ब्रह्मा जी ने कहा हे नारद जब मैं गुण निधि का पिता अपनी पत्नी से पुत्र के विषय में पूछता वह इसी प्रकार डाल दिया करती थी इस प्रकार यज्ञ तथ्य अपने पुत्र के अवगुणों को न ज्ञान सका और वह बहुत दोनों दिन दोनों तक किसी प्रकार दूसरा करता रहा जब उसकी अवस्था 16 वर्ष की हुई तब उसका विवाह कर दिया गया पत्नी भी प्रति वह रहता सिलवटी एवं सर्वगुण संपन्न मिली गन निधि को ऐसी पवित्र प्रतिवर्ता पत्नी प्राप्त हुई फिर भी वह अपनी कुसंगतियों एवं दुष्कर्मों को ना त्याग सका उसकी माता सदैव शब्द उपदेश देता तथा भिन्न-भिन्न प्रकार की कथाओं द्वारा उत्तम दुष्ट देते हुए कहती है गुण निधि तुम्हें हमारे एकमात्र पुत्र हो इसलिए इस दुष्कर्म को त्याग दो तुम्हारे पिता अत्यंत क्रोधी प्राकृतिक के हैं वह भी तुम्हारे अवगुणों को नहीं जानते क्योंकि मैं बहुत पूछने पर भी उन्हें नहीं बताया है इसलिए तुम अभी तक उनसे निर्भय हो यदि किसी दिन उन्होंने इन कर्मों का पता लग गया तो हुए मुझे और तुम्हें दोनों को दंडित करें करेंगे इससे या उत्तम है कि उन्हें पता लगने से पहले ही तुम कुसंगति को त्याग कर सत्कर्मों करो यह पुत्र तुम्हारी पत्नी बुद्धिमान मा रूपवती तथा उच्च कुल की है उसी प्रकार तुम भी गुणवंत तथा उच्च कुल के हो ऐसी पत्नी के साथ सुख से अपना जीवन व्यतीत करो अपने स्त्री का त्याग करना महा पाप है तुम पिता के धर्म पर चलो नहीं तो सारा संसार तुमको तुम्हारी दृष्टि से देखेगा तुम मुझको तथा अपने पिता को क्यों लगी करते हो तुम अन्य गैरों के लड़कों को देख ही नित्य वेद पाठ करते हैं जब यहां के राजा को तुम्हारे अवगुणों के विषय में ज्ञात हो तो वह तुम्हारे पिता से आप प्रसन्न होकर उनका मानसिक शुल्क देना बंद कर देंगे तभी अभी तो लोग क्या कहा करताल देते हैं कि तुम यह अवगुण के कर्म लड़का पान के कारण करते हो परंतु अवस्था बढ़ जाने पर सब लोग तुम पर हसेंगे तथा व्यंग पूर्ण स्थान से कहेंगे कि आप तुम्हारा कल आती आप पवित्र हुआ है वह तुम्हारे पिता की निंदा करेंगे और इन्हीं सब कर्म से तुम्हें पिता न कमी होंगे सब लोग इस दोषी मुझको धराएंगे हुए कहेंगे कि इसी ने पाप कर्मों से गर्भ धारण कर ऐसा बहुत ऐसा पुत्र उत्पन्न किया है क्योंकि तुम्हारे पिता निष्पाप हैं हुए वेद एवं धर्मशास्त्र की ज्ञात है मैं भी अपनी पति के सिवाय और किसी पुरुष को नहीं जानती तथा निष्पाप होकर गृह कार्य में चलना रहती हूं परंतु यह सब भगवान की इच्छा है कि मेरे गर्भ से तुम जैसे दुख देने वाले को पुत्र उत्पन्न हुआ है इस प्रकार गुण में थी माता अनेक उपदेश देता भिन्न-भिन्न प्रकार से समझता परंतु वह निधि पर उसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता था ब्रह्मा जी बोले हे नारद गुण निधि को यदि मेरे सामान भी कोई गुरु मिलता तो भी उसे मूर्ख के मन में बुद्धि उत्पन्न ना होती गुण निधि की माता उपदेश करते-करते थक गई परंतु गुण निधि पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा वह सदैव जुआ खेलते चोरी करता मद्यपान करता और वेश्याओं के शांत भोग करने में अपना समय व्यतीत करता था इस प्रकार उसने कुछ ही दिनों में पिता का धन चुरा कर जुआ भोग तथा वेश्याओं पर खर्च कर डाला इस प्रकार वह निधन हो गया उसके पिता ने जितने बहुमूल्य रात में एवं उत्तम वस्त्र अपने बिटिया के प्रभाव से राजा के यहां से प्राप्त किया था उसमें से कुछ विशेष ना बच्चा तब एक दिन गुड निधि ने अपनी माता को पूरी तरह निंद्रा में लिप्त देखकर उसके हाथ में से अंगूठी उतार ली और उसको जारी के साथ दाव पर लगा दिया जारी ने उसे अंगूठी को भी जीत लिया एक दिन आकाश मठ उसके पिता यज्ञ दत्त ने उसे अंगूठी को एक जारी के पास देखकर पहचान लिया उन्होंने उसे पुरुष को एकांत में ले जाकर पूछ कि तुमने यह अंगूठी कहां से प्राप्त की है उसे बीमारियों में उत्तर दिया यह अंगूठी तथा इसी प्रकार की अनेक अंगूठियां मेरे पिता के घर में है जान पड़ता है पराया धन देखकर तुम लज्जित हो भला तुम्हें ऐसे चतुराई किस सीखी है तब यज्ञ दत्त ने क्रोधित होकर उनसे कहा आप तुम हंसी छोड़कर तथा चल आदि को त्याग कर ही अंगूठी के विषय में सत्य सत्य बता दो कि या तुमने कहां से प्राप्त की है मैंने इसे राजा से प्राप्त किया है अतः तुम इसे नहीं ले सकते इस प्रकार जब उन्होंने देवता से जारी से पूछा तो उसने सत्य बात कर उनको बता दिया और कहा तुम मुझको डराते धमकाते क्यों को मैंने कोई चोरी नहीं की है यह क्या है और भी बहुत सी वस्तुएं मैं तुम्हारे लड़के से हुए में जीते हैं अनेक रत्न सोने चांद क्या भूषण पीतल तांबे आदि के बर्तन जो तुम्हारे घर में थे हम लोगों ने हुए सब तुम्हारे लड़के से जीत लिए हैं वह केवल जुआ ही नहीं खेलता अभी तू छोरी तथा वेश्या गण भी करता है जारी के ऐसे वचन सुनकर यज्ञ दत्त को बहुत आश्चर्य हुआ वह कपड़े से अपना मुंह लपेट शौक से रुद्रणाग करते हुए अपने घर आए तथा स्त्री से बोले गुन्निधि कहां है तथा मेरी अंगूठी कहां है उसकी स्त्री ने यह सुनकर भयभीत होकर बड़ी चतुराई से उत्तर दिया इस समय मैं अनेक कार्यों में व्यस्त हो तुम्हारा भी यह पूजन का समय है तुम मुझे तुम्हार प्रेमी अतिथियों का भोजन बनाना है मैंने अंगूठी को किस स्थान पर रख दिया है परंतु उसे स्थान स्मरण नहीं है जिस समय इन कार्यों में से अवकाश पाई उसे समय तुम्हारे अंगूठी खोज कर दे दूंगी यज्ञ दतिया सुनकर क्रोधित होकर बोला है कपूत की मां चल वार्ता से चतुर मैं जिस दिन भी तुमसे यह पूछा की गन निधि कहां है तभी तुमने यह उत्तर दिया कि यह अपने साथियों सहित विद्या ज्ञान के लिए पाठशाला गया है अच्छा यदि अंगूठी नहीं मिलती तो अन्य वस्तु में मुझे लाकर दिखाओ अब तुम पुत्र मुंह को त्याग दो क्योंकि को पुत्र किसी प्रकार का सुख नहीं पहुंचा सकता आप मेरी इच्छा बिना पुत्र के रहने की है मुझे ऐसी संतान की आवश्यकता नहीं है अब तुमको यही उचित है कि हाथ में कुछ एवं जल लेकर लड़के के नाम पर तिलांजलि छोड़ दो जब तक मैं यह न कर लूंगा तब तक भोजन न ग्रहण करूंगा घूमने भी की माता अपनी स्वामी के ऐसे वचन सुनकर उसके चरण गिर पड़ी तथा क्षमा प्रार्थना करने लगी कुछ देर के पश्चात यज्ञ तक का क्रोध भी काम हो गया
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Brahma ji said, O Narad, when I, the father of Guna Nidhi, used to ask his wife about her son, she used to put it in the same manner. In this way, the yagya fact, she could not know the demerits of her son and he would do something else for many days. When he was 16 years old, he got married and got a wife. He remained well dressed and full of all the virtues. Gun Nidhi got such a pure and devoted wife, yet he could not give up his bad habits and misdeeds. His mother always preached words. And while giving the best qualities through different types of stories, Guna Nidhi says that you are our only son, hence give up this misdeed. Your father is of very angry nature and he also does not know about your vices because I did not tell him even after asking a lot. That's why you are still fearless from them. If someday they come to know about these deeds, they will punish both me and you. Or it is better that before they come to know, you should give up bad company and do good deeds. This son is your wife. Your intelligent mother is beautiful and from a high family. Similarly, you too are of good quality and from a high family. Live your life happily with such a wife. It is a great sin to abandon your wife. You should follow the religion of your father, otherwise the whole world will destroy you from your point of view. You will see why you are attracted to me and your father. You read the Vedas daily only after seeing other people's sons. When the king here comes to know about your vices, he will be pleased with your father and stop paying his mental fee. Now what do people say that you do these bad deeds because of drinking alcohol, but when your condition increases, everyone will laugh at you and say with full sarcasm that you are blessed with a tomorrow, you have been purified, he is your father. Everyone will blame me and say that he has conceived a son through sinful acts and has given birth to such a son because your father is sinless. I am aware of the Vedas and theology. I also do not know any other man except my husband and I keep doing the household work sinlessly, but it is God's wish that a son has been born from my womb to a person who gives pain like you. In this way, my mother was in such virtues that she gives many advices. He understood in different ways but it had no effect on Nidhi. Lord Brahma said, O Narada, even if Guna Nidhi had got a Guru like me, he would not have developed wisdom in the mind of a fool. Guna Nidhi's mother kept preaching. He was tired but there was no effect on his wealth. He always used to gamble, steal, drink alcohol and spend his time enjoying the pleasures of prostitutes. Thus within a few days he stole his father's money and spent it on gambling and prostitutes. In this way, he passed away. The child did not get anything special out of all the precious night clothes and fine clothes which his father had obtained from the king through the influence of his daughter. Then one day, Gud Nidhi, seeing her mother completely engrossed in sleep, asked him to help her. He took off the ring from his hand and put it on stake with Jari. Jari won the ring too. One day at Akash Math, his father Yagya Dutt recognized him after seeing the ring near a Jari. He took it to the man in solitude. Asked from where did he get this ring, he replied in illness, this ring and many similar rings are in my father's house. It seems that you are ashamed after seeing someone else's money. How have you learned such cleverness? Then Yagya Dutt got angry. Then he said to them, you, leaving aside laughing and walking etc., tell me the truth about the ring or where did you get it from, I have got it from the king, hence you cannot take it, thus when he asked the deity When I asked him the truth, he told them the truth and said, "Why are you threatening me because I have not committed any theft, what is this and many other things, I have inherited from your son, many gems, gold, moon, ornaments, brass, copper etc." Yagya Dutt was very surprised to hear such words of Jari. He wrapped his face with a cloth. He wrapped his face in cloth. He came to his home crying out loud and said to the woman, "Where is Gunnidhi and where is my ring?" Hearing this, his wife got scared and replied very cleverly that at this time I am busy in many works, this is the time of worship for you too, you are me, your lover. I have to prepare food for the guests but I don't remember the place at which place I have kept the ring. The moment I get free from these tasks, I will find your ring and give it to him. Yagya Datia got angry after hearing this and said, Kaput's mother is clever in talking. Whenever I asked you where Gun Nidhi was, you replied that he along with his friends had gone to school for knowledge. Well, if the ring is not found then bring me some other thing and show it to me. Now you son, leave your mouth because A son cannot bring any kind of happiness, I wish to live without a son, I do not need such a child, now it is best for you to take some more water in your hand and leave a tribute in the name of the boy until I do this. I will not eat food or even go for a walk until I hear such words of my master.Nakar fell at his feet and started praying for forgiveness. After some time, even the anger of Yagya was reduced.
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