श्री विष्णु पुराण कथा छठ स्कंद अध्याय 7 का भाग दो



यह सब बात सुनकर खंडिक वाक्य बोले है योग विधताओं में सर्वश्रेष्ठ केशिध्वज आप निमिष वंश में योग शास्त्र के विशेषज्ञ ज्ञात है अतः आप हमें उसे योग का वर्णन सुनाएं कैसी ध्वज बोल ही खंडिक वाक्य जिसमें स्थित होकर ब्रह्मा में लीन हुए मुनीगढ़ पुणे स्वरूप द्वारा अलग नहीं होते मैं उसे योग का वर्णन करता हूं आप ध्यान से सुनो मनुष्य के बंधन व मोक्ष का कारण केवल हमारा यह मन ही है विषय का सॉन्ग करने से वह बंधन करी और विषय शून्य होने से मोक्ष कारक हुआ करता है अतः विवेक ज्ञान संपन्न मुनीजा अपने मन को विषयों से दूर कर मोक्ष प्राप्त करने के लिए ब्रह्म स्वरूप परमात्मा का चिंतन करें जिस तरह आर्य कांत मणि अपनी शक्ति से लोहे को खींचकर उसे स्वयं में मिल लेता है उसे प्रकार ब्रह्मा चिंतन करने वाले मुनि जनों को परमात्मा इस स्वभाव से ही स्वरुप में लीन कर देता है आत्मज्ञान के पर्यटन भूत में नियम आदि की अपेक्षा रखने वाली जो मन की विशिष्ट गति चाल है उसका ब्रह्मा के साथ सहयोग होना ही योग कहलाता है जिसका योग इस प्रकार से विशिष्ट धर्म से युक्त होता है वह योगी मृत्यु जोगी कहलाता है सर्वप्रथम जब मृत्यु योग आभास आरंभ करता है तो उसे योग युक्त योगी कहलाते हैं और पंजाब उसको परम ब्रह्म की प्राप्ति होती है तो वह विपिन समाधि कहलाता है यदि किसी भी गृह वास्तु योग युक्त योगी का मन अशुद्ध हो जाता है तो जाममंतरण में भी इस आभास को करते रहने से वह मुक्त हो जाता है विनय विप समाधि योगी तो योग अग्नि से कम समूह के भरम हो जाने के कारण इस जन्म में थोड़े ही समय में मोक्ष प्राप्त कर लेता है योगी को अपना मन ब्रह्म चिंतन योग बनाना चाहिए तथा संयंत्र मन से ईश्वर अध्याय से आचरण करें और मां को निरंतर परम ब्रह्म में लगाए रहना चाहिए यह पांच यह और पांच नियम बताए गए हैं इसका सा काम आचरण करने से अलग-अलग फल प्राप्त होते हैं और निष्कर्म भाव से सेवा करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है अभ्यास के द्वारा जो प्राण वायु वश में की जाती है वह प्रणाम आयाम कहलाती है वह दो प्रकार की होती है पहले संजीव दूसरा निर्जीव जब प्राण और आप पैन वायु द्वारा एक दूसरे को विरोध किया जाता है तो क्रमशः रेचक और पूरक नामक दो प्राण आयाम होते हैं और इन दोनों का एक ही समय सम्मियत करने से कुंभौप नामक तीसरा प्राण यह होता है प्रनियम से वायु और प्रत्याहार से इंद्रियों के वशीभूत करके चिंतन को उसके शुभ आश्रम में स्थित करें खंडित वाक्य ने केसरी द्वारा से पूछा है महाभारत जिसका आश्रय करने से जीत मां के समस्त द्वेष नष्ट हो जाते हैं वह चित्र मां का शुभ आश्रय क्या है केसरी ध्वज बोल ही खंडिक वाक्य ब्रह्म ही जीत का आश्रय है जो की मूर्ति और अमूर्त अथवा ऊपर और पर रूप से स्वभाव से ही दो प्रकार का है इस संसार में ब्रह्मा कम और आत्मक तीन प्रकार की भावनाएं हैं इनमें पहले कम भावना दूसरी ब्रह्म भावना और तीसरी उपाय आत्मिक भावना कहलाती है इस प्रकार से यह त्रिवृत भावनाएं हैं जब तक विशिष्ट ज्ञान के लिए कर मच्छर नहीं होते तभी तक अहंकार आदि भेद की वजह से अथवा दृष्टि रखने वाले मनुष्यों को जगत की विभिन्नता प्रतीक होती है परम ज्ञान वही है जिसमें की समस्त विभिन्नताएं या भेड़ शांत हो जाते हैं और जो सत्ता मात्रा और वाणी का विषय नहीं हुआ करता है और स्वयं ही अनुभव करने योग्य है वही प्रभु श्री हरि विष्णु जी का आरोप नमक परम रूप है जो उनके जगत रूप में विलक्षण है

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Hearing all this, he said in a fragmentary sentence, Keshidhwaj, the best in the methods of Yoga, you are known to be an expert in Yoga Shastra in the Nimish dynasty, therefore, please tell us the description of Yoga. What kind of a flag should you speak in a fragmentary sentence, in which Munigadh Pune, situated in Brahma, is not separated by its form. While I am describing Yoga to him, you listen carefully. The reason for man's bondage and salvation is our mind only. By singing about the subject, that bondage is removed and by being void of the subject, it becomes the factor for salvation. Therefore, a sage full of wisdom and knowledge should keep his mind in his mind. To attain salvation by getting away from the objects, one should contemplate on God in the form of Brahma. Just as Arya Kant Mani pulls the iron with his power and merges it in himself, in the same way, the sages who contemplate on Brahma get absorbed in the form of God by this very nature. The special movement of the mind which has the expectation of rules etc. in the past, its cooperation with Brahma is called yoga. The one whose yoga is associated with special religion in this way is called a death yogi. First of all, when If the person starts attaining Mrityu Yoga then he is called Yogi with Yoga and when he attains the Supreme Brahma then he is called Vipin Samadhi. If the mind of any Yogi with Graha Vaastu Yoga becomes impure then he also experiences this feeling in Jam Mantarana. By living in Vinaya Vipa Samadhi, the yogi attains salvation in a short time in this life due to the illusion of group less than the fire of yoga. The yogi should make his mind Brahma Chintan Yoga and plant his mind towards God. Chapter These five rules and five more rules have been explained to the mother and the mother should be constantly engaged in the Supreme Brahma. By doing such work one gets different results and by serving selflessly one attains salvation through practice. The prana vayu which is controlled is called pranaam dimension, it is of two types, first is animate and second is inanimate. When prana and apa pana vayu oppose each other, then there are two prana dimensions called rechaka and puraka respectively and these By combining both of them at the same time, the third life called Kumbhaop is formed. By subduing the senses with Pranayam, Vayu and with Pratyahara, place the thinking in its auspicious ashram. The fragmented sentence has asked Kesari from the Mahabharata that by taking shelter of which, victory over all the Mother's problems is achieved. Hatreds are destroyed That picture What is the auspicious shelter of the mother Saffron flag The word itself The fragmentary sentence Brahma is the shelter of victory Which is of two types by nature, idol and abstract or above and beyond form In this world, Brahma is less and soul is. There are three types of emotions, in which the first is the lower emotion, the second is the Brahma emotion and the third solution is called spiritual emotion. In this way, these are the three types of emotions, unless there are mosquitoes for specific knowledge, then due to ego etc., due to discrimination or the people having vision, The diversity of the world is a symbol of the supreme knowledge in which all the diversities or sheep are calmed down and the existence which is not the subject of quantity and speech and is capable of being experienced on its own is the supreme form of Lord Shri Hari Vishnu Ji. who is unique in his world form

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