श्री शिव महापुराण कथा द्वितीय खंड अध्याय 2



ब्रह्मा जी ने कहा हे नारद मुझे इस प्रकार मोहित देखकर धर्म के पुत्र सत्य को बहुत चिंता हुआ वह दोनों हाथ जोड़कर शिव जी के निकट जा पहुंचा और स्तुति प्रणाम करने के उपरांत उसने सब हाल का सुनाई उसकी प्रार्थना पर हम लोग को विरोध व्यवहार से बचाने के निर्माता भगवान शिव शीघ्र ही हम लोगों के बीच प्रगट हो गए उन्हें देख माइक तथा मेरे पुत्र अत्यंत लज्जित हुए और कामदेव भी बहुत लज्जित हुए उसे समय शिव जी ने मेरी ओर क्रोध पूर्ण दृष्टि से देखते हुए कहा है ब्राह्मण तुम ऐसे कुमार गामी क्यों कर हो गए तुमने श्रेष्ठ बुद्धि को बुलाकर अपने पुत्री से भोग करना चाहा तुम वेद पार्टी होते हुए भी इस ज्ञान को भूल बैठे और लज्जा त्याग कर धर्म कार्य की और प्रभावित हुए यह उचित नहीं है हमने संसार में बहुत से पापियों को देखा है परंतु तीनों लोक में ऐसे पाप करने वाला किसी को नहीं देखा हे नारद इस प्रकार शिवजी ने मेरी बहुत निंदा की ता दो प्रांत हुए मेरे पुत्रों की ओर अत्यंत क्रुद्ध पूर्ण दृष्टि से देखते हुए बोले है मार्केट आदि तुम लोग ऐसे अधीर और आगामी क्यों हो गए तुम सब ब्रह्मा के पुत्र हो और तुमने वेद का अध्ययन किया है फिर भी तुम इस प्रकार मोहित हुए इसलिए तुम्हें शास्त्रों पर अधिकार है हे नारद भगवान सदा शिव के मुख से निकले हुए इन शब्दों को सुनकर मेन तथा मेरे पुत्र अत्यंत लज्जित हुए उसे समय सबको ऐसा खेद हुआ कि किसी के मुख से कोई भी शब्द नहीं निकला तब उपरांत मैं इंद्रियों एवं वीरों को मस्तक पर चढ़कर संध्या के प्रति जो आसक्त मेरे हृदय में अत्यंत उत्पन्न हुआ थी उसी का त्याग कर दिया भगवान सदा शिव के भाई से मैं पाप कर्मों से प्रभावित होने से बच गया और मेरे पुत्र भी उसे निर्णय कर्म की ओर से भी मुख हो गए उसे समय भाई के कारण मेरे शरीर से जो पसीना टपक उसे 64 योनियों उत्पन्न हुए जो संसार के विमुख होकर तात्पर्य के अतिरिक्त अन्य कोई कार्य नहीं करती ताड़ूपरान 86 पुत्र और उत्पन्न हुए दक्ष प्रजापति के शरीर से पसीना निकल कर पृथ्वी पर गिरा उसने एक स्त्री की उत्पत्ति हुई अत्री मानचित्र पुलवामा अमृत तथा तुम अर्थात नारद के शरीर से पसीना नहीं निकला वशिष्ठ वितराव अंगिरा तथा मृत के शरीर से जो पसीना निकल पृथ्वी पर गिरा उसे संपूर्ण अंगारों सहित पितरों की उत्पत्ति हुई जो सबसे प्रतिष्ठित प्राप्त करने योग्य एवं प्रसन्नता प्राप्त करने वाले हैं उन्हें इस समय वेद और धर्म शास्त्रों का ज्ञान हो गया धर्म का वह सब परम धार्मिक धर्म का उपदेश करने वाले एवं संपूर्ण कार्यों को करने की क्षमता रखने वाले थे यह नारद कृत से सौंपा वशिष्ठ से अनुरोध पुरुष वार्ता से अंजना तथा हाइट से 12वीं इस प्रकार पीटर चार प्रकार के हैं पर हुए 6 प्रकार के प्रसिद्ध हैं तदुपरांत मेरे आज्ञा से संध्या ने उसे पितरों द्वारा गर्भधारण किया इस प्रकार मेरे धर्म की रक्षा करके भगवान सदाशिव अंतर्ध्यान हो गए उसके चले जाने के पश्चात मैं अत्यंत क्रुद्ध पूर्वक कामदेव की ओर देखा और उसे श्राप देने की इच्छा प्रकट की उसे समय मेरे सब पुत्रों ने मुझे बहुत समझाया परंतु मैंने माया के वसीभूत होकर उसकी बातों पर कोई ध्यान नहीं दिया उसे समय मैं मंथन से कहा अरे मूर्ख तूने यह क्या दुख दयानी किया जो मेरे हृदय को ऐसा घोर पाप कर्म करने की ओर प्रभावित कर दिया तूने अपने पिता के यह खूब सेवा की अस्तु तूने जैसा काम किया वैसे ही आप तुम फल भी प्राप्त करोगे तेरे कारण शिव जी ने मेरे अत्यंत निंदा की अतः मैं तुझे यह श्राप देता हूं कि तू जलकर भस्म हो जा भगवान सदा शिव के नेत्रों की अग्नि में पढ़कर तुझे अपना शरीर त्याग देना पड़े और तेरे उसे दशा को देख मेरा हृदय शीतल हो गया है नारद इस शराब को सुनकर कामदेव अत्यंत भयभीत हो तर-तर काटने लगा और इस प्रकार कहने लगा है पिता आप संसार को उत्पन्न करने वाले तथा न्याय और अन्य की स्थापना करने वाले हैं मैं आपका कोई अपराध नहीं किया है फिर भी आपने मुझे यह श्राप क्यों दे दिया डाला मैंने तो आपकी आज्ञा की केवल परीक्षा ही ली थी मेरे भाग्य से आपने मेरे लिए अब जो नहीं आज्ञा दी है वह तो अवश्य होगी ही परंतु आप कृपा करके मुझे ऐसे वरदान भी दीजिए जिससे मैं शिवजी की नेत्र ज्वाला में भस्म होने के उपरांत पुणे उत्पन्न हो सका इस प्रकार कृपा करके मेरा दुख नष्ट कर दीजिए इतनी कथा सुना कर ब्रह्मा जी ने कहा हे नारद कामदेव की यह प्रार्थना सुनकर मुझे अत्यंत प्रसन्नता हुई तथा मैंने कहा हे कामदेव मैं तेरे संबंध में जो कुछ कहा है वह तो निश्चय निश्चित रूप से होगा ही परंतु अब मैं तुम्हें यह वरदान देता हूं कि तुम्हें भस्म करने के उपरांत कुछ दिनों बाद जब शिवजी अपना विवाह करेंगे उसे समय तुझे यही शरीर पुनः प्राप्त हो जाएगी और शिवजी तेरे सहायक हो उठाएंगे इस बात को सुनकर सभा में फिर से नवीन आनंद भर गय

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Brahma ji said, O Narad, seeing me so enthralled, Satya, the son of Dharma, became very worried. He went near Lord Shiva with folded hands and after offering his praises, he narrated the whole incident to him on his request to save us from hostile behavior. Lord Shiva, the creator of the world, soon appeared among us. Seeing him, Mike and my sons were extremely embarrassed and Kamadeva was also very embarrassed. At that time, Lord Shiva looked at me with anger and said, Brahmin, why do you do such a thing as a Kumari? It happened that you called the best intellect and wanted to enjoy with your daughter. Despite being a party to the Vedas, you forgot this knowledge and abandoned your shame and did religious work and got influenced. This is not right. We have seen many sinners in the world but all the three worlds O Narad, I have never seen anyone committing such a sin. In this way, Lord Shiva condemned me very much. Looking at my sons with a very angry gaze, he said, "Market etc., why have you all become so impatient and aggressive, Brahma?" You are the son of Lord Shiva and you have studied the Vedas, yet you got so fascinated that is why you have authority over the scriptures. Oh Lord Narada, hearing these words coming from the mouth of Lord Shiva, I and my sons felt extremely ashamed and at that time everyone felt so sorry. That no word came out from anyone's mouth, then after I put my senses and bravery on my head, I renounced the attachment that had developed in my heart towards Sandhya, and I said to Lord Shiva's brother, I am free from being influenced by sinful deeds. I was saved and my sons also turned to him from the side of decision-making, the sweat that dripped from my body because of time brother gave birth to 64 vaginas which, turning away from the world, do not do any other work except for the purpose, 86 more sons were born to Taduparan. Sweat came out from the body of Daksh Prajapati and fell on the earth. He gave birth to a woman. Atri map Pulwama Amrit and you i.e. Narad's body did not sweat. Vashishtha Vitarav Angira and the sweat that came out from the body of the deceased fell on the earth along with all the embers. The ancestors were born who were capable of achieving the most prestigious and happiness, at this time they got the knowledge of Vedas and religious scriptures, they were the ones who preached the most religious religion and had the ability to do all the tasks, this Narada was Assigned from Krit, requested from Vashishtha, Anjana from male talk and 12th from height, thus there are four types of Peter but six types are famous, after that with my permission, Sandhya conceived him through the ancestors, thus may Lord Sadashiva Antardhyaan protect my religion. After he left, I looked at Kamdev very angrily and expressed my wish to curse him. At that time all my sons explained to me a lot but I, being under the influence of Maya, did not pay any attention to his words. At that time I said to Manthan Oh fool, what kind of sorrow have you done that has influenced my heart to commit such a grave sin? You have served your father so well, therefore, whatever work you have done, you will also get the fruits because of you, because of you, Lord Shiva has given my utmost respect. Condemned, therefore, I curse you that you burn to ashes, Lord, after always reading in the fire of Shiva's eyes, you have to give up your body and seeing your condition, my heart has become cool. Narad, Kamadeva is extremely frightened after hearing this liquor. Ho started biting and started saying thus, Father, you are the one who created the world and is the one who establishes justice and others, I have not committed any crime against you, still why have you given me this curse, I have obeyed you. I had only taken the exam. Due to my luck, whatever you have not ordered for me now will definitely happen, but please give me such a boon by which I can be born in Pune after being burnt in the flame of Lord Shiva's eyes. In this way, please Destroy my sorrow. After narrating such a story, Brahma ji said, O Narad, I was very happy to hear this prayer of Kamadev and I said, O Kamadev, whatever I have said about you will definitely happen, but now I am telling you this. I give you a boon that after burning you to ashes, after a few days when Shivji will marry you, you will get this body back and Shivji will help you in lifting it. Hearing this, the gathering was once again filled with new joy.

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