श्री शिव महापुराण कथा द्वितीय खंड अध्याय 18 का भाग 2


हे नारद इतना कह कर दक्ष ने शिव जी को या श्राप दिया की है शिव तुम मूर्ख के सामान कम करने वाले हो अतः तुम्हें आज से किसी भी यज्ञ में भाग नहीं मिलेगा दक्ष के इस शराब को सुनकर शिवजी ने कोई उत्तर नहीं दिया वह चुपचाप बैठे रहे परंतु उसे समय नदी से नहीं मर गई वस्तु नदी गांड में अत्यंत क्रुद्ध होकर दक्ष से कहा है दक्ष तूने शिव जी को श्राप देकर अपने परम मूर्खता का प्रदर्शन किया है क्या तू यह नहीं जानता कि शिवजी के द्वारा इस संपूर्ण सृष्टि का भरण पोषण होता है फिर भी जो तू शिव जी के आशु कहता है यह तेरी मूर्खता नहीं तो क्या है यह पापी तूने ऐसे परम प्रधान पुरुष की निंदा की है अस्तु मैं तुम्हें या श्राप देता हूं कि तेरा यह शिव निंदक मूर्ख ना रहे और तेरा कोई भी मनोरथ पूर्ण ना हो हे नारद नदी गांड के मुख से या शराब सुनकर दक्ष प्रजापति ने अत्यंत भयभीत हो उन्हें भी यह श्राप दिया है नदी तुमने मेरा अपमान किया है वस्तु संसार में तुम्हें दुखी रहोगे तुम्हारा स्वरूप विचित्र होगा वेद के विरुद्ध आचरण करने के कारण तुम्हारी बुद्धि नष्ट हो जाएगी और तुम भोज धोने के काम में आओगे यह श्राप देकर दक्ष प्रजापति ने ब्रिंग शादी की ओर जो शिव से द्वेष रखते थे देख दक्ष ने इस रात को सुनकर हुए सब बड़े प्रसन्नता हुए यह देख नदी को फिर क्रोध हो आया तब आपने अपने तब उसने अपने अप्रैल में महिमा को दिखाते हुए जिन लोगों ने शिवजी की निंदा की थी उन्हीं की ओर देखते हुए कहा तुम सब लोग व्यर्थ ही ब्रह्मा के वश में उत्पन्न हुए हो तुम तत्वों का ज्ञान नहीं रखते हो हर काम क्रोध लोभ आदि के वशीभूत होकर शिव जी के विरुद्ध आचरण करते हुआ था मैं तुम्हें भी यह श्राप देता हूं कि तुम्हें शुभ कर्मों का फल प्राप्त न होग और तुम कभी भी परम पद को नहीं पा सकोगे जो लोग शिवजी से द्वेष रखने वाले हैं वह सब वेद के विरुद्ध चलकर ब्राह्मण के कर्मों को त्याग बैठेंगे हुए कुकर्म करेंगे तथा अंत में नर्क वास पाएंगे यह नारदीस प्रकार नंदगढ़ में जब ब्राह्मण को श्राप दे दिया उसे समय शिवजी हंसते हुए कहा है सभा सदस्यों हम तुम्हें आप सच्चे ज्ञान का उपदेश करते हैं उसे ज्ञान को सुनकर कोई आप प्रसन्न न हो वेद को अक्षर तथा मंत्र कहा जाता है उसमें भी सूक्त को अत्यंत आनंद देने वाला कहा गया है इसलिए ज्ञानियों के मन सूक्त में लगे रहते हैं और वह बुद्धिमान जान अपने मन को सदैव अपने वास में किए रहते हैं एस्टन में नदी से भी यह कहता हूं कि है नदी तुम विद्यमान होते हुए भी अपने हृदय में क्रोध को गेहूं स्थान दे रहे हो यह उचित नहीं है दक्ष ने मुझे कोई श्राप नहीं दिया यह ठीक है कि उसने जाने योग्य बात को जानने में अपना मन नहीं लगाया है और इस प्रकार सभा में मेरा अपमान कर अपने अज्ञान को प्रदर्शित किया है फिर भी तुम्हें या ज्ञान लेकर लेना चाहिए कि इस जगत के संपूर्ण कर्मों को करने वाले हमें हैं हमारी इच्छा है और हमें इसके भीतर बाहर सब स्थान पर निवास करते हैं हम शुद्ध और अशुद्ध भूत प्रेत देवता देते आदि तीनों लोकों में प्रणीत के उत्पन्न करने वाले हैं अस्तु तुम्हें या उचित है कि हमारे इन वचनों को सुनकर अपने क्रोध को दूर कर दो और जब किसी को भी श्राप आदि मत दो यह नारद शिवजी के यह वचन सुनकर नदी करने अपने क्रोध शांत कर दिए दादू प्रांत शिवजी कैलाश पर्वत को चले गए दक्ष प्रजापति भी इस क्रोध में भरा हुआ अपने घर चला गया उसे दिन से वह सदैव शिवजी की निंदा करने लगा यदि वह किसी शुभ भक्त को देख लेता तो उसे बहुत क्रोध आ जाता था शिवजी की माया ऐसी अपरंपार है कि वह कब किस क्या कर बैठे इसका कोई पता नहीं चलता

TRANSLATE IN ENGLISH 

O Narad, after saying this, Daksh cursed Lord Shiva that Shiva, you are going to reduce the things of a fool, hence from today onwards you will not get a part in any Yagya. Hearing this liquor of Daksh, Lord Shiva did not give any answer, he sat silently. But he did not die due to the time of the river. The river got very angry in the ass and said to Daksh, Daksh, you have shown your ultimate foolishness by cursing Lord Shiva. Don't you know that this entire creation is sustained by Lord Shiva? Still, what you say about Lord Shiva is not your foolishness, then what kind of a sinner are you? You have condemned such a supreme being. So, I curse you that this Shiva critic of yours should not remain a fool and none of your wishes should be fulfilled. O Narada river, Daksh Prajapati should be extremely frightened after hearing the drink from the mouth of the ass or alcohol. He has also given this curse to him, river, you have insulted me, you will remain unhappy in the material world, your appearance will be strange, your intelligence will be destroyed due to your behavior against the Vedas. Daksh Prajapati, who had a hatred for Shiva, looked towards the marriage by giving a curse that you will be used to wash the feast. Daksh, hearing about this night, became very happy and seeing this, the river got angry again and then he While showing his majesty in April, he looked towards those people who had condemned Lord Shiva and said, All of you have been born in vain under the influence of Brahma, you do not have the knowledge of elements, every work is under the influence of anger, greed etc. Shiva I curse you also that you will not get the fruits of your auspicious deeds and you will never be able to attain the supreme position. All those who are hating on Lord Shiva, they are acting against the Vedas and doing the deeds of Brahmins. They will commit evil deeds while renouncing the world and in the end they will reside in hell. This is the way Nardis cursed a Brahmin in Nandgarh when Shivji laughingly said, "members of the assembly, we preach true knowledge to you; no one should be happy after listening to this knowledge." Vedas are called letters and mantras. In that too, Sukta is said to give immense pleasure, hence the minds of wise people remain engaged in Sukta and those wise souls always keep their mind in their abode. I say this even to the river in Aston. That is the river, despite being present, you are giving wheat place to anger in your heart. This is not right. Daksh did not curse me. It is right that he did not put his mind to know the thing worth knowing and thus in the meeting. You have shown your ignorance by insulting me, still you should take the knowledge that we are the ones who do all the deeds of this world, it is our will and we reside everywhere inside and outside it, we give pure and impure ghosts and gods. Adi, he is the creator of Praneet in all the three worlds, so it is appropriate for you to listen to these words of ours and remove your anger and do not curse anyone etc. After listening to these words of Lord Shiva, Narad calmed down his anger like a river. Dadu province, Shivji went to Mount Kailash. Daksh Prajapati also went to his home filled with anger. From that day onwards, he always started criticizing Shivji. If he saw any auspicious devotee, he would get very angry. Shivji's Maya was so limitless. There is no telling when he will kiss and what he will do.

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ