and started praising him in many ways. All around, Jai Shiv's Anand Kunj was raised. We prayed and said, Lord, you have shown great kindness to us by being present in this sacrificial fire. Narad, Lord Shiva was very happy to hear such praise from us. By his order, we all went to two provinces and sat down. At that time, we all gathered together. The members were feeling happy in their hearts considering themselves extremely blessed. After some time, Daksh Prajapati also came to the Yagyashala. He saw that all the gods and sages stood up again and after paying obeisance, started praising him. I am Lord Vishnu and Shivji remained sitting on his seat as he was, or saw that Daksh, looking at me with anger and heavy creation, bowed down to me, then took his seat with extreme arrogance. Then two mornings, when Daksh saw that even his luminary Shiv ji did not bow down to him. Then, filled with extreme ego, Shivji started uttering another code word, Daksh, who died under the influence of Shivji's illusion, condemned Shivji and addressed all the assembly members and said in this manner, assembly members, you all take my words to heart. Listen carefully, all the big gods present in this meeting bowed to me with folded hands but Shiva, despite being bright, showed his foolishness by not paying respect to me. This action of Shiva is against the Vedas and neither does his parents have anything to do with it. Neither do I know nor does anyone know anything about its tomorrow's sale, or is it the religion of the Hasta Vidhu Man that he must punish the fool, if he does not do so then there will be a lot of punishment in the world, therefore I curse Shiva and my Brahmins. I make rapid progress in my lineage

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ