श्री विष्णु पुराण कथा पांचवा स्कंद अध्याय 38

यादवो का अंत येष्ठी संस्कार परीक्षित का राज अभिषेक तथा पांडवों का स्वर्ग रोहण



श्री पाराशर जी बोले अर्जुन नहीं बलराम और श्री कृष्णा तथा मुख्य मुख्य यादों की अमृत देवों की खोज कर कर उन सबके उधर दैहिक संस्कार कर दिए प्रभु श्री कृष्ण जी की रुक्मणी महादेवी पटरानी बताए गए हैं इन सब ने उसके शरीर का आलिंगन का रागनी में प्रवेश की है शक्ति रेवती जी ने भी श्री बलराम जी की देव का आलिंगन कर उसके अंग अंग से आहत से शीतल प्रतीत होती हुई प्रज्वलित अग्नि में प्रवेश कर गए इस सारे अनिष्ट का समाचार सुनते ही और रोहिणी ने भी अग्नि में प्रवेश किया फिर अर्जुन ने उन सबका विधि पूर्वक प्रेत कम करके विराज तथा अन्य कुटुंबियों को साथ लेकर द्वारिका से बाहर आए द्वारिका से निकलते हुए शास्त्रों पत्तियों तथा बज और अन्य बांधों की रक्षा करते हुए अर्जुन धीरे-धीरे चल है मैथिली प्रभु श्री कृष्ण जी के वृद्धि लोक का त्याग करते ही सुधार सभा हुआ पारिजात वृक्ष भी स्वर्ग लोक चले गए जिन दिन प्रभु श्री कृष्ण ने पृथ्वी को छोड़कर स्वर्ग को गए थे उसी दिन वहां मालिन दे महाबली खाली युग पृथ्वी पर आ गया इस प्रकार जनसुनवाईय द्वारिका को केवल श्री कृष्ण जी के भवन को छोड़कर समुद्र ने डुबो दिया कृष्ण भगवान को समुद्र आज भी डुबोने में समर्थ नहीं है क्योंकि प्रभु श्री कृष्ण जी सदैव उसे में निवास करते हैं प्रभु श्री कृष्ण जी का यह अति पवित्र पावन स्थान समस्त पापों का नाश करने वाला है उसके दर्शन करने से ही मनुष्य सारे पाप से मुक्त हो जाता है हे मैथिली अर्जुन ने उन सारे द्वारिका वर्षों को धन-धान्य से संपन्न परी चंद पंजाब देश में बसाया उसे समय अनाथ स्त्रियों को अकेले धनुषधारी अर्जुन को ले जाते हुए देखकर लुटेरों ने कहा देखो यह धनुषधारी अर्जुन अकेला ही इस अनाथ स्त्रियों को ले जा रहा है वह अत्यंत दूर मर्द पाप कर्म और लाभ हृदय आभारी दयाल बोले हमारे ऐसे बोल पुरुषार्थ को अधिकार है यह भी ड्रोन यात्रा और कारण आदि को मार कर इतना अभिमान हो गया है कि यह हम ग्रामीणों की शक्ति को नहीं जानता हमारे हाथ में लाठी लेकर यह दुर्बुद्धि धनुष लेकर हम सब की अवज्ञा करता है यह सोचकर वह शास्त्रों लुटेरे लाठी और ठेले लेकर उसे नाथ द्वारिका वीडियो पर प्रहार करने लगे तब अर्जुन ने उन्हें धमकाते हुए कहा रे पपिया यदि तुम मरना नहीं चाहते हो तो तुरंत ही वापस लौट जाओ लेकिन लुटेरों न अर्जुन की बात को अनसुना कर दिया और प्रभु श्री कृष्ण जी के सारे धन और स्त्री धन को अपने अधीन कर लिया तब अर्जुन ने युद्ध में आज चिन्ह होने पर अपने गंडवी धनुष को चढ़ाया लेकिन वह ऐसा ना कर सके उन्होंने बड़ी कठिनता से उसे पर प्रजाति डोरी भी चढ़ा ली तो फिर वह शिथिल हो गए तब यह क्रोधित होकर अपने शत्रुओं पर बाढ़ की वर्षा करने लगे लेकिन अर्जुन का उद्भव छेद हो जाने से अग्नि के दिए हुए उनके अक्शबन भी उन हीरो के साथ युद्ध करने मैं नष्ट हो गए


TRANSLATE IN ENGLISH 

End of Yadavas, Yeshthi Sanskar, coronation of Parikshit and ascent to heaven of Pandavas.

Shri Parashar ji said, not Arjun, after searching for Balram and Shri Krishna and the nectar of the main memories of the Gods, he performed the physical rites of all of them there. Rukmani Mahadevi Patrani of Lord Shri Krishna ji has been described as the queen, all of them embraced his body and entered into Ragni. Revati ji also embraced Shri Balram ji's deity and entered the burning fire, feeling cool from every part of his body. On hearing the news of all this evil, Rohini also entered the fire, then Arjun told them. After ritually reducing the ghosts of everyone, he came out of Dwarka along with Viraj and other family members. Coming out of Dwarka, Arjun walked slowly, protecting the scriptures, leaves, rings and other dams. As soon as Maithili Lord Shri Krishna ji left Vriddhi Loka. Reform meeting took place, Parijat tree also went to heaven, on the day when Lord Shri Krishna left the earth and went to heaven, on the same day, Malin de Mahabali empty era came on the earth, thus the public heard Dwarka, leaving only Shri Krishna's house, the sea destroyed it. Even today the ocean is not capable of drowning Lord Krishna because Lord Shri Krishna always resides in it. This very holy place of Lord Shri Krishna destroys all the sins. Only by seeing him, man is freed from all sins. Arjun becomes free, O Maithili. Arjun spent all those Dwarka years in the land of Punjab, rich in wealth. At that time, seeing the orphan women carrying away the bow-wielding Arjun alone, the robbers said, look, this bow-wielding Arjun alone is taking away these orphan women. He is taking the man very far away, the sins, deeds and benefits, the heart is grateful, Dayal spoke our words like this, effort has the right, this too has become so proud by killing the drone journey and the reason etc. that it does not know the power of us villagers in our hands. Thinking that this foolish person with a stick is disobeying all of us with a bow, the robbers of the scriptures took sticks and carts and started attacking him on Nath Dwarka Video. Then Arjun threatened him and said, Hey Papiya, if you do not want to die then go back immediately. But the robbers ignored Arjun's words and captured all the wealth and women of Lord Shri Krishna, then Arjun offered his Gandavi bow at the signal in the battle, but he could not do so, he fought with great difficulty. A rope was also tied to him, then he became weak, then he got angry and started raining flood on his enemies, but due to the hole in Arjun's birth, his Akshaban given by Agni also got destroyed while fighting with those heroes.

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