ब्रह्मा जी बोले हे नारद अब मैं तुमको शिव जी के अनाड़ी चरित्र के विषय में बताता हूं जिस प्रकार सती के दक्ष के घर में अवतार लेकर पुणे शिवाजी से विवाह किया तथा उन्होंने शिव जी के घर जो-जो कार्य किया उन सब का विस्तार पूर्वक वर्णन करता हूं मैं पहले 10 पुत्र उत्पन्न करके उनको आदेश दिया कि तुम सृष्टि की रचना करो मेरे हुए पुत्र मार्जित आई अंगिरा पुलिस दुआ फुलवा प्रीत ब्रिंग वशिष्ठ नारद तथा दक्ष हैं मैंने इनको मानसी सृष्टि की रीति पर उत्पन्न किया परंतु जब मैं ने नई स्वरूप परम सुंदरी सरस्वती को उत्पन्न किया तो उसके मनमोहन सुंदर स्वरूप को देखकर मेरा हृदय काम के वशीभूत हो गया आज तो उसे देखकर मेरे हृदय में भी उनके साथ मिथुन करने की इच्छा उत्पन्न हुई क्योंकि उसे समय मेरे हृदय में कामदेव प्रवेश किए हुए था मुझे सरस्वती के साथ मिथुन करने के लिए उपहार देख मेरे सभी पुत्र रहकर करने लगे और वह सब मुझे उसे भारी पाप से बचने के लिए भगवान सदाशिव की स्तुति करने लगे उसे समय शिव जी ने प्रकट होकर मुझे उसे नरक देने वाले महा भयानक पाप से बचा लिया सूट जी बोले है ऋषियों ब्रह्मा जी के मुख से यह वृद्धन सुनकर नारद जी कुछ देर तक विचार करने के उपरांत उनसे इस प्रकार कहा है पिता आप संपूर्ण सृष्टि के स्वामित्व तथा सबको उत्पन्न करने वाले हैं क्या इस समय मेरा हृदय अत्यंत चिंतित है अतः आप संपूर्ण संयम को नष्ट करने के लिए इस कथा को विस्तार पूर्वक कहिए आपका मन इस प्रकार क्यों अधीर हुआ आपकी सेवा करने वाले मनुष्यों को ब्रह्म ज्ञान की प्राप्ति होती है अतः आपके द्वारा ऐसे कम होना अत्यंत आश्चर्य की बात है ब्रह्मा जी ने उत्तर दिया है नारद तुम ध्यान देखकर सुनो मैं तुमसे मुख्य वृतांत वाली भांति समझ कर कहता हूं भगवान सदा शिव की माया धन्य एवं महाप्राण पर है ओम श्री शिव जी की माया ने मुझे जिस प्रकार नचाया वह कथा मैं तुमसे कहता हूं सृष्टि की वृद्धि के हेतु मैं अपने मुख से एक कन्या को उत्पन्न किया उसे उत्पन्न कर मेरे हृदय में कुछ अहंकार उपचार अहंकार प्रत्येक प्राणियों को दुख देता है वस्तु उसे समय शिव जी ने यह लीला दिखाई कि मैं मुझे एक ऐसी परम सुंदरी स्त्री उत्पन्न हुई जिसके देखने मात्र से संपूर्ण दुख दूर हो जाए उसे स्त्री का नाम संध्या रखा गया है वैसे अपूर्व सुंदरी मनुष्य लोक में तो क्या देवलोक में भी नहीं है उसे नाका से सीखा तब नवीन पूर्ण चंद्र के समान प्रभावशाल ने गज कामिनी तथा चंपक वनिक कामिनी को देखकर मेरा हृदय में काम वासना उठ जाग ही उठी और मैं उसके साथ रावण करने की इच्छा से अपने स्थान से उठकर खड़ा हो गया परंतु दक्ष आदि ने उसे समय मुझे ऐसे करने से रोक दिया दादू प्रांत वे सब अध्यक्ष आदि मेरे पुत्र स्वयं इसकी और पाप भारी दृष्टि से देखने लगे जिस समय मैं अपने मन में इस स्त्री के प्रति आने को प्रकार के विचार कर रहा था उसी समय अचानक एक ही एक अत्यंत पुरुष भी वही उत्पन्न हो गया वह मेरे सामने आकर खड़ा हो गया और मुझे इस प्रकार कहने लगा कि ही पिता आप मुझे मेरा नाम और काम बता दें आप मुझे जहां रहने की आज्ञा दें मैं वही रहूंगा आज तू आप कृपा करके मेरे ही शिक्षा को पूर्ण करें हे नारद उसे पुरुष की बात सुनकर मुझे अत्यंत आश्चर्य हुआ फिर कुछ देर विचार करने के बाद मैंने उसे कहा है पुत्र तेरे उत्पन्न होते ही मेरा हृदय और शरीर के सब अंग कांप उठे थे अतः मैं तेरा नाम मंथन रखता हूं इसके अतिरिक्त मानसिक मदन आदि तेरे आने को नाम होंगे तो अपने इन पांचो बानो द्वारा तथा अपने सौंदर्य द्वारा सबको अपने वशीभूत कर लेगा संपूर्ण सृष्टि का हृदय तेरे अधीन रहेगा इस प्रकार मैंने अपने पुत्र को बहुत से अधिकार प्रदान किया अपने कार्यों को इस प्रकार संपन्न हुआ देख मेरे हृदय में प्रसन्नता भर गई तथा अत्यंत अहंकार भी उत्पन्न हुआ तत्पश्चात सिंहासन पर बैठे हुए अपने सभी पुत्रों को देखकर मुझे बहुत हर्ष हुआ मैंने उसे पुरुष का नाम जो मंथन नाम रखा था उसे सभी ने बहुत पसंद किया और यह स्वीकार किया कि कामदेव का पद सबसे बड़ा तथा ऊंचा होगा इस घटना की उपरांत जबकि हम सब लोग अपने मन मे प्रसन्नता का अनुभव कर रहे थे कामदेव ने आपने उसे धनुष को सिद्ध किया जिसके चढ़ते ही तीनों लोक की बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है वह धनुष को चढ़ाए हुए मेरे पास आकर खड़ा हो गया और मन मे यह विचार करने लगा कि मैं उसे जो वरदान दिया है उसकी परीक्षा करके देख लिया जाए आज तो उसने मेरे पुत्री संध्या को मेरे समीप खड़े देखकर मेरे ही ऊपर अपना मोहन नामक बढ़ चला दिया था दो प्रांत उसने मेरे अन्य पुत्रों को भी अपने उसे बार द्वारा मूर्छित कर दिया उसे प्रकार हम सब उसके वशीभूत हो गए जब उसने यह देखा की संध्या के ऊपर उसके बाढ़ का कोई प्रभाव नहीं पड़ा है तो उसने संध्या के हृदय पर भी एक ऐसा बाण मारा की जिसके कारण वह भी कामदेव के वश में होकर चंचल और वक्र दृष्टि से सबकी और देखने लगी हम सब लोग बुद्धि भ्रष्ट हो जाने के कारण उसे पकड़ने की इच्छा करने लगे क्योंकि काम के वाजिब भूत हो जाने के कारण हमें किसी प्रकार के कुकर्म तथा पाप का विचार नहीं रहा था
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Brahma ji said, O Narad, now let me tell you about the clumsy character of Shiv ji, how Sati took incarnation in the house of Daksh and married Shivaji of Pune and described in detail all the work she did in the house of Shiv ji. I do this by first giving birth to 10 sons and ordered them to create the universe. My sons are Marjit Aayi Angira Police Dua Phulwa Preet Bring Vashishtha Narad and Daksh. I created them in the manner of Mansi creation but when I created a new form supremely beautiful. When I created Saraswati, my heart became captivated with lust after seeing her charming and beautiful form. Today after seeing her, a desire arose in my heart to have sexual intercourse with her because at that time Kamadeva had entered my heart. I wanted to have sexual intercourse with Saraswati. Seeing the gift to give, all my sons started doing the same and started praising Lord Sadashiv for saving me from this huge sin. At that time Shiv ji appeared and saved me from the terrible sin which would have given me hell. Suit ji has said. After listening to this advice from sage Brahma Ji, Narad Ji, after thinking for some time, said to him thus: Father, you are the owner of the entire creation and the creator of everyone. At this time, my heart is extremely worried, hence you are destroying all restraint. Tell this story in detail, why did your mind become impatient like this? People who serve you attain the knowledge of Brahma, hence it is very surprising for you to become less like this. Brahma ji has replied, Narad, you pay attention and listen. Understanding the main story, I tell you that Lord Shiva's Maya is always blessed and on the great life. Om I tell you the story of how the Maya of Shri Shiv ji made me dance. For the growth of the universe, I created a girl from my mouth. By creating her, there was some ego in my heart, the cure of ego is that it gives pain to every living being, the thing was that time, Lord Shiva showed me such a leela that a very beautiful woman was born to me, whose mere sight would remove all the sorrow, she was named Sandhya. By the way, she has gone to the world of humans and not only in the world of gods. I learned about her from Naka. Then after seeing Gaj Kamini and Champak Vanik Kamini, as powerful as the new full moon, the lust in my heart got awakened and I wanted to marry Ravana with her. I stood up from my place with a desire to do so, but Daksh etc. stopped me from doing so. All the presidents of Dadu Province, etc., my sons themselves started looking at her and her sins with a heavy eye. At that time, I started thinking about this woman in my mind. I was thinking about such things, at the same time suddenly the same great man also appeared, he came and stood in front of me and started saying to me like this, Father, please tell me my name and work, where do you allow me to stay. Give me, I will remain the same today, please please complete my education, O Narad, I was extremely surprised to hear that man's words, then after thinking for some time, I told him, 'Son, as soon as you were born, my heart and all the parts of my body trembled. You were born, hence I keep your name as Manthan. Apart from this, there will be names like Manik Madan etc. for your coming, then through these five arrows of yours and through your beauty, you will subdue everyone, the heart of the entire creation will be under your control. In this way, I have given many rights to my son. Seeing my work accomplished in this manner, my heart was filled with joy and immense pride also arose. After that, I felt very happy to see all my sons sitting on the throne. I had given him the man's name, Manthan. Everyone loved it. Liked it and accepted that Kamadeva's position would be the biggest and highest. After this incident, while all of us were feeling happy in our mind, Kamadeva proved to be a bow which as soon as it ascended, the intelligence of all the three worlds would get corrupted. He came and stood near me holding the bow and started thinking in his mind that he should test the boon I have given him. Today, seeing my daughter Sandhya standing near me, he started using his name Mohan on me. He had driven away two provinces. He also made my other sons unconscious with his bar. In this way we all became under his influence. When he saw that his flood had no effect on Sandhya, he also struck a blow on Sandhya's heart. He shot such an arrow due to which she also got under the control of Kamadeva and started looking at everyone with a playful and crooked gaze. We all, due to our intellect being corrupted, started desiring to catch her because due to lust becoming a legitimate ghost, we were not able to do any kind of thing. there was no thought of misdeeds and sins
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