श्री विष्णु पुराण कथा छठा स्कंद अध्याय 7 का भाग 3


प्रभु श्री हरि विष्णु शक्ति पर है क्षेत्र यज्ञ शक्ति अपार है और कम नमक तीसरा शक्ति अभी दिया है इस अभी दिया शक्ति द्वारा आवर्त होकर वह स्वरूप गामी सब स्थान पर गण करने वाली क्षेत्र यज्ञ शक्ति समस्त प्रकार के आती विस्तृत सांख्यिकी कष्ट करती है अविद्या शक्ति विरोधी रहने के कारण ही क्षेत्र यज्ञ शक्ति समस्त प्राणियों में तरता में से दिखाई देती है वह सबसे न्यूनतम जड़ पदार्थ में है उनसे अधिक वृक्ष पर्वत आदि स्थान वारों में स्थानवरों से अत्यधिक समृद्ध में और उनमें अधिक पक्षियों में है पक्षियों से अधिक मृग में तथा मृग से अधिक पशुओं में तथा पशुओं की अपेक्षा मनुष्य प्रभु की उसे क्षेत्र यज्ञ शक्ति से अधिक प्रभावित है मनुष्य सेनाक गंधर्व यक्ष आदि सारे देवताओं में देवगांव इंद्र में इंद्र से प्रजापति में और प्रजापति से हिरण गर्भ में उन शक्ति का विशेष प्रकार है यह समस्त रूप से उसे प्रभु के ही शरीर है क्योंकि यह समस्त आकाश की तरह उसकी शक्ति से व्याप्त है प्रभु के जी मोत रूप का जिस तरह से ध्यान करना चाहिए वह मैं तुम्हें सुनाता हूं ध्यानपूर्वक सुनो प्रसनजीत कमल के समान अति सुंदर नेत्रों वाले सुंदर का पोल और विभाग बल से अत्यंत सुशोभित है और अपने सुंदर धारण किए हुए है जी प्रभु की गिरिवा संघ के समान चौड़ी और विशाल वृक्ष स्थल श्रीवास्तव लेकिन से सुशोभित है जो तरंगकर त्रिवेणी तथा नीची नाही वाली उधर से सुशोभित है उसकी लंबी-लंबी 8 या 4 भुजाएं हैं और जिनकी जांघ तथा पूर्व समान भाव द्वारा है तथा मां को हरने वाले चरण बिंदु है एवं सुंदरता से विराजित है उन निर्मल पीतांबर धारी ब्रह्म स्वरूप प्रभु श्री हरि विष्णु जी का चिंतन कर उन्हें प्रणाम कर अपने सुमंत पूर्ण आपूर्वित करने चाहिए किसी भी कम को करते समय यदि मनुष्य के मन में प्रभु की यदि मूर्ति बसी हो तो उसका कर्म अवश्य ही सिद्ध हो जाता है केंद्रीय नेत्र जिसमें परमेश्वर के रूप की ही प्राप्ति होती है ऐसी जो विषय अंतर की इस प्रतीक रहित एक अणुव्रत धारण है उसे ही ध्यान कहते हैं यह अपने से पूर्व यह नियम मत छाया अंगों से निस्पन होता है उसे दया पदार्थ का ही जो मन के द्वारा ध्यान से सिद्ध होने योग्य कल्पनाहीन स्वरूप कल्पित किया जाता है उसे ही समाधि कहते हैं है राजन समाधि होने वाला प्रभु का प्रत्यक्ष रूप विज्ञान ही परम ब्रह्म तक ले जाना वाला है और समस्त भावों से रिक्त एक मात्र आत्मा ही वहां तक पहुंच सकती है मुक्ति प्राप्त करने में ज्ञान रूपी कारण से 6 से युक्त रूपी काम को सफल करने विज्ञान एवं धन्य होकर निर्मित हो जाता है उसे समय वह भागवत भाव में भरकर परमात्मा से अभिन्न हो जाता है इसका वेद ज्ञान तो अज्ञान जन्म ही है वेद उत्पन्न करने वाले आज्ञा के सर्वत्र नष्ट हो जाने पर परम ब्रह्म और आत्मा में अभी दिया भेदभाव कौन कर सकता है हेखंडिक वाक्य इस प्रकार मैंने तुम्हारा पूछन के अनुसार प्रश्नों के उत्तर संक्षिप्त एवं समृद्धि योग्य का वर्णन किया है और आप क्या चाहते हैं खंडित वाक्य बोले आपने इस महायोग्य का वर्णन करके मेरे सभी कार्य सिद्ध कर दिए हैं क्योंकि आपके उपदेश ज्ञान से मेरे चित्र मां का संपूर्ण महल नष्ट होकर मेरा मां स्वच्छ हो गया हे राजन मैंने जो मेरा कहा यह भी सत्य ही है अन्यथा जी वस्तु को जानने वाले तो यह भी नहीं कह सकते मैं और मेरा ऐसी बुद्धि और इसका व्यवहार भी अभी दिया ही है परमात्मा तो कहने सुनने की बात नहीं है क्योंकि वह प्राणी का तो विषय ही नहीं है एक ऐसी ध्वज आपने इस मुक्ति प्राप्त योग का वर्णन करके मेरा समस्त कल्याण कर दिया केसरी ध्वज में खंडित वाक्य को क्षमा कर दिए और खंडित से आयोजित पूजित होकर राजा केसरी ध्वज वापस अपने नगर में लौट आए और खंडित ने अपना राज अपने छोटे पुत्र को खुद योग्य सिद्ध के लिए वन की ओर प्रस्थान कर गए वह या मदी गुना से युक्त होकर एकाग्रचित से ध्यान करने करते हुए खंडित विष्णु नमक ब्रह्म में लीन हो गए लेकिन केसरी ध्वज विधायक मुक्ति के लिए अपने कर्मों का क्षय करते हुए संपूर्ण विषय भोंकते रहे उन्होंने फल की इच्छा ना करके आने को शुभ कर्म किए

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Prabhu Shri Hari Vishnu Shakti is based on Kshetra Yagya Shakti, there is immense and less salt, the third Shakti has just been given, the Kshetra Yagya Shakti, which rotates through this Shakti has just given, and goes to form and enumerates everywhere, all kinds of detailed statistics come and cause trouble, Avidya Shakti. Due to being opposite, the power of Kshetra Yagya is visible among all the living beings, it is visible in the smallest of the inanimate substances, it is more prosperous than the trees, mountains etc. in different places, it is more prosperous than the local people and among them it is more in the birds, it is more in the deer than the birds and the deer. In comparison to animals, human beings are more influenced by the Yagya Shakti of the Lord than the animals, among all the gods like human army, Gandharva Yaksha etc. Devgaon, Indra from Indra to Prajapati and from Prajapati to the deer in the womb, there is a special type of that power, it is completely It is the body of the Lord because, like the entire sky, it is pervaded by His power. I am telling you the way in which you should meditate on the living form of the Lord. Listen attentively, the pole and division of the beautiful one with very beautiful eyes like a blessed lotus. She is extremely decorated with and is wearing her beautiful clothes, which is adorned with a wide and huge tree like the Lord's Giriva Sangha, Shrivastava Lakin, which is adorned with a wave-like triveni and a low nahi wali, it has 8 or 4 long arms and whose Thigh and East are in the same sense and are the feet of the one who defeats the mother and are seated with beauty. One should contemplate on that pure yellow amber clad Brahm form of Lord Shri Hari Vishnu Ji and worship Him and offer one's good fortune while doing any work. If the image of God resides in a person's mind, then his work definitely gets accomplished. The central eye in which only the form of God is attained. The one who wears a single vow without this symbol of separation of objects is called meditation. It is from oneself. Earlier, this rule of opinion is that the shadow is released from the organs, it is the form of mercy that is imagined by the mind in an unimaginable form which can be proven through meditation, this is called Samadhi. Rajan Samadhi is the direct form of God, only science can take it to the Supreme Brahma. It is about to go and only a soul empty of all emotions can reach there. To attain liberation, for the reason of knowledge, to succeed in the task of 6, it is created by becoming blessed with science and by filling that time with Bhagavat Bhava and with God. Knowledge of Vedas becomes integral to it, ignorance is the birth itself. When the Ajna which produces Vedas is destroyed everywhere, who can differentiate between Supreme Brahma and the soul? In this way, I have answered the questions briefly and richly as per your question. You have described the worthy one and what do you want? Speak in broken sentences, you have accomplished all my work by describing this great worthy one, because due to your teachings and knowledge, the entire palace of my picture mother has been destroyed and my mother has become clean. O king, whatever I have said is mine. This is also true, otherwise those who know the real thing cannot even say that I and I have such intelligence and its behavior that we have already given that God is not a matter of saying or hearing because He is not the subject of any living being, such a flag. You did all my welfare by describing this liberated yoga, forgave the broken sentence in the Kesari flag and after being worshiped by the Khandit, the king returned to his city with the Kesari flag and Khandit handed over his kingdom to his younger son who proved himself worthy. He left for the forest with the help of Madi Guna, while meditating with concentration, the fragmented Vishnu got absorbed in the salt Brahma, but the saffron flag MLA kept barking the entire subject, destroying his deeds for the sake of liberation, he did not wish for the fruit. did good deeds to come back

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