श्री शिव महापुराण कथा पहले स्कंद अध्याय 20



ब्रह्मा जी बोले हे नारद डीआईजी पति को वरदान देकर जब शिवजी अंतर्ध्यान हो गए तब उन्होंने मन में सोचा कि हमें अधिक पति को अपना मित्र बनाया है सो आप किस प्रकार उसके यहां जाकर मनुष्य की भलाई के लिए कोई उपाय करेंगे हमने पहले भी या विचार किया था कि अब हम कुबेर के मित्र होकर उसके पास निवास करेंगे हमारा मुख्य स्वरूप तो परम ब्रह्म रूप है इसलिए उसे स्वरूप तथा इस स्वरूप में जो उसके यह धारण करके जाएंगे कोई अंतर नहीं होगा जो व्यक्ति इनमें अंतर या डेथ भाव समझेगा वह दुख प्राप्त करेगा ब्रह्मा विष्णु आदि द्वारा जो स्वरूप पूजा जाता है उसी रूप एवं नाम से हम वहां वास कर कुबेर के साथ मित्रता स्थापित करेंगे शिवरानी ने अब तक का अवतार नहीं लिया अकेले हमने अवतार लिया है इसलिए आप पहले अकेले हमें लोग कठिन तप करके वहां निवास करते हुए भक्तों को मुक्त तथा को मुर्गियों को नष्ट करेगा कुछ समय इसमें प्रकार अपना देखने के पश्चात शक्ति में अवतरित होगी तथा संसार की रीति के अनुसार वह हमारी पत्नी होगी तब उसे दशा में हम गृहस्ट होकर अनेक प्रकार के भोग विलास भी करेंगे ऐसा विचार कर शिवजी ने आगे चलने का प्रयत्न कर अपना डमरु बजा दिया उसके शब्द से तीनों लोग परित हो गए तब सब लोग इस शब्द की ओर चल दिए विष्णु गरुड़ पर तथा मैं हंस पर चढ़ चला संकडिक मुनि सिद्ध देवता वेद धर्मशास्त्र पुराण तुम अन्य मुनि तथा सांपों के यूथ उसे शब्द को लक्ष्य करके चल दिए शिव के प्राण प्रथम भी इस और चली सब लोग परंपरास यह कह रहे थे कि क्या कारण है जो आज डमरू बजाया गया है आज किसके भाग्य उदय हुए हमारा भी सौभाग्य है कि हम शिव जी के शुभ चरणों के दर्शन प्राप्त करेंगे सब लोगों इसी प्रकार की बात करते हुए शिव जी के पास आप पहुंचे और उसे दंडवत प्रणाम करने के पश्चात हाथ जोड़कर स्तुति करने लगे शिव जी ने अत्यंत प्रसन्नता हो विष्णु का हाथ पकड़ कर उन्हें अपने भाई और बैठा लिया तथा दाहिनी और मुझे स्थान दिया इसके पश्चात कुशल क्षण पूछ कर मुझे आती प्रतिष्ठित किया उन्होंने हाथ के संकट से सूर्य का आदर किया तथा उन मुनियों को जो अमर है देखकर अत्यंत प्रसन्नता व्यक्त की शिवा गढ़ शिवजी की इच्छा समझकर स्वयं ही अपने-अपने स्थान पर बैठ गए इस प्रकार वह बहुत से लोग एकत्र हो गए तथा एक वृत्त उत्सव का आयोजन हुआ फिर शिव जी ने कुबेर का मनोरथ पूरा करने के लिए कैलाश जाने का उद्योग किया उसे समय जब देवता तथा गांड भी उसके साथ चलने की इच्छा से उठ खड़े हुए विष्णु जी नंद एवं सद्रक नमक दोनों गानों सहित उठ खड़े हुए इस प्रकार वेद तथा समकादिक भी वत हुए इंद्र 33 कोठी अमर देवताओं के साथ खड़े हुए इस प्रकार उसे स्थान पर 11 रूद्र अपने गानों सहित 12 सूर्य आठ वसु तेरा विश्व देव 27 नक्षत्र 12 भक्त 64 आभासुर 49 पवन तथा अनेक देवता उसके साथ हुए 10 प्रकार के देवता अर्थात विद्याधर अक्षर यक्ष गंधर्व किन्नर रीच सिद्ध भूत पिशाचार आदि भी चल पड़े दिशा पति अपने-अपने गानों सहित वस्तु की दक्ष आदि समर्पित तथा नगपति शेष जी भी साथ गए जग जननी श्री गायत्री गरुड़ पर्वत सातों समुद्र दोनों आएं अर्थात उत्तरायण और दक्षिणायन तथा संपूर्ण स्त्रियां कल यह यक्ष समस्त सरिताएं तथा बड़े नंद और वनवासी यह सब एक साथ फुट खड़े हुए तथा शिवजी के साथ चलने की तैयारी करने लगे हे नारद समस्त रूद्र गानों को चलाने के लिए उड़द देखकर शिवजी अत्यंत प्रसन्न हुए उसे समय चारों ओर से जय जयकार का शब्द होने लगा था दो प्रांत शिवजी अपने स्वरूप को प्रणाम एवं नमस्कार कर विल पर सवार हो गए उनकी दाहिनी तथा बाई और में तथा विष्णु हंसकर हंस एवं गरुड़ पर चढ़कर साथ-साथ चले इंद्र रावत हाथी पर चढ़े थे तथा समस्त देवता मुनि अपने-अपने वाहनों पर बैठकर चल रहे थे सब के हृदय में शिव की मूर्ति स्थिर थी प्रत्येक व्यक्ति अत्यंत हर्ष में भरकर अपने अपने वहां पर चल रहे था शिवजी बहुत धीरे-धीरे चलते थे जिससे कि किसी को कष्ट ना हो जिस जिस देश में शिवजी आते थे वहां उनको भेंट दी जाती थी जिसे वह शहर स्वीकार करते थे इस प्रकार चलते-चलते शिवजी अलंकार पुरी के निकट जा पहुंचे तथा अलंकार पुरी के अधिपति शिवजी से विदा लेकर जियो न की सामग्री का प्रबंध करने के लिए आगे चले गए उन्होंने अपने घर पहुंच कर विधिपूर्वक पूजन एवं जीव न की सामग्री एकत्रित किया इसके पश्चात हुए अपने समस्त सी सहित शिव की शुभ अग्नि को आगे जाकर उसके चरणों पर गिर पड़े और प्रेम में मग्न हो गए फिर भेंट देकर उन्होंने पूजन किया हुए प्रेमानंद में मग्न होकर सब कुछ भूल गए उन्होंने शिव को प्रणाम कर विष्णु तथा मेरा भी आदर किया शिवजी ने उन्हें हृदय से उन्होंने अपने साथ लेकर आगे बढे

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Brahma ji said, O Narad, when Lord Shiva disappeared after giving a boon to DIG Pati, he thought in his mind that he has made Adhik Pati his friend, so how will you go to his place and do something for the welfare of human beings. We have also thought this before. It was said that now we will become friends of Kuber and reside with him. Our main form is the form of Supreme Brahma, hence there will be no difference between his form and the form of those who will go wearing this form, the person who will consider the difference or death feeling in them will suffer sorrow Brahma. We will reside there in the same form and name which is worshiped by Vishnu etc. and will establish friendship with Kuber. Shivrani has not incarnated till now, we alone have incarnated, hence you, the devotees, are the first ones to do hard penance and reside there. She will free Ko and destroy the chickens. After some time, after seeing her as her own, she will incarnate in Shakti and according to the customs of the world, she will be our wife, then in her condition, we will live as a householder and enjoy many types of pleasures. Thinking this, Lord Shiva further said He tried to walk and played his drum. All three people turned away due to his words. Then everyone moved towards this word. Vishnu on Garuda and I went on the swan. Sankadik Muni, Siddha Devta, Vedas, Dharmashastras, Puranas, you, other sages and the youth of snakes, gave him the word. Aiming at Shiva's life, I also started walking in this direction, everyone was saying as per tradition, what is the reason that Damru has been played today, whose fortunes have risen today, we are also fortunate that we will get the darshan of the auspicious feet of Lord Shiva. Everyone talking like this, you reached Lord Shiva and after paying obeisance to him, folded your hands and started praising him. Lord Shiva was very happy, held Vishnu's hand and made him sit next to his brother and gave place to me on the right side. After asking for a good moment, he honored the Sun with the help of his hand and expressed immense happiness on seeing those sages who are immortal. Understanding the wish of Lord Shiva, he himself sat down at his place in Shivagarh. In this way, he met many People gathered and a circle festival was organised. Then Shiv ji decided to go to Kailash to fulfill Kuber's wish. At that time, even the gods and donkeys stood up with the desire to go with him. Both Vishnu ji, Nand and Sadrak Namak stood up. Standing up with songs, in this way Vedas and Samakadik also bowed down, Indra stood up with 33 Kothi immortal gods, in this way in his place 11 Rudra with his songs, 12 Suns, eight Vasus, your Vishwa Dev, 27 constellations, 12 devotees, 64 Abhasur, 49 winds and many gods. Along with him, 10 types of Gods i.e. Vidyadhar, Akshar, Yaksha, Gandharva, Kinnar, Reach, Siddha, Ghost, Pishachar, etc. also set out, Disha Pati with his songs, Daksh etc. dedicated to the object and Nagapati Shesh ji also went with him, Mother of the world, Shri Gayatri, Garuda, mountains, seven seas, both came. That is, Uttarayan and Dakshinayan and all the women, yesterday this Yaksha, all the rivers and the elder Nanda and the forest dwellers, all of them stood together and started preparing to go with Lord Shiva. Oh Narada, Lord Shiva was very happy to see Urad to play all the Rudra songs. The sound of Jai Jai started being heard from all sides, the two provinces, after paying obeisance and salutations to their form, Shivji rode on the elephant on his right and left side and Vishnu laughed and rode on a swan and Garuda walked together, Indra Rawat was mounted on an elephant and All the deities and sages were moving sitting on their respective vehicles. The idol of Shiva was stable in everyone's heart. Everyone was moving with great joy. Shivji used to move very slowly so that no one gets hurt. Shivji used to come to the country, there he was given a gift which was accepted by the city, thus while walking, Shivji reached near Alankar Puri and the ruler of Alankar Puri took leave from Shivji and went ahead to arrange the material of Jiyo Na. He reached his home and collected all the materials for worship and life. After this, he along with all his belongings went ahead and fell at the feet of Lord Shiva, immersed in the auspicious fire and became engrossed in love. Then after giving the offering, he worshiped, engrossed in the joy of love. Forgetting everything, he bowed to Lord Shiva and respected Vishnu and me too. Lord Shiva took him with him in his heart and moved ahead.

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