इतनी कथा सुनकर शौकत आदि ऋषियों ने कहा यह सूट की सती के विवाह का वृतांत सुनने के उपरांत नारद जी ने ब्रह्मा जी से क्या बातें पूछी वह आप हमें बताने की कृपा करें पौराणिक सूट जी ने बोले है ऋषियों जब देवर्षि नारद जी इतना कथा सुन चुके तो उन्होंने ब्रह्मा से कहा है पिता विवाह के उपरांत शिव तथा सती ने जो चरित्र किया उन्हें आप मुझसे कहने की कृपा करें यह सुनकर ब्रह्मा जी बोले हैं नारद एक दिन शिव जी को एकांत में बैठे हुए देखकर सती उनके पास पहुंची और स्तुति प्रश्न करने के उपरांत बोली हे प्रभु अपने तीनों लोकों का कल्याण करने के निर्माता अवतार ग्रहण किया है यह मेरा परम सौभाग्य है जो आपने मुझे अपने पत्नी के रूप में अंगिरा किया है यह भक्त वात्स्यालयी मैं आप ही सार्जेंट हूं अब मैं आपसे अपनी उषा अभिलाष को प्रकट करती हूं जिसे मैं आज तक गुप्त रखा है है स्वामी इस समय आपको अपने ऊपर प्रसन्न देखकर ही माया बात कह रह हूं मेरी अभिलाषा यह है कि मैं वर्षों तक आपके साथ बिहार आदि का आनंद प्राप्त किया परंतु परम महत्व विचार कभी नहीं किया है अब मेरे हृदय में वैराग्य उत्पन्न होने के कारण परम तत्व जानने की अभिलाषा जागृत हुई है अतः आप मुझे श्रेष्ठ प्रकार से ब्रह्म ज्ञान की युक्ति एवं मुक्ति का मार्ग बताने की कृपा करें हे प्रभु तीनों लोक में आपके सामान्य ज्ञानी अन्य कोई नहीं है आप वेदों के उत्पन्न करता परम ब्रह्म शान का आदि संपूर्ण विधाओं में समुद्र एवं तीनों लोक के स्वामी विष्णु तथा ब्रह्म को भी श्रेष्ठ पद प्रदान करने वाले हैं शेष जी दिन-रात आपकी महिमा का वर्णन करते हुए भी उसका पर नहीं पाते वस्तु आप कृपा करके मेरी मानव अभिलाष को पूर्ण करें सती के वचन को सुनकर भगवान सदा शिव बोले हे प्रिय ज्ञान को सर्वोत्तम वस्तु समझना चाहिए उनके पास तक किसी अन्य पदार्थ की गति नहीं है इस प्रकार वह परम अभिलेख कहा जाता है उसी को मेरा स्वरूप ब्रह्मा जानना चाहिए जिस तपस्या तथा आराधना का आश्रय लेकर जीवधारी पवित्र हो जाते हैं उसे ज्ञान की पदवी समझना चाहिए भक्ति तथा ज्ञान में कोई अंतर नहीं है जो मनुष्य इन दोनों में अंतर देखते हैं उसे दुख उठाना पड़ता है जो लोग भक्ति के विरुद्ध वचन कहकर ज्ञान को प्रदाता देते हैं उसे महान कष्ट उठाना पड़ता है अत्रि मुनि को उसे बात का निश्चय हो चुका है जो संसार भर में विद्यमान माने जाते हैं भक्ति को परम तत्व का ज्ञान प्रदान करने वाले समझना चाहिए वह मुझे अत्यंत प्रिय भी है भक्ति के समान सीधा तथा भाई हैं मार्ग अन्य कोई नहीं है क्योंकि उनके द्वारा परम ब्रह्म की प्राप्ति होती है इस रीति में पिपलियत कहा जाता है क्योंकि इनमें बिना किसी आधार के भी ब्रह्मा पर चढ़कर फल प्राप्त किया जा सकता है इनके विपरीत निर्गुण के मार्ग को भीष्म कहते हैं क्योंकि उसमें किसी वस्तु का आधार न होने के कारण अत्यंत परिश्रम तथा कष्ट भोगने के पश्चात ही फल की प्राप्ति होती है भक्ति मां को प्रसन्नता प्रदान करने वाले हैं और मैं सदैव उसकी अधीन रहता हूं जो प्राणी मेरे भक्ति करता है उसे मैं इन लोगों में आनंद तथा परलोक में मुक्ति प्राप्त दान करता हूं मुझे स्कूल तथा जाति में कोई प्रयोजन नहीं है चारों युगों में मुझे भक्ति प्रिया है परंतु कलयुग में तो अपने भक्तों को अंत किसने करता हुआ मैं अपने भक्तों की सदैव सहायता करता हूं और उनकी प्रसन्नता के निर्माता अनेक प्रकार के श्रेष्ठ चरित्र दिखाता हूं आता है देव भक्ति की महिमा सबसे बड़ी जानकर तुम उसी को अपनाओ
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After listening to this story, Shaukat etc. sages said, 'Please tell us what things Narad ji asked Brahma ji after listening to the story of Suit's marriage to Sati. The legendary Suit ji said, O sages, when Devarshi Narad ji has heard so much story. So he said to Brahma, 'Father, please tell me the character of Shiva and Sati after marriage. Hearing this, Brahma ji said, Narad. One day, seeing Shiva sitting alone, Sati came to him and asked praise. After this she said, O Lord, you have incarnated as the creator of the welfare of your three worlds. It is my great good fortune that you have accepted me as your wife. This devotee of Vatsyalayai, I myself am a sergeant. Now I express my Usha Abhishesh to you. Swami, which I have kept a secret till today, I am saying this Maya thing only after seeing you happy with me. My wish is that I have enjoyed Bihar etc. with you for years but I have never thought of its ultimate importance now in my heart. Due to the emergence of dispassion, the desire to know the ultimate essence has awakened, therefore, please tell me the best method of knowledge of Brahma and the path of liberation. O Lord, there is no one else who has common knowledge of you in the three worlds. You are the creator of the Supreme Brahma of the Vedas. Shesh ji is the one who gives the best position to Lord Vishnu and Brahma, the lord of the ocean and the three worlds, in all the other aspects of glory. Shesh ji, despite describing your glory day and night, does not reach its limit. Please fulfill my human desire, Sati. Hearing the words of Lord Shiva, Lord Shiva always said, Dear knowledge, one should consider it as the best thing, it does not have the motion of any other substance, thus it is called the ultimate record, only one should know my form as Brahma, by taking shelter of penance and worship, the living being becomes pure. Atri Muni It has been decided by him that Bhakti, which is considered to be present all over the world, should be considered as the one that provides the knowledge of the supreme essence, he is also very dear to me, as straightforward and brotherly as Bhakti, there is no other path because through him, there is no other path like Supreme Brahma. This method is called Pipliyat because one can attain the result by climbing Brahma without any support. On the contrary, the path of Nirguna is called Bhishma because it involves extreme hard work and suffering due to the lack of any support. One gets the fruit only after experiencing it. Devotion gives happiness to the Mother and I always remain under her. I give the creature who worships me the joy and salvation in the next world. No one in the school or caste knows me. There is no purpose, I love devotion in all the four yugas, but in Kaliyuga, who kills my devotees, I always help my devotees and am the creator of their happiness. I show many types of noble characters. I know the glory of devotion to God as the greatest. you follow that one
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