श्री विष्णु पुराण कथा पांचवा स्कंध अध्याय 38 का भाग दो



तब अर्जुन ना सोचा कि मैं प्रभु श्री कृष्ण जी के प्रभाव से ही आने को राजाओं को जीता था अर्जुन को देखते ही देखते हुए अहीर उन स्त्री रतन को खींच कर ले जाने लगे तथा कोई कोई अपनी इच्छा अनुसार इधर-उधर भाग गए इस प्रकार अर्जुन के देखते ही देखते हुए मलिक अंधक वंश की उन सारी स्त्रियों को साथ लेकर चले गए तब अर्जुन दुखी होकर रोने लगे और बोल क्या पैसा कष्ट है मुझे तो उन प्रभु ने ही उठा लिया देखो या वही धनुष है और यह वह की शास्त्र है वही अश्व और वही रात है लेकिन स्रोत को दिए हुए दान के समान आज सारे एक साथ नष्ट हो गए हैं देव बहुत प्रबल है जिसे आज श्री कृष्ण जी के न रहने पर समर्थ और नीचे हीरो को विजय दे दी है देखो मेरी हुए भी भुजाएं हैं वही मेरी मुट्ठी है वही कुरुक्षेत्र स्थान है और मैं भी वही वीर अर्जुन हूं लेकिन पूर्ण दर्शन श्री कृष्ण के बिना आज सब सारहीन हो गए हैं अवश्य ही मेरा अर्जुन वटवा और भीम का भी तत्व प्रभु श्री कृष्ण जी की कृपा से ही था देखो उनके बिना आज महा राशियों में सर्वश्रेष्ठ मुझ को तू क्या अभी वीरों ने जीत लिया यह सब कहकर अर्जुन अपने राजधानी इंद्रप्रस्थ आए और वहां यादव नंदराज और राज अभिषेक किया फिर हुए व्यास मुनि से मिले और उन्हें हाथ जोड़कर प्रणाम किया अर्जुन को इस तरह उदास देख व्यास मुनि ने कहा है अर्जुन तुम ऐसी क्रांति ही क्यों हो रहे हो बताओ क्या बात है श्री पाराशर जी बोले अर्जुन ने अपनी पराजय का सारा वृत्तांत व्यास जी को जिओ का क्यों सुना दिया अर्जुन बोले जो श्री कृष्ण जी बाल तेज वीर्य पराक्रम श्री और क्रांति थे हुए कि हमें छोड़ कर चले गए जो समस्त प्रकार समर्थ होकर भी हमसे मित्रता पूर्वक बात किया करते थे जो मेरे दिव्या वेस्टन देवबंदों और ओनियो के मूर्ति वहां सर थे हुए पुरुषोत्तम प्रभु श्री कृष्ण जी हमें छोड़कर चले गए जिसकी कृपा दृष्टि से श्री जाए संपत्ति और उन्नति निशा देव हमारा साथ दिया है वह ही प्रभु श्री कृष्ण जी हमें छोड़ कर चले गए है तहत उन चक्र वाणी श्री कृष्ण के वीर में एक में ही क्या सारी पृथ्वी ही योवन श्री और क्रांतिहीन हो गए जिनके प्रभाव से अग्नि मुख्य रूप में भीष्म आदि पतंग वृत भरम हो गए थे आज वही प्रभु श्री कृष्ण जी के बिना गोपियों ने मुझे पराजित कर दिया जिन श्री कृष्ण के प्रभाव से यह धार्मिक धनुष दोनों लोगों में विख्यात था उन्हीं के बिना यह आज हीरो की लाठी से परिष्कृत हो गए हैं हे महामुनी प्रभु श्री कृष्ण जी की जिओ शास्त्रियों की स्त्रियां मेरी देखरेख में आ रही थी उन्हें मेरे सारे पर्याप्त करने पर भी दशूत गांड अपनी लाठियां के बल से उन्हें ले गए उन वीरों ने आज मेरे पाल को कोविद कर मेरे साथ लाए हुए सारे कृष्णा परिवार को हर लिया है ही पिता मां नीचे पुरुषों द्वारा अपमान पथ में शंकर भी माय निर्जल अभी तक जीवित हूं श्री व्यास जी बोले है पथ तुम्हारे लज्जा व्यर्थ है तुम्हें शक करना उचित नहीं है तुम सारे भूतों में कल की ऐसी ही गति जानू प्राणियों की उन्नति और अमित का कारण कल ही है इन जे पर आ जाए को कल के अधीन समझ कर तुम स्थिरता धारण करो नदिया समुद्र गिरी गांड समस्त पृथ्वी देव मनुष्य पशु वृक्ष और श्री सर्प आदि समस्त पदार्थ कल के ही बचे हुए हैं और फिर एक कल से ही छेद हो जाते हैं अतः इस सारे प्रचंड को कलात्मक जानकर शांति हो जाओ

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Then Arjun did not think that I had won the kings to come only due to the influence of Lord Shri Krishna. On seeing Arjun, the Ahirs started dragging those women Ratan away and some ran away here and there as per their wish, thus Arjun Within no time Malik went away taking all those women of Andhak dynasty along with him, then Arjun started crying in sadness and said, what is the problem of money, it is the Lord who has taken me away. Look, is it the same bow and this is the scripture of the same, the same horse. And it is the same night, but like a donation given to the source, today all have been destroyed together. God is very strong, who has been empowered today in the absence of Shri Krishna and has given victory to the heroes below. Look, even though I have arms, they are also mine. My fist is the same Kurukshetra place and I am also the same brave Arjun, but today everything has become meaningless without the complete darshan of Shri Krishna. Of course, the essence of my Arjun Vatva and Bhima was also due to the grace of Lord Shri Krishna. Look, without him, today is a great day. Have you considered me the best among all the zodiac signs? Have you been conquered by the braves? Having said all this, Arjun came to his capital Indraprastha and there Yadav Nandraj and anointed the king, then he met Vyas Muni and saluted him with folded hands. Seeing Arjun sad like this, Vyas Muni said Hey Arjun, why are you doing such a revolution, tell me what is the matter, Shri Parashar ji said, Arjun told the whole story of his defeat to Vyas ji, why live? Arjun said, that Shri Krishna ji was hairy, fast, semen, bravery, Shri and revolution happened that we The one who despite being capable in every way used to talk to us in a friendly manner, who was the idol of my divine Weston Deobands and Oniyo, the most supreme Lord Shri Krishna ji, has left us and gone away from us, by whose grace Shri Jai Jaaye wealth and progress Nisha Dev. It is Lord Shri Krishna who has supported us and has left us. Under those Chakra Vani Shri Krishna's brave words, not only the entire earth became young and revolution-less, due to whose influence Agni was in the main form, Bhishma etc., kites, circles and illusions. Today, without Lord Shri Krishna, the Gopis defeated me. Due to the influence of Shri Krishna, this religious bow was famous among both the people, without him, today it has become like a hero's stick. O great sage Lord Shri Krishna. That the women of Jio Shastris were coming under my care, despite all my efforts, the dastardly ass took them away with the power of their sticks. Today, those brave men have taken away my pal and the entire Krishna family that I had brought with me, father. Mother, down below, Shankar is also on the path of insult by men, I am waterless, I am still alive, Shri Vyas ji has said, Path, your shyness is useless, it is not right to doubt you, you know the same pace of tomorrow among all the ghosts, the reason for the progress of living beings and Amit is only tomorrow. If these things come to you, considering them as dependent on tomorrow, you should maintain stability. Rivers, seas, fallen ass, all the earth, gods, humans, animals, trees and Sri snake etc. all the things are left of yesterday and then they become holes from yesterday itself, hence this Be at peace knowing all the chaos is artistic

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