श्री शिव महापुराण कथा द्वितीय खंड अध्याय 17 का भाग 2



श्री शिव जी बोले ही सती आप मैं तुम्हें दसवत भाव के विषय में बताता हूं जो इंद्रियों को वश में करके मुझे पसंद करता रहे जो मेरे प्रसन्नता से मन तथा शरीर की कामवासना को जड़ से नष्ट करें तो वह दोनों लोगों का सुख प्राप्त करता है जिस मनुष्य के विचार में दुख सुख बुरा भल राग द्वेष एंजॉय पर आ जाए लाभ तथा हानि बराबर हो तथा जो इस बात पर पूर्ण विश्वास रखता हो कि जो कुछ भी परम ब्रह्म हमारे लिए करता है वह सब हमारी भलाई के लिए ही है ऐसे दिन विचार को संघ कहते हैं ऐसे मनुष्य को तीनों लोकों में कोई वस्तु दुर्लभ नहीं होती जो मनुष्य अपने देश सेवक पशुधन तथा क्रॉस आदि समस्त वस्तुओं को त्याग कर्म तथा उनका मुंह दूर कर मेरे लिए संकल्प कर दे और उनके लिए फिर कोई पर्याप्त न न करें उसकी प्रति तथा ध्यान ना करें उसे आत्मसमर्पण कहते हैं इसमें गर्व दूर हो जाता है जब तक मनुष्य इसको मां वाणी तथा कर्म से नहीं करता तब तक वह अपने इस स्वामी मुझको प्राप्त नहीं कर पाता ऐसे मनुष्य को सब वस्तुएं दुर्लभ हैं कोई वस्तु दुर्लभ नहीं है मैं सदैव रात दिन उसकी रक्षा करता हूं तथा उसके निकट ही निवास करता हूं भक्ति के केवल यही नव अंग है शिव जी ने कहा है सती अब मैं भक्ति के ऊपर का वर्णन करता हूं उपांग दास है उसमें से प्रत्येक दुख को नष्ट करने वाला है इसलिए व्हाट तथा पीपल की सदैव पूजा करनी चाहिए और उनके जल से सीजन करना चाहिए उसका अनादर करना मेरा अपमान करना है उसकी परिक्रमा दाहिनी और से करनी चाहिए इन दोनों वर्षों की सेवा से ही निर्भय परम पाठ प्राप्त होता है दूसरे बिरला ब्रिज की सेवा करनी चाहिए और उसको मेरे ही सारी समझना चाहिए उनके पूजन से कोई कष्ट नहीं रहता उनको जल से खींचकर उसका पूजन करना तथा उसकी आरती उतारना उचित है जो लोग नित्य ऐसा करते हैं उन्हीं को हमारा पूजन का फल प्राप्त होता है तीसरा उमंग रेवा अर्थात नर्मदा सुरसरि अर्थात गंगा आदि का पूजन कहलाता है उनमें पवित्रता के साथ स्नान करने से बड़ा पुण्य मिलता है जैसे कि व्यास जी आदि ने कहा है चौथा उमंग गुरु सेवा है उसकी स्तुति वेद करती है इनके बारंबार और कुछ नहीं पांचवी हमारे 14 आदि जितने बारात है उनमें हमारा पूजन कर व्रत रखें रात्रि भर जागरण करें उनसे जी पुण्य की प्राप्ति होती है वह वेदों में प्रकट है इसी प्रकार शिवरात्रि मांस के दोनों प्रदोष तथा हर महीने की अष्टमी के व्रत बड़ी महिमा रखती है तथा उद्यम गति प्राप्त करते हैं इन व्रत से भी आधा कृत गिरिराज आदि ने बहुत आनंद प्राप्त किया है छाता रेवा साधन अर्थात से लोक की आराधना करना इसके अंतर्गत जब किसी शिव भक्त को अपने यहां आता हुआ देखा तब उसका समूचे आदर करें उनको अपने यहां देख सब कुटुंब प्रसन्न होकर सब प्रकार से उसकी सेवा से तात्पर्य रहे तथा उसकी पूजन आदि करें शुद्ध भोजन द्वारा उसका स्वागत करें यह सेवन आराधना अत्यंत प्रसन्नता प्राप्त करने वाले हैं उसी के प्रताप से अधिकतर लोग तीनों लोक की अधिपति हुए हैं सातवां आई सामान्य है अर्थात जो कोई भी द्वार पर भिक्षा हेतु आवे उसको यथाशक्ति कुछ अवश्य देना चाहिए इसमें लोक परलोक दोनों ही बातें हैं यह कभी भी भुला देने के योग्य नहीं है आठवां उमंग ब्राह्मण का सम्मान है इसके द्वारा बहुत से मनुष्यों में परम पद प्राप्त किया है सदाशिव बोले हे देवी मैं ब्रह्मा शरीर हूं इसलिए ब्राह्मण की पूजा उसको मेरे सामान समझ कर करनी चाहिए नया उमंग तीर्थ तथा क्षेत्र में ब्रह्मण आदि है समस्त तीर्थो में से साथ पुरानियों का प्रीत वर्णन किया गया है उसमें आनंदवन अर्थात श्री काशी जी का बहुत महान है इसलिए नियमित रीति के अनुसार प्रेम पूर्वक काशी जी की परिक्रमा करनी चाहिए तथा धर्मशास्त्र के कथा अनुसार सब बातें करनी चाहिए सब तीर्थ का फल उसको प्राप्त होता है जिसकी मृत्यु काशी में होती है यह बात वेदों में भी कही गई है दसवां बड़ा धर्म आयशा अर्थात किसी जीव को कष्ट न पहुंचना जिसने हिंसा को त्याग कर हिंसा व्रत को अपनाया है वह मानव संसार के समस्त धर्म का प्राप्त कर सकता है यह अहिंसा व्रत अति प्रसन्नता देने वाले हैं है देव जिनके हृदय में तुम वास करती हो वही मुझे अत्यंत प्रिय है लोक काली युग में ज्ञान वैराग्य को कम चाहे उसे योग में केवल भक्ति को ही प्रमुख समझ समझना चाहिए हे पार्वती तुमने मुझसे जो कुछ पूछा मैंने उसका तुम्हें पूरी तरह से उत्तर दिया इस वृत्तांत को जो सुनेगा आठवा पाठ करेगा वह भी आनंद पद प्राप्त करेगा

TRANSLATE IN ENGLISH 

As soon as Shri Shiv Ji said, Sati, I will tell you about the tenth feeling, the one who keeps liking me by controlling his senses and who destroys the lust of mind and body by my pleasure, then he gets the happiness of both the people. In the thoughts of a person, whether there is sorrow, happiness or bad, attachment, hatred or enjoyment, profit and loss are equal and who has full faith in the fact that whatever Supreme Brahma does for us is all for our good, on such a day, the thought Sangha says that there is no shortage of anything in the three worlds for such a person who renounces his country, his countrymen, his livestock, his cross etc. and keeps away from them all the things and makes a resolution for me and never does anything good enough for him. Copy of that and Do not meditate, it is called surrender, pride goes away in it, unless a man does it through words and actions, he is not able to attain his master, I, for such a man, all things are rare, no thing is rare, I am always there at night. I protect him every day and reside near him. This is the only new part of devotion. Shiv ji has said Sati. Now I describe the above devotion. Every appendage of it is a slave and it is the destroyer of sorrow, hence what and people. Should always be worshiped and seasoned with its water. Disrespecting it is insulting me. One should circumambulate it from the right side. It is only through the service of these two years that the ultimate lesson of fearlessness is attained. Second, one should serve Birla Bridge and it should be served only by me. It should be understood that there is no problem in worshiping him. It is appropriate to worship him by pulling him from the water and perform his aarti. Those who do this regularly, only they get the fruits of our worship. The third excitement is called worship of Reva i.e. Narmada Surasari i.e. Ganga etc. Among them, one gets great virtue by taking bath with purity, as Vyas ji etc. have said, the fourth enthusiasm is to serve the Guru, the Vedas praise him repeatedly and are nothing else, fifth, worship us in all the processions of ours, etc. and keep fast throughout the night. If one awakens, one attains virtue, it is revealed in the Vedas. Similarly, the fasts of both Pradosh of Shivratri meat and Ashtami of every month hold great glory and the ventures gain momentum. Even from these fasts, half-hearted Giriraj etc. got a lot of happiness. Under this, when you see a Shiva devotee coming to your place, then you should respect him completely. Seeing him at your place, all the family members should be happy and should serve him in every way and worship him etc. pure. Welcome him with food, this consumption and worship give immense happiness. Due to his glory, most of the people have become the rulers of the three worlds. The seventh eye is general, that is, whoever comes to the door for alms, he must give something as per his capacity. This includes both the world and the hereafter. These are the things, it is never worth forgetting, the eighth Umang is the respect of Brahmin, through this I have attained the supreme position among many human beings, Sadashiv said, O Goddess, I am the body of Brahma, hence the Brahmin should be worshiped considering him as my equal, New Umang Tirtha. And there are Brahmins etc. in the area. Along with all the pilgrimages, the love for the old ones has been described in it, Anandvan i.e. Shri Kashi ji is very great, hence one should circumambulate Kashi ji with love as per the regular ritual and everything should be done as per the scriptures. The fruit of all pilgrimages is attained by the one whose death is in Kashi. This has also been said in the Vedas. The tenth biggest religion, Ayesha i.e. not causing any harm to any living being, the one who has given up violence and has adopted the vow of non-violence, is the leader of all the religions of the human world. This fast of non-violence gives immense happiness, God, in whose heart you reside, is very dear to me. In the Kali Yuga, knowledge should be less than dispassion, it should consider only devotion as the main thing in yoga, O Parvati, you told me. Whatever I asked you, I have answered you completely. Whoever listens to this story and does the eighth lesson will also attain the state of bliss.

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ