शिव पुराण के सुनने की विधि
शिव पुराण के निर्माता श्रवण के लिए ब्राह्मण से शुभ मुहूर्त निकलवाना चाहिए देश देश अंतर स्थित अपने बंधु बांधों को अपने शुभ निश्चय की सूचना देते हुए निमंत्रित करना चाहिए अपने नगर की ईस्ट मित्रों तथा बंधु शाखों को भी श्रद्धापूर्वक निमंत्रण देना चाहिए और आए हुए सज्जनों का यह जो जीत स्वागत करना चाहिए यह शिवालय तीर्थ अथवा घर में ही कथा की सारी व्यवस्था करनी चाहिए तथा स्थल की भूमिका संशोधन करके उसे चित्रों से सुसज्जित करना चाहिए केला चंदू आदि से सुसज्जित एक सुंदर मंडप बनाया चाहिए और उसके चारों ओर 2000 पत्रिका के लगानी चाहिए वक्त के लिए उपयुक्त स्थान और सुखद आसन की व्यवस्था करनी चाहिए वक्त को पूर्व अभी मुख और श्रोता की उत्तर अभिमुख होकर बैठना चाहिए तथा वाचन के प्रति उसके आयु सामाजिक स्थिति और शारीरिक अवस्था के भेदभाव को छोड़कर आदर भाव रखना चाहिए तथा उसे सदैव श्रद्धा पूर्वक प्रणाम भी करना चाहिए पूरन यज्ञ शुद्ध बुद्धि तथा शांत चित ब्राह्मण को अपने ही यजमान के हित साधन को ही अपना पुनीत कर्तव्य मानते हुए कथा के दिनों मे स्वयं नित्य का जीवन व्यतीत करना चाहिए ब्राह्मण को प्रतिदिन सूर्योदय से 3:30 पहाड़ तक कथा सुनाई चाहिए उसके उपरांत सभी उपस्थित लोगों को मिलकर एक साथ भजन कीर्तन करना चाहिए शिव पुराण के वक्त के पास सहकार्ट एक पुराण यज्ञ ब्राह्मण भी रहना चाहिए कथा में आने वाले विधाओं से निवारणता विधि पूर्वक गणेश पूजन करना चाहिए यज्ञ मां को कथा अवधि में ब्रह्मचर्य तथा शुद्ध आचरण का पालन अत्यंत कठोरता पूर्वक करना चाहिए तथा वाचन ब्राह्मण को अपने यजमान को शिव पुराण में साक्षात महेश्वर की भावना करते हुए उसे इस पवित्र ग्रंथ का पूजन करना चाहिए और उसे यह प्रार्थना करनी चाहिए कि भगवान शंकर उसे पर प्रसन्न होकर उसकी इस ग्रंथ के वर्णन को समझने और निश्चित श्रवण करने की क्षमता प्रदान करें यज्ञ मां को ऐसे पांच ब्राह्मण पृथक से नियत करने चाहिए जो पांच अक्षर शिव मंत्र का निरंतर जाप करते रहे यह अजमान का यह भी कर्तव्य है कि ग्रंथ समाप्ति पर वक्त तथा अन्य ब्राह्मणों को अनुवास्त्र तथा दक्षिण आदि से पूर्णता संतुष्ट करें इस प्रकार शिव पुराण का विधि पूर्वक श्रवण निशान दे अलौकिक सुख और पारलौकिक कल्याण को देने वाले है
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Method of listening to Shiva Purana
The auspicious time should be fixed by a Brahmin for listening to the creator of Shiv Purana. You should invite your brothers and sisters located across the country by informing them about your auspicious decision. You should also respectfully invite the East Friends and brother branches of your city and welcome the gentlemen who have come. This victory should be welcomed. All the arrangements for the story should be made in Shivalaya, Teerth or at home and the role of the place should be modified and it should be decorated with pictures. A beautiful pavilion should be made decorated with banana, Chandu etc. and 2000 magazines should be placed around it. A suitable place and a comfortable seat should be arranged for the time. Before the time, one should sit with his face facing north towards the listener and there should be respect for the reciter, leaving aside the discrimination of his age, social status and physical condition, and he should always salute him with reverence. Puran Yagya should also be performed. The Brahmin should have a pure mind and a calm mind. He should live his daily life during the days of the Katha, considering it to be his sacred duty to serve the welfare of his own host. The Brahmin should narrate the story every day from sunrise to 3:30 pm. After this, all the people present should come together and do bhajan kirtan. During the time of Shiv Purana, a Purana Yagya Brahmin should also be present near the Sahakart. Ganesh should be worshiped methodically to avoid the distractions coming in the Katha. Yagya Maa should maintain celibacy and pure conduct during the Katha period. It should be followed very strictly and the reading Brahmin should worship this holy book by giving his host the feeling of Maheshwar in Shiv Purana and he should pray that Lord Shankar will be pleased with him and allow him to understand the description of this book. And provide the ability to hear clearly, Yagya Maa should appoint five Brahmins separately who should continuously chant the five syllable Shiv Mantra. It is also the duty of Ajman that at the end of the book, time and other Brahmins should be separated from Anuvastra and Dakshin etc. Satisfies completeness, thus listening to Shiv Purana in the prescribed manner will give supernatural happiness and transcendental welfare.
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