ब्रह्मा जी ने कहा हे नारद जी समय कामदेव अपनी सेवा को लेकर शिव जी के पास चला उसे समय संपूर्ण संसार पर कुछ ऐसा प्रभाव पड़ा की सृष्टि के समस्त प्राणी बुद्धि हीन हो गए उसके वशीभूत हो गए शिव जी के गानों पर भी उसका प्रभाव पड़े बिना ना रहा जब शिवजी ने यह जाना की कामदेव उन पर विजय प्राप्त करने में निर्मित अपनी सेवा को साथ लिए हुए आ रहे हैं तो उसके ऊपर उसका कुछ भी प्रभाव न पड़े हुए अपनी इंद्रियों को जीत कर अपने स्थान पर ध्यान मग्न बैठे रहे उनके ऊपर कामदेव का कोई वश नहीं चला तब कामदेव अत्यंत दुखी एवं निर्मित होकर वहां से लौट आया और कायरों की भांति मेरे सामने आकर पृथ्वी पर गिर पड़ा था दो प्राण स्थिति करते हुए इस प्रकार बोला है प्रभु मैं अपनी सेवा द्वारा संपूर्ण देवता मुनि एवं अन्य जीवधारी को वश में कर लिया परंतु शिवजी के ऊपर मेरा कोई प्रभाव नहीं पड़ा आप मुझे यह भाई लग रहा है कि कहीं वह मेरे ऊपर क्रोध न हो जाए पराजुली तकनीक के समान उसके स्वरूप का स्मरण कर मैंने मन ही मन अत्यंत भयभीत हो रहा हूं मुझ में इतना बोल नहीं कि मैं उन्हें परास्त कर सकूं क्योंकि इस बात की मैंने भली भांति परीक्षा कर ली है हे नारद कामदेव की बात सुनकर मुझे अत्यंत चिंता हुई और मेरे मुंह पर उदासी के लक्षण स्पष्ट हो गए उसे समय मैं सुख कल होकर जो बहुत से सुंदर भी घोड़े उनसे अनेक प्रकार के गानों की उत्पत्ति हुई वह अपने हाथों में अनेक प्रकार के शस्त्र धारण किए हुए थे वह बड़े जोर-जोर से चिल्लाते नाचते गाते हुए मार मार की पुकार करते थे उनका कोलाहल संपूर्ण दिशाओं में भर गया हुए अनेक प्रकार से उपद्रव करते थे उनकी संख्या का वर्णन नहीं किया जा सकता है हे महाराज जब उन गुना को कामदेव ने देखा तो मुझसे पूछा है पिता यह लोग कौन है और इनका नाम क्या है मैंने उत्तर दिया यह सब लोग मर मर शब्द का उच्चारण कर रहे हैं अतः इनका नाम मारा होगा ही आनंद तुम इस सेवा को अपने साथ लेकर एक बार शिवजी के पास फिर जाओ अब ऐसा उपाय करो जिससे शिवजी किसी स्त्री के साथ विवाह करना स्वीकार कर ले यह सुनकर कामदेव ने उत्तर दिया है पिता पहले तो मेरा कुछ हुआ नहीं चल अब भी कोई आशा नहीं है फिर भी मैं एक बार पुनः आपकी आज्ञा से उनके पास जाता हूं तदुपरांत आप यह निश्चय रखें कि यदि शिवजी का ध्यान भटक भी गया तो मैं जीवित कद अपी नहीं बेचूंगा इतना कह कर कामदेव अपनी उसे नई सी को साथ लेकर वहां से चल दिया और उसे स्थान पर जा पहुंचा और वहां शिवजी ध्यान मग्न बैठे थे सर्वप्रथम उसे पृथ्वी पर मस्तक रखकर शिवजी को प्रणाम किया था दो प्राण उसकी प्रसन्नता के निर्माता अनेक प्रकार की उसकी स्तुति की उसके प्रार्थना करते हुए कहा हे प्रभु मैं अपने पिता की आज्ञा यह कार्य करने के लिए आया हूं अतः आप मेरे ऊपर कृपा बनाए रखें इतना कह कर कामदेव ने अपने साथ वसंत को चारों ओर फैला दिया उसे समय संसार के किसी भी प्राणी का धर्य स्थिर न रह सका परंतु इतने पर भी शिवजी का ध्यान विचलित ना हुआ कामदेव का उसे समय भी यह बड़ा सौभाग्य रहा की शिव जी ने उसे नियर विमान अनुमान कर भस्म नहीं कर दिया था दोस्त प्रांत कामदेव लज्जित होकर पुनः मेरे पास लौट आया और बोला है पिता शिव जी पर मेरा इस प्रकार कोई वर्ष नहीं चला यदि आप चाहते हैं कि शिवजी विवाह अवश्य करें तो किसी अन्य उपाय का आश्रय लिया जाए इतना कह कर कामदेव अपने घर को चला गया उसे समय मुझे अत्यंत निराशा तथा चिंता हुई जब कोई उपाय न सूझा तो मैं विष्णु जी का ध्यान किया और बहुत प्रकार से स्तुति की
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Brahma ji said, O Narad ji, at that time, Kamdev went to Lord Shiva with his service. At that time, he had such an impact on the entire world that all the creatures of the universe became devoid of intelligence. Even the songs of Lord Shiva were influenced by him. When Lord Shiva came to know that Kamadeva was coming carrying with him his service built in conquering him, then Kamadeva remained sitting at his place meditating after conquering his senses without it having any effect on him. When Kamadeva could not control himself, he returned from there feeling very sad and angry and like a coward, he fell down on the earth in front of me, surrendering his life and said in this way, Lord, I have brought under control all the gods, sages and other living beings through my service. I did it but I had no effect on Shivji. You are my brother. I feel that he might get angry on me. Remembering his form like Parajuli technique, I am feeling very scared in my mind. Speak this much in me. Not that I can defeat them because I have thoroughly tested this. O Narad, after listening to the words of Kamadeva, I became very worried and signs of sadness became visible on my face. Many types of songs originated from him. He held many types of weapons in his hands. He used to shout loudly, dance and sing, call out for 'kill', his noise filled all directions and created mischief in many ways. Their number cannot be described. O Maharaj, when Kamdev saw those Gunas, he asked me, father, who are these people and what is their name? I replied that all these people are pronouncing the word 'Mar Mar', hence their name is Mara. You will definitely enjoy this service, take this service with you and go to Lord Shiva once again. Now make such a solution that Lord Shiva will accept marriage with a woman. Hearing this, Kamadeva replied, "Father, earlier nothing happened to me, now no one can help me." There is no hope, still I go to him once again with your permission. After that, you keep this determination that even if Shivji's attention gets diverted, I will not sell my living height. Having said this, Kamadeva, take his new one with me and leave from there. Gave it to him and reached the place where Lord Shiva was sitting engrossed in meditation. First of all, he bowed to Lord Shiva with his head on the earth, gave him two lives, the creator of his happiness, praised him in many ways, while praying he said, O Lord, I have ordered my father to do this. I have come to work, so please shower your blessings on me. Saying this, Kamadeva spread the spring all around with him. During that time, no creature in the world could remain stable, but despite all this, Lord Shiva's attention did not get distracted, Kamadeva. At that time too, it was a great good fortune that Shiv Ji did not incinerate him by guessing the plane near him. Friend, Kamadeva came back to me in shame and said, Father Shiv Ji, but no year of mine has passed like this, if you want. That if Lord Shiva must marry, then some other solution should be taken. Saying this, Kamadeva went to his home. At that time, I felt very disappointed and worried. When no solution came to my mind, I meditated on Lord Vishnu and praised him in many ways.
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