श्री शिव महापुराण कथा पहले स्कंध अध्याय 17



ब्रह्मा जी ने कहा है नाराज जब गुण निधि ने यह बात सुनी तब वह चिंतन और शोक युक्त होकर अपने को भाग्यहीन समझने लगा वह रो रो के कहने लगा हे हे हे मेरे सहायक माता अब मैं कहां जाऊं क्या करूं इस समय मुझको कुछ नहीं सोच पड़ता है मुझे धिक्कार है गुन्निधि यह कहकर पिता के भाई से भयभीत हो रोता हुआ घर से भाग गया वह कुछ समय में ही मार्ग के परिश्रम से थक कर तथा शोक सागर में डूब कर है-है करता हुआ रुद्रणाग करने लगा रोते-रोते वह कहता है मेरी माता मैं अब कहां जाऊं और क्या करूं मुझे कोई उपाय नहीं सोचता मैं विद्या से हैं हूं जो मुझको इस रस में लाभदायक होती है मैंने धान का संग्रह भी तो नहीं किया जिससे विद्यमान एवं बुद्धिमान लोग सुख से जीवन व्यतीत करते हैं आप तो मैं भिक्षा मांगने के योग्य भी नहीं रहा हूं प्रात काल जब मैं सो कर उठता था तो मेरी मां मुझे बड़े इसने से भोजन देती थी परंतु आप उसे माता को मैं कहां पाऊंगा क्या करूंगा तथा कहां जाऊंगा अच्छा निधि इस प्रकार भयभीत हो रुद्रन करते-करते अजीत होकर पृथ्वी पर गिर पड़ा सूर्यास्त का समय हो गया उसे समय पश्चात वह सचेत होकर पुणे इसी चिंतन में डूबा हुआ था कि इतने में एक शिव भक्त पुरुष शिवजी की पूजा के लिए उधर से निकाला उसके पास पूजन के लिए अनेक प्रकार की सामग्री तथा शिवजी के लिए थे उसके साथ कुछ अन्य शिव भक्त भी थे उसी दिन शिवरात्रि थी जिसमें मनुष्य व्रत करके मुक्ति प्राप्त करते हैं यह शिवरात्रि सब व्रत में श्रेष्ठ अत्यंत सुखदायक स्वयं शिवजी को अति प्रिय है मूर्ख भी इस व्रत को करके अपने मनोरथ सिद्ध कर चुके हैं जिस प्रकार शिवजी समस्त देवताओं को सुख प्रदान करते हैं उसी प्रकार यह व्रत भी मनुष्य को सुख प्रदान कर इस अपार संसार के ऋणों तथा बंधनों से मुक्त कर देता है ऐसे परम शिवरात्रि व्रत को रखे हुए हुए मनुष्य शिवालय में चले गए जो पुरुष अनेक प्रकार के निवेद एवं व्यंजन अपने साथ लाया था उसकी सुगंधित प्रकार गुण निधि जो बहुत भूखा था विचार करने लगा की रात्रि के समय जब यह लोग शिवजी को अपहरण करें तथा सो जाए इस समय में ही सुगंधित भोजन को वहां से उठा लूंगा गन निधि अपने मन मे यह विचार कर उन्हें लोगों के साथ चल दिया तथा शिवालय के ऊपर जाकर 18 गया शिव भक्ति में सच्चे हृदय से अनेक प्रकार से शिवजी की पूजा की फिर वह भक्ति में खोकर नृत्य करने लगा हूं निधि ऊपर से यह देखता रहा वह अपने मन मे कहता था कि यदि उनकी दृष्टि छेद हो जाए तो मैं अपना काम करूंगा उसे समय पश्चात हुए सब शिव भक्त उधर गए तब गुण निधि सबको इंदिरा अवस्था में देखकर शीघ्र ही शिवालय जाकर धीरे-धीरे दबे पांव में वित्त के पास जा पहुंचे अंधेरा होने के कारण उसने प्रकाश करने के निर्माता धीरे से अपना वस्त्र फाड़ कर बाटी बनाई और उसको जलाया उसके प्रकाश में सब व्यंजन उठ लिए तथा उन्हें लेकर वहां से वह प्रसन्नता पूर्वक सीख रही बाहर निकल गया परंतु चलते समय उसका एक पर लेटे हुए किसी शिव भक्त के लग गया जी से वह इस छड उठाकर चिल्लाया तथा कहने लगा कि यह कौन कर भाग जाता है इसे पकड़ो नगर के रक्षा शूज आवाज को सुनकर आ गए तथा गुण निधि के लक्ष्य कर उन्हें बाहर छोड़ दिया जिससे आहत होकर वह पृथ्वी पर गिर पड़ा क्षण भर में वही उसकी मृत्यु हो गई अस्तु तब यमदूत पहुंचकर मुखड़ा राधे भयंकर वस्त्र अच्छा निधि को दिखाते हुए उसे पापी जानकर बढ़ने लगा परंतु इस समय शिव जी ने अपने गानों से कहा यद्यपि गुण निधि ने आने को पाप किए हैं परंतु वह शिवरात्रि का व्रत रख कर ना तो रात्रि भर सोया है और ना उससे हमारा निर्मल ही खाया है नगर के राक्षसों द्वारा उसकी मृत्यु हुई है इस समय उसको यमदूत बढ़ रहे हैं अतः मेरा आदेश है कि तुम यमदूतों से गुण निधि को मुक्त करके मेरे लोक में ले आओ क्योंकि मैंने उसको अपना लिया है वह अब वह नरगामी ना होगा मुझको शिवरात्रि व्रत अत्यंत प्रिय है आज तो आप गुण निधि का लिंग देश का राजा होकर मेरा परम भक्त होगा शिव जी के आदेश अनुसार उसके गांड गुण निधि के पास जा पहुंचे उनके हाथों में त्रिशूल थे यमराज के गांड उन्हें देखकर बहुत भयभीत हो गए शिव गणों ने उन्हें कहा तुम कौन हो जो इस निष्पत व्यक्ति को बंद रहे हो यमदूत यह सुनकर आश्चर्य के साथ कहने लगे तुम कौन हो जो यह की अवज्ञा करके ऐसी पापी को छुड़ाने हो भला तुम किसकी शक्ति पर इतनी प्रबल हो रहे हो तब शिव गणों ने यह उत्तर दिया कि हम उन शिव जी आज ब्रह्मा विष्णु आदि सभी देवता करते हैं तुम इसको छोड़ दो यह गणों ने कहा तुम्हारी आज्ञा उचित है परंतु इसके पापों का विकार विचार न करके तुम इसे क्यों छोड़ रहे हो इसे अपने कुल की रीति को त्याग है तथा वेद का अपमान किया है हम इसकी मूर्खता को कहां तक कहें यह सब पपिया का सिर मोर है सबसे बड़ा पाप जो इसे किया वह यह है कि शिव निर्मल चोरी करके ले भागा और खाने लगा यह तो तुम भी देख हो तुम यह भी भली भांति जानते हो कि जो कोई शिव निर्मल ग्रहण करता है उसको ऊपर से लड़ जाता है अथवा किसी को देता है वह नरगामी होता है शिवजी पर चढ़ी वस्तु खाने की अपेक्षा विश्व पीना कहीं अच्छा है परंतु इस संसार में तो धर्म रखना ही बहुत कठिन हो गया है शिव गणों ने यह गानों के मुख से यह शब्द सुनकर उत्तर दिया है एवं दूतों या ब्राह्मण पुत्र निष्पत हो चुका है इसने सबसे बड़ा धर्म यह किया कि इसने शिव मंदिर में जाकर अपना वस्त्र फाड़ तथा उसे दिया जलाकर प्रकाश किया दूसरा बड़ा धर्म यह है कि शिवरात्रि को रात दिन व्रत करके रात्रि भर जागरण किया शिवजी का पूजन देखता रह और उनके नाम श्रवण करता रहा यद्यपि यह धर्म इससे अचानक ही हुआ है परंतु इसको पूर्ण लाभ हुआ है अब यह भविष्य में कलिंग देश का राजा होकर शिवजी का पूजन करेगा यह कहकर शिवजी के गांड गुण निधि को मुक्त कर आदर्श हो गए

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Brahma ji has said that when Guna Nidhi heard this, he got angry, then he became thoughtful and sad and started considering himself unlucky. He started crying and said, O my helpful mother, now where should I go, what should I do, at this time I don't have to think about anything. Saying this, 'Shame on me,' Gunnidhi ran away from the house crying in fear of his father's brother. After some time, tired of the hard work of the journey and drowning in the ocean of grief, he started crying 'Rudrnaag' while crying, he said: My mother, where should I go now and what should I do, I do not think of any solution. I am from Vidya which is beneficial for me in this matter. I have not even collected the paddy from which the present and intelligent people live happily. You are a beggar. I have not even been able to ask for anything. In the morning, when I used to wake up from sleep, my mother used to give me food with great quantity, but you used to ask her mother, where will I find, what will I do and where will I go, so scared Nidhi, crying Rudran and becoming victorious. He fell on the earth, it was the time of sunset, after some time he became conscious and was engrossed in his thoughts in Pune, when in the mean time, a man who was a devotee of Shiva brought from there many types of materials for worship and things for Lord Shiva. There were some other Shiva devotees along with him. On the same day, it was Shivratri in which people attain salvation by fasting. This Shivratri is the best among all the fasts, it is very soothing and is very dear to Lord Shiva himself. Even fools have fulfilled their wishes by observing this fast, just like Lord Shiva. It provides happiness to all the Gods. Similarly, this fast also provides happiness to humans and frees them from the debts and bondages of this immense world. Similarly, while observing the Param Shivratri fast, people went to Shivalaya and offered various types of prayers and dishes. Gun Nidhi, who was very hungry, started thinking that when these people kidnap Lord Shiva at night and he goes to sleep, I will pick up the fragrant food from there at that time itself. Gun Nidhi thought in his mind that he He walked with the people and went to the top of the Shiva temple and worshiped Lord Shiva in many ways with true devotion to Shiva. Then he lost his devotion and started dancing. Nidhi kept watching from above and said in his mind that if his vision If there is a hole then I will do my work. After some time, all the Shiva devotees went there, then Gun Nidhi, seeing everyone in Indira state, quickly went to Shivalaya and slowly went to Nidhi on tiptoe. Due to darkness, he asked the creator of light slowly. He tore his clothes and made a wick and lit it. He picked up all the utensils in its light and took them and went out from there learning happily. But while walking, he was touched by a devotee of Shiva lying on one of them and he picked up this rod. He shouted and started saying who is doing this and runs away, catch him, the protectors of the city came after hearing the sound and aimed at Guna Nidhi and left him outside, due to which he got hurt and fell on the earth, within a moment he died there. After reaching Yamdoot, Mukhda Radhe showed the terrible clothes to the good Nidhi and started moving considering her a sinner but at this time Shiv ji said in his songs that although Guna Nidhi has committed sins to come but he has neither slept the whole night nor slept the whole night after observing the fast of Shivratri. Our Nirmal has been eaten away by him, he has died due to the demons of the city, at this time the Yamdoots are increasing his number, hence my order is that you should free the guna nidhi from the Yamdoots and bring him to my world because I have adopted him, now he is not a nargami. Shivratri fast will be very dear to me, today you Guna Nidhi's penis will be the king of the country and will be my supreme devotee. As per the orders of Lord Shiva, his ass reached Guna Nidhi. He had a trident in his hands. Yamraj's ass got very scared after seeing him. The Ganas asked them, "Who are you, that you have locked up this innocent person?" Hearing this, Yamdoot said with surprise, "Who are you, that you want to free such a sinner by disobeying him? On whose power are you becoming so strong?" It was replied that we, Lord Shiva, today all the gods like Brahma, Vishnu etc., leave him. The Ganas said that your order is right, but without considering his sins, why are you leaving him, it is the tradition of your clan to leave him. And he has insulted the Vedas. How far can we explain his foolishness? All this is a peacock's head. The biggest sin he committed was that he stole Shiv Nirmal and ran away and started eating it. You have also seen this very well. Do you know that whoever accepts Shiva Nirmal, fights with him or gives it to someone else, he is a malevolent being? It is better to drink the world than to eat the thing dedicated to Lord Shiva, but in this world it has become very difficult to maintain religion. The Shiva Ganas, after hearing these words from the mouth of the Ganas, replied that the messengers or the Brahmin son has been castrated. The biggest religion he did was that he went to the Shiva temple, tore his clothes and lit it by lighting a lamp. The second biggest religion is that On Shivratri, he fasted day and night, kept vigil throughout the night, kept watching the worship of Lord Shiva and kept listening to his name, although this religion has happened suddenly but it has got full benefit, now he will become the king of Kalinga country in the future and will worship Lord Shiva, saying this. Shivji's ass became ideal by freeing the virtues fund.

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