शिवजी ने वृषारा से कहा अब इस तपस्या को छोड़ अपनी इच्छा अनुसार वर मांग को यद्यपि यह शब्द सदाशिव के उच्च स्वर से कहे थे परंतु बिसराव अध्ययन गमन होने के कारण शिव जी के शब्दों को नहीं सुन सका आप शिव जी ने उसके हृदय से अपनी मूर्ति हटा ली देख पति ने उसे समय आश्चर्य चकित होकर जब अपने नेत्र खोले तो देखा कि शिवजी अपने पूर्व से जैसे कि वह सुन चुक था सम्मुख खड़े हुए हैं उनके बमंग में पार्वती खड़ी थी यह देख वह अत्यंत प्रसन्न हुआ परंतु अत्यंत प्रकाशवाण तेज हो देखने की शक्ति न होने के कारण उसने अपने नेत्र बंद कर लिए फिर इस प्रकार कहा हे नाथ मुझे आप अपने चरण दिखाई दीजिए तथा ऐसी शक्ति दीजिए जिससे मैं आपके दर्शन कर सकूं मैं इसके अतिरिक्त और कुछ नहीं चाहता क्योंकि संसार में इसमें से अधिक और कोई पदार्थ नहीं है अधिक पति या कहकर चुप हो गया शिवजी उसके वचनों को सुनकर अत्यंत प्रसन्न हुए उन्हें अधिक पति को अपने स्वरूप का दर्शन प्राप्त करने की शक्ति प्रदान की थी तथा अपने हाथों से उसके हाथ पकड़ लिए सर्वप्रथम डीआईजी पति ने नेत्र खोलने ही शिवरानी को देखा और कहा है देवी कौन है इनका बड़ा सौभाग्य है जो यह शिवजी के इतने निकट रहते हैं इसके पूर्ण प्रेम और तथा मां माता-पिता को धन्य है उसने यह बात बारंबार कही तथा शिवरानी को प्रत्यक्ष को दृष्टि से देखा इससे उसकी आंखें तुरंत फूट गई उसे समय देवी ने क्रोधित होकर कहा यह तपस्वी कुदृष्टि रखने वाला है इसी से इस कष्ट मिलता है यह ऐसे व्यंग वचन कहकर मुझे अपनी स्त्री के समान देखा है शिवरानी बोली है शिव यह आपका कैसा भक्त है यह वचन सुनकर शिवजी हंसते हुए बोले हे देवी इसने चल का त्याग कर ऐसा तब किया जो प्रत्येक है तुमको मेरे साथ देखकर तुम्हारे भाग्य को अपने से अधिक जानकार इसने सहारा ना की है यह खुद दृष्टि से नहीं देखा इसके पश्चात शिवाजी दिगपती से बोले तुम्हारी जो इच्छा हो मांग लो हमारे आशीर्वाद से तुम समस्त निधिया एवं संपूर्ण राजाओं के स्वामी होंगे तुम्हारे अधीन विद्याधर यज्ञ तथा की न रहेंगे तुम्हारी जो गुप्त इच्छा है हम उसे भी जानते हैं अस्तु हम मित्र होकर तुम्हारे ही निकट रहेंगे अर्थात कैलाश पर्वत पर निवास कर तुमसे अत्यंत प्रेम रखेंगे और तुम्हारी हर कठिनाइयों को दूर करते रहेंगे अब तुम शिवरानी के चरणों पर गिरकर इनमें क्षमता मांगो क्योंकि यह तुम्हारी माता है तथा इस प्रकार यह प्रसन्न होकर अपना क्रोध शांत कर लेंगे शिवजी क की आज्ञा सुनकर विश्व शिवरानी के चरण पर गिर पड़ा तथा शिवजी शिवरानी से बोली है देवी यह तुम्हारा परम भक्त है तुम इसके ऊपर कृपा करो और इसको अपना सेवक समझो शिवजी की ऐसी बात सुनकर शिवरानी ने अपना क्रोध शांत कर लिया तथा अधिक पाल से कहा तब तुम हमारे पुत्र हुए इसलिए तुम्हारे मन में शिव जी की भक्ति सदैव बनी रहेगी तुमको शिवजी ने जो वरदान दिया है वह सत्य है तुम मेरे स्वरूप की इच्छा करेंगे अपने मन मे भाई नहीं लेंगे इससे तुम्हारा नाम कुबेर होगा तुमने जिस शिवलिंग की स्थापना की है वह सिद्ध प्रदान करने वाला होगा तुम्हारे ही नाम से प्रसिद्ध होगा वह संपूर्ण पापों को नष्ट करके मुक्ति देगा जो कुबेर स्वर महादेव के दर्शन करेगा वह थोड़ी सी भक्ति में भी तपस्या का फल प्राप्त कर लेगा यह कांबेश्वर महादेव विश्वेश्वर के दाहिनी ओर है जिनकी पूजा करके लोग अत्यंत आनंद प्राप्त करते हैं शिव और शिवरानी डीआईजी पति को यह वार देखकर तथा यह कह कर कि हमारे आने की प्रतीक्षा करना अंतर ध्यान हो गए बिग पति भी अपने घर को लौट आया सूजी की कृपा से उसने बहुत धन प्राप्त किया फिर वह अलंकार पुरी का राजा होकर तथा विश्व मित्र उपनाम प्रकार शिव का कोषाध्यक्ष हुआ तब से वह सदैव शिव की भक्ति में संलग्न रहता है अलंकार पूरी इतनी सुंदर है जिसको मनमोहित हो जाता है हे नारद मैं तुम्हें यह विश्राव की कथा का सुने कि इसने किस प्रकार शिवजी से वरदान प्राप्त किया तीनों लोकों में शिव के समान दयाल कोई नहीं है
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Shivji said to Vrishara, now leave this penance and ask for a groom as per your wish. Although Sadashiv had said these words in a loud voice, but due to being busy studying, he could not hear Shivji's words. Shivji removed his idol from his heart. Seeing her removed, her husband was surprised and opened his eyes when he saw that Lord Shiva was standing in front of him as he had heard from before. Parvati was standing in front of him. He was very happy to see this, but he was very happy to see the bright light. Due to lack of strength, he closed his eyes and then said in this way, O Lord, please show me your feet and give me such strength that I can see you, I do not want anything else except this because there is no other substance more than this in the world. Shivji became silent after saying, 'Is it more husband?' Shivji was very happy to hear her words, he gave power to Adhik Pati to get the darshan of his form and he held her hands with his own hands. First of all, DIG Pati saw Shivrani as soon as he opened his eyes and He said who is the goddess, it is his great fortune that he lives so close to Lord Shiva, his full love and his mother and parents are blessed, he said this again and again and when he saw Shivarani directly, his eyes immediately burst into tears. The goddess got angry and said, this ascetic is the one with evil eyes, this is the reason he is suffering, by saying such sarcastic words, he has seen me like his own woman. Shivrani said, Shiv, what kind of a devotee of yours is he? Hearing these words, Shivji laughed and said, O Devi, he has come on. He did this by renouncing everything, seeing you with me, knowing your destiny better than himself, he did not support you, did not see it with his own eyes, after this Shivaji said to Digpati, whatever you wish, ask for all the wealth and completeness with our blessings. Vidyadhar Yagya will be under you as the master of kings and there will be no ki. We also know your secret wish. Therefore, we will remain close to you as your friend, that is, we will reside on Mount Kailash and will love you very much and will keep removing all your difficulties. Now you Fall at the feet of Shivrani and ask for her strength because she is your mother and in this way she will be pleased and calm down her anger. Hearing the order of Shivji, the world fell at the feet of Shivrani and Shivji said to Shivrani, Goddess, this is your supreme devotee, you are her Have mercy on him and consider him as your servant. Hearing such words of Shivji, Shivrani calmed down her anger and said to Adhik Pal, then you became our son, hence devotion to Shiv ji will always remain in your mind. The boon given by Shiv ji to you is true. You will desire my form and will not take a brother in your mind. Due to this, your name will be Kuber. The Shivlinga you have established will be the one that bestows success. It will be famous in your name only. It will give salvation by destroying all the sins, which Kuber's voice is the name of Mahadev. He will get darshan and get the fruits of penance even with a little devotion. This Kambeshwar is on the right side of Mahadev Vishweshwar, worshiping whom people get immense pleasure. Seeing this attack on Shiva and Shivrani DIG Pati and saying that wait for our arrival. After meditation, the big husband also returned to his home. By the grace of Suji, he gained a lot of wealth. Then he became the king of Alankar Puri and treasurer of Shiva, nicknamed Vishwa Mitra. Since then, he is always engaged in the devotion of Shiva. Alankar Puri She is so beautiful that she becomes enthralled, O Narad, let me listen to you the story of Vishrava, how she received a boon from Lord Shiva. There is no one as kind as Shiva in all the three worlds.
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