श्री शिव महापुराण कथा द्वितीय खंड अध्याय 17



ब्रह्मा जी ने कहा हे नारद भक्ति की ऐसी प्रशंसा सुनकर सती अत्यंत प्रसन्न हुई उन्होंने दोनों हाथ जोड़कर सदाशिव से कहा हे प्रभु आपने मेरे ऊपर कृपा करके भक्ति की प्रशंसा की है परंतु मेरी इच्छा है कि आप उसके संपूर्ण अंगों का वर्णन करें शिवजी ने हंसते हुए कहा हे सती मैं भक्ति का संपूर्ण वृतांत जिसको सुनकर प्रेम उत्पन्न होता है तथा तीनों लोकों के दुख सुख नष्ट हो जाते हैं सुनाता हूं भक्ति को परम महत्व कहकर उसकी सर्वोत्तम वर्णन किया गया है वह दो प्रकार की है एक ही स्वाभाविक जो प्राकृतिक से उत्पन्न होती है दूसरी वेदी जो परम बंद से प्राप्त होती है जिसमें तीनों गुण पाए जाएं उसको सत्गुण भक्ति कहते हैं जो गुण रहित हो उसे आघूर्ण भक्त कहते हैं उसके दो भाग हैं भक्त लोग जिसमें बड़ी श्रद्धा में मन लगाते हैं इन दोनों करो के दो-दो भाग हैं जब उनको सावधानी से धारण किया गया जाता है तब वह पूर्ण होते हैं वह इस प्रकार है अपने स्वामी की कीर्ति सोना कीर्तन अथवा उसका वर्णन करना स्मरण करना सेवन अर्थात सेवा करना दसवत तो अर्थात दसवत भाव से पूजन करना वंदना अर्थात वंदना करना सब अर्थात मित्रों की भांति रहना एवं आत्म समर्पण अर्थात स्वयं को अपराह्न कर देना भक्ति के इन्हीं नव भागों को मुनि भी बताते हैं इस पौधा भक्ति के अतिरिक्त और भी बहुत से प्रकार है जिसका धारण करने से मन अत्यंत प्रसन्न होता है जैसे बरगद बेल तुलसी तथा गंगा आदि की सेवा अतिथियों की सेवा ब्राह्मणों के अधीनता तथा तीर्थ की स्थिति आदि नारद इतना कह कर शिवजी बोले आप मैं अलग-अलग नव प्रकार के अर्थ वर्णन करता हूं जब मन वचन कर्म से मेरी प्रशंसा सुन भक्त बधाई का विचार कर तथा मां को ट्रेन करें तो उसको श्रवण कहते हैं जब फूल धन व्यवहार तथा इस स्वामी के गर्व को छोड़कर हमारी कथा को सुनने जिस स्थान पर कथा होती है उसके नित्य प्रति सजाकर सूत्र करता रहे उसका शास्त्र की भली प्रकार पूजन कर अनेक प्रकार की वस्तुएं उसे पर चढ़ाई इसकी प्रकार उनको पाठ करने वाले की पूजा करके अच्छे वस्त्र द्रव्य पदार्थ फल फूल आदि से स्तुति करें तब उसका उचित फल मिलता है यही श्रवण की प्रशंसा है यह नारद आप मैं तुम्हें कीर्तन के विषयों में बताता हूं जो अपने मन को निरब्लैप करके मेरे जन्म कर्म तथा गुण को देखें उनके उच्च स्वर से पाठ करें उसी को कीर्तन कहते हैं कम कल तथा कम रहित होकर संसार की लज्जा तथा इच्छा का त्याग कर हृदय से हमारा गुणवान करें तो ऐसे कीर्तन करने से अच्छे फल की प्राप्ति होती है जो सृष्टि जड़ चेतन जीवित निर्जीव चलने वाले तथा एक ही स्थान पर स्थिर रहने वाले सब्जियों में शिव को देख उसकी सर्वोत्तम समझकर नीरज पर रहा करें उसमें स्मरणीय कहते हैं ऐसे स्मरण से अत्यंत आनंद मिलता है सेवन के अर्थ है की नित्य प्रात कालूटकर सर्वप्रथम अपने गुरु का ध्यान करें फिर नियम अनुसार नित्य नैतिक आदि से सूचित हो रेशमी वस्त्र धारण कर मस्तक पर टीपू लगावे रुद्राक्ष की माला पहने धरती को शुद्ध कर बैठने का उत्तम स्थान बनाए तथा हृदय स्वरूप कमल में मेरा अपने स्वामी के स्वामी का प्रेम से ध्यान लगाए पूजन की सामग्री तैयार होने के पश्चात उसका कर्म पूर्वक पोषण शोषण से पूजा करें नेवी लगाकर आरती करके दंडवत करें अच्छे सुगंधित पुष्प बिछाना उसे ऊपर अपने स्वामी को सुलावे तथा सदेव मेरी गुना का ज्ञान कर जीवन व्यतीत करें संध्या समय फिर मुझे अपने स्वामी को जगाएं तथा संध्या आदि से मेरी आरती करें नाम एवं स्तुति वर्णन करें कुछ रात बीती हो जाने पर गाने बजाने का सम्मान एकत्र करें आनंदपूर्वक बजे बजाना कर भोग लगावे पुनः आरती करें इसके पश्चात उत्तम संयम बेचकर मुझ पर स्वामी को उसे पर सिलाए इस प्रकार की सेवा करने वाले भक्त लोग परलोक में आनंद प्राप्त करता है और तीनों लोक उसके चरणों में नमस्कार करते हैं शिवजी बोल ही सती अब मैं आचरण का वर्णन करता हूं इसे ध्यान पूर्वक सुनो जो बेल पत्र पुष्प तथा चंदन को पवित्रता एवं विचार के साथ लोगों से पूछ कर लगाए धर्म की रीति के अनुसार जिसने धन संग्रह किया हो उसे पूजा के बरतन तथा सामग्री एकत्र करें अपने स्वामी पृष्ठ देव की पोषण पोषण पूर्ण निश्चित पूजा करें समय तथा नियम में कोई कमी न होने पाए इसी को आचरण कहते हैं जो मेरे मंदिर में फुलवारी लगवाए तथा मेरे लिंग की स्थापना करें तथा मेरे लिए उत्सव करें यह सब आरक्षण के भाग हैं जो इस प्रकार मेरा अर्चन करता है वह दोनों लोगों में सिद्धि प्राप्त करता है आप मैं वंदना की व्याख्या करता हूं सती मंत्र का जाप करें तो बारंबार उसका ध्यान करना चाहिए और मां को एकाग्र करके प्रणाम करना चाहिए यही वंदना है वंदना का फल तीनों लोकों में प्रसिद्ध है इसी के प्रताप से संकडिक निर्भय रहते हैं

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Lord Brahma said, O Narad, Sati was very happy to hear such praise of devotion. She folded both her hands and said to Sadashiv, "O Lord, you have praised me for your kindness, but I wish that you describe its complete parts." Shivji laughed. O Sati, I am narrating the complete story of devotion, on listening to which love arises and the sorrows and joys of the three worlds are destroyed. Bhakti has been best described by calling it of supreme importance. The second altar which is obtained from Param Bandh in which all the three qualities are found is called Satgun Bhakti, the one which is without qualities is called Aghurna Bhakta, it has two parts in which the devotees put their mind with great devotion, two parts each of these two. When they are worn with care, then they become complete. They are as follows: To sing praises of one's master, to kirtan or to describe him, to remember, to consume, that is, to do service, to worship, that is, to worship in the tenth sense, to worship, that is, to worship, to all, that is, to friends. Living like this and surrendering oneself i.e. surrendering oneself, the sages also tell about these new parts of devotion. Apart from this plant devotion, there are many other types whose wearing makes the mind very happy like banyan vine, basil and Ganga etc. Service to guests, subordination to brahmins and status of pilgrimage etc. Narad Having said this, Shivji said, I describe different types of meaning to you. When the devotee hears my praise through mind, speech and action, thinks of congratulation and trains the mother, then she should Shravan says that when he listens to our story leaving aside the flowers, wealth, behavior and pride of this Swami, he keeps reciting sutras daily at the place where the story takes place, worships the scriptures properly and offers many types of things to him and thus recites them. After worshiping the person, praise him with good clothes, material, fruits, flowers etc., only then he gets the proper result. This is the praise of hearing. This Narad, I tell you about the subjects of Kirtan, those who should look at my birth, karma and qualities without any hesitation in their mind. Recite in a loud voice, that is called Kirtan, and by becoming free from less and by giving up the shame and desires of the world and enriching ourselves from the heart, then by reciting such Kirtan, we get good results which will help in making the universe inanimate, animate, living, inanimate, moving and one. Seeing Shiva among the vegetables which remain stable at one place and considering him to be the best, then stay on Neeraj. It is said that there is remembrance in it. Such remembrance gives immense pleasure. The meaning of its consumption is that every morning after waking up, first of all meditate on one's Guru and then as per rules daily, do moral etc. Be informed, wear silk clothes, put Tipu on the head, wear a Rudraksha rosary, purify the earth, make it a good place to sit, and in the form of a lotus in the form of a heart, meditate with love on the Lord of my Lord. After the material for worship is ready, nurture and exploit it with action. Worship me by applying navy and do aarti and do aarti. Spread nice fragrant flowers on top of it. Make your master sleep and always live your life knowing my virtues. Then in the evening wake me up your master and do my aarti in the evening etc. Name and praise, describe something. When the night is over, collect the honor of playing the song, play the bell joyfully, offer offerings, perform the Aarti again, after this, sell the Lord with perfect restraint and stitch it on me. Devotees who do this kind of service attain happiness in the next world and all the three worlds are theirs. Lord Shiva says namaskar at the feet of Sati. Now I describe the conduct. Listen to it carefully. The one who applies the vine leaves, flowers and sandalwood after asking people with purity and consideration, according to the customs of religion, the one who has collected wealth should be worshiped. Collect utensils and materials, provide nourishment to your Lord Page Dev, do proper and proper worship, do not let there be any slackness in time and rules, this is called conduct, plant flowers in my temple, establish my Linga and organize festivals for me, all these are reservations. The one who worships me in this way attains success in both the people. You, I explain the worship. If you chant Sati Mantra, you should meditate on it repeatedly and should pay attention to the mother with concentration. This worship is the result of worship. He is famous in all the three worlds and due to his glory Sankadik remains fearless.

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