श्री विष्णु पुराण कथा छठ स्कंद अध्याय 8 का भाग 2



हे मुनिश्रेष्ठ जेष्ठ मां महीने के शुक्ल पक्ष की द्वादशी को मथुरा पुरी में उपवास व्रत करते हुए यमुना जी में स्नान करके सच्चे मन से श्री अछूत का पूजा करने से मनुष्य को अश्वमेध यज्ञ का संपूर्ण फल प्राप्त होता है कहा जाता है कि अपने वंशजों द्वारा यमुना के किनारे पिंडदान करने से लाभ किए हुए दूसरे पितरों की उन्नति को देखकर दूसरे मनुष्यों के प्रीत पितामह ने इस प्रकार से कहा था क्या हमारे कुल वंश में उत्पन्न हुआ कोई व्यक्ति जस्ट माह महीने के शुक्ल पक्ष में द्वादशी को मथुरा में उपवास रखकर यमुना के जाल में स्नान करके प्रभु गोविंद जी का सच्चे मन से पूजन करेंगे जिसके फल स्वरुप हम भी अपने वंशजों द्वारा उधर प्रकार ऐसा परम ऐश्वर्य प्राप्त कर सकेंगे जो बहुत भाग्यवान होते हैं उन्हीं के वंशज ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष के द्वादशी में प्रभु की अर्चना करके यमुना में पितरों को पिंडदान करते हैं उसे समय यमुना के जाल में स्नान करके प्रभु का पूजन करने से और पितरों को पिंडदान देने से अपने पितामहों को तारता हुआ मनुष्य जिस पुण्य फल का भाभी होता है वही पुण्य फल सच्चे मन से इस पुस्तक का एक अध्याय सुनने से प्राप्त हो जाता है यह पवन विष्णु पुराण जगत से भयभीत हुए मनुष्यों को उत्तम रक्षक उनसे समस्त देश का नाश करने वाला संतान तथा संपत्ति को प्रदान करने वाला है इस आर्य पुराण को सर्वप्रथम ब्रह्मा जी ने ऋषि को सुनाया था और इसी ने प्रिया व्रत को सुनाया प्रिया व्रत में बुरी को सुनाया बुरी ने इस स्तंभ मित्र को सुनाया स्तंभ मित्र ने दादी जी को दादी जी ने शाश्वत को सुनाया शाश्वत ने मर्ग सुनाया मृग ने पूर्व कुर्सियां पूर्व कुर्सियां ने नर्मदा को और नर्मदा ने घृत राष्ट्र को पूर्ण नाग को सुनाया इन दोनों ने यह पुराण नाराज वास वीक को सुनाया नाराज वास्तविक ने वात्सल्य को वात्सल्य ने अश्वत्रण को सुनाया अस्वातारण ने कंबल को और कंबल ने एल पुत्र को सुनाया इसी समय मुनिवर वेद शिरा पाताल लोक पहुंचे उन्होंने यह समस्त पुराण प्राप्त किया और फिर प्रमाती को सुनाया प्रमाती ने उसे परम ज्ञानी जगत कार्ड को सुनाया और जगत करण ने अन्याय पूर्ण सेल परमात्माओं को सुनाया पूर्व जन्म में साक्षर के मुख से सुना हुआ यह पुराण पुरुष स्वास्थ्य के वरदान से मुझे स्मरण रहा और मैं तुम्हें सुना दिया तथा कलयुग के अंत में तुम इसे इस नाव को सुनाओ

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O great sage Jeshtha Maa, by fasting in Mathura Puri on the twelfth day of Shukla Paksha of the month, taking bath in Yamuna and worshiping Shri Untouchable with a true heart, a person gets the full results of Ashwamedha Yagya. It is said that through his descendants, Yamuna is Seeing the progress of other ancestors who had benefited from performing Pind Daan on the banks of river Yamuna, the beloved grandfather of other human beings had said in this way, will any person born in our lineage just keep a fast on Dwadashi in Mathura in the Shukla Paksha of the month of Yamuna? By taking bath in the river, we will worship Lord Govind ji with true heart, as a result of which we will also be able to attain such ultimate opulence through our descendants. Those who are very fortunate, their descendants will worship the Lord in Yamuna on the Dwadashi of Shukla Paksha of Jyeshtha month. By worshiping the Lord by taking a bath in the river Yamuna and worshiping the Lord by offering Pind Daan to the ancestors, the same virtuous results that a person gets by worshiping his forefathers by offering Pind Daan to his ancestors are achieved by listening to a chapter of this book with a true heart. This wind is obtained from Vishnu Purana, it is the best protector for the people who are afraid of the world, it is the one who destroys the whole country and bestows children and wealth. This Arya Purana was first narrated by Lord Brahma to the sage and he narrated it to Priya Vrat. In Priya Vrat, he narrated to Buri. Buri narrated to this pillar friend, Pillar friend narrated to grandmother, Grandma ji narrated to Shashwat, Shashwat narrated to Marg, the deer narrated to the former chairs, former chairs to Narmada and Narmada narrated to the ghee nation, Purna Naag narrated both of them. N narrated this Purana to the angry Vaas Veek, Naughty Achtal narrated it to Vatsalya, Vatsalya narrated it to Ashwatran, Asvataran narrated it to Kambal and Kambal narrated it to L's son. At the same time, Munivar Ved Shira reached the underworld, he received all this Purana and then narrated it to Pramati Pramati I narrated it to the most knowledgeable Jagat card and Jagat Karan narrated it to the unjust cell Gods. This Purana, heard from the mouth of a literate man in my previous birth, I remembered with the blessing of health and I narrated it to you and at the end of Kaliyuga, you will read it in this boat. tell to

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