है धनंजय तुमने श्री कृष्णा जी का जो महात्मा बताया है वह बिल्कुल सत्य है क्योंकि कमल नयन प्रभु श्री कृष्ण जी ही साक्षात कल स्वरूप ही है उन्होंने पृथ्वी का भार उतारने के लिए ही मृत्यु लोक में अवतार लिया था एक बार पूर्व काल में पृथ्वी भारत क्रांति देव गानों की सभा में गई थी कालस्वरूप प्रभु श्री कृष्ण जी ने उसके कास्ट निवारण के लिए अवतार लिया था अरे जा चुके हैं आता हुआ कार्य संपन्न हो गया वीर और अंधा खड़ी समस्त यदुकुल का भी उपसंहार हो गया इसलिए अपना कार्य संपन्न होने पर प्रभु सोएक्षा अनुसार चले गए आता है हे पार्थ तुझे अपनी पराजय से दुखी हूं नहीं होना चाहिए क्योंकि अभी दे कल उपस्थित होने पर ही पुरुष से ऐसी कम बताते हैं जिससे उसकी स्तुति होती है है अर्जुन जी समय तुमने युद्ध में अकेले ही भीष्म द्रोण और करण का वध कर डाला था क्या हुआ उन वीरों का कार्यक्रम से प्राप्त ही नवल पुरुष में प्रभाव नहीं था जिस तरह प्रभु श्री हरि विष्णु जी के प्रभाव से तुम्हें उन सब को नीचा दिखाया था उसी तरह तुझे दयायों से हारना पड़ा है जगत पेट देवर्षि ही शरीर के प्रविष्ट होकर जगत की स्थिति करते हैं और अंत में ही वही समस्त जीवों का नाश करते हैं है अर्जुन जब मेरा भाव उदय हुआ था तब प्रभु श्री कृष्ण जी तेरे सहायक थे और जब उसे सौभाग्य का अंत हो गया तो तेरे विपक्षियों पर प्रभु श्री कृष्ण जी की कृपा दृष्टि हुई है यह सब सर्वोत्तम की ही लीला है कि तुमने अकेले ही गौरवों को नष्ट कर दिया और स्वयं अहीरों से पराजित हो गए हे अर्जुन तू जो उन द याशियों द्वारा हरण की गई स्त्रियों के लिए शक करता है मैं तुम्हें उसका रहस्य बताता हूं एक बार पूर्व काल में विप्रवर अष्टक वक्र की 57 ग्राम हां की स्तुति करते हुए अनेकों वर्ष तक जल में रहे इस समय व्यक्तियों पर विजय प्राप्त करने से देवताओं ने सुमेरु पर्वत पर एक महान उत्सव किया जिसमें सम्मिलित होने के लिए जाती हुई आरंभ और त्रिलोचन आदि हजारों देवांगनों ने मार्ग में उन मुनीश्वर को देखकर उनकी स्तुति और प्रशंसा की वह समस्त देवांगन उन जटाधारी मुनीश्वर को कांत तक जल में दुबई हुए देखकर उनकी स्तुति करते हुए प्रणाम करके ने लगे अष्टक वक्र जी को प्रसन्न होने के लिए हुए अप्सरा उसकी स्थिति करने लगे अष्ट वक्र जी बोले हे मा भागों में तुम्हें प्रसन्न हूं तुम्हारी जो भी मनोकामना हो वही मुझसे कहो माटी दुर्लभ होने पर भी तुम्हारी इच्छा पूर्ण करूंगा तब रंभा एवं तिलोत्त में आदि अप्सराय में बोली है दीजिए आपके प्रसन्न हो जाने पर हमें सब कुछ मिल गया तथा अन्य अप्सराओं ने कहा भगवान यदि आप हम पर प्रसन्न हैं तो हम साक्षात पुरुषोत्तम भगवान को पति रूप से प्राप्त करना चाहते हैं श्री व्यास जी बोले तब ऐसा ही होगा यह कहकर मुनीश्वर अष्टक रिजल्ट से बाहर आए उनके जल से बाहर आते समय अप्सराओं ने आठ स्थान में टेढ़े उनके गुरु रूप देख देख को देखा उसे देखकर जिन अप्सराओं की हंसी छिपने पर भी प्रकट हो गई है गुरु नंदन उन्हें क्रोधित होकर मुनि अष्टवा करने शराब दिया मुझे कुरूप देखकर तुमने हंसते हुए मेरा अपमान किया है इसलिए मैं तुम्हें श्राप देता हूं कि मेरी कृपा से श्री पुरुषोत्तम को पति रूप में पाकर भी तुम मेरे शराब के कारण लुटेरों के हाथ पडोगी श्री व्यास जी बोले मुनि का श्राप सुनकर उन अप्सराओं ने उन्हें फिर प्रसन्न किया तब मुनव्वर ने उनसे कहा उसके पश्चात तुम फिर से स्वर्ग लोक में चले जाओगे इस तरह मुनि फर्स्ट वक्र के शराब से ही हुए देवांगनी प्रभु श्री कृष्ण जी को पति रूप में पाकर भी दयाशों के हाथ में पड़ी है है पांडव द्रव तुझे इस विषय में तनिक भी शौक नहीं करना चाहिए क्योंकि ओम श्री कृष्ण जी ने ही समस्त यदुकुल का उपसंहार किया है तथा तुम लोगों का अंत भी अब निकट ही है इसलिए उन प्रभु ने तुम्हारे तेज पाल वीर्य और महात्मा का संकोच कर दिया है जो उत्पन्न हुआ है उनकी मृत्यु निश्चित है उन्नत का अवश्य स्वाभाविक श्रम योग का अंत वियोग ही है तथा संचय के अंतर क्षय होना सर्वत निश्चित ही है इसलिए है नर्स श्रेष्ठ या जानकर तुम अपने भाइयों सहित समस्त राज को त्याग कर तपस्या के लिए वन को प्रस्थान करो अब तुम जाकर यह सारी बातें धर्मराज युधिष्ठिर को बताओ और पराशरों भाइयों सहित वन को प्रस्थान करो वैसा ही यात्रा करो मनी व्यास जी की बात सुनकर अर्जुन ने इंद्रप्रस्थ में आकर युधिष्ठिर और भीष्म मंकुल और सहदेव को उन्होंने संपूर्ण वृतांत सुना दिया उन समस्त पांडव पुत्रों ने अर्जुन के मुख में से ब्याज जी का संदेश सुना का राजपथ पर परीक्षित को अभिषेक किया और स्वयं वन को प्रस्थान कर गए
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Hai Dhananjay, what you have described as Mahatma of Shri Krishna ji is absolutely true because Lord Krishna ji with lotus eyes is the true form of yesterday. He had incarnated in the world of death only to take the burden of the earth. Once upon a time in the past, Earth was the revolution of India. Had gone to the meeting of Dev Ganas, the form of time, Lord Shri Krishna ji had incarnated to get rid of his caste, he is gone, the coming work has been completed, the brave and blind standing whole Yadu clan has also been annihilated, hence after completing his work, Lord Soeksha O Partha, you should not be sad about your defeat, because now only when you are present tomorrow, you tell such a thing to a man which earns him praise. Arjun ji, it is time that you single-handedly killed Bhishma, Drona and Karan in the war. What had you done? Those brave men received from the program had no influence on the naval man. Just as you had let them all down due to the influence of Lord Shri Hari Vishnu Ji, in the same way you had to be defeated by the mercy of the world. Devarshi is the one who entered the body. Arjun, when I was born, Lord Shri Krishna was your helper and when his good fortune came to an end, then the blessings of Lord Shri Krishna were upon your opponents. O Arjun, you who are suspicious of the women abducted by those Yashas, I will tell you its secret. Once in ancient times, while praising Vipravar Ashtak Vakra 57 grams of yes, he remained in the water for many years. During this time, having won over the people, the gods organized a great festival on Mount Sumeru, in which Aarambh and Trilochan etc. went to participate. Seeing that Munishwar on the way, thousands of Devangans praised and praised him. Seeing that Jata-clad Munishwar floating in the water up to his feet, they started praising him and bowed down to please Ashtak Vakar Ji. The Apsaras who came to please him started positioning him. Ashta Vakra ji said, O Ma, I am happy with you in all the parts, tell me whatever your wish is, I will fulfill your wish even if the soil is scarce, then in Rambha and Tilotta, Adi Apsarai has said, give, when you are happy, we got everything and Other Apsaras said, Lord, if you are pleased with us, then we wish to attain the Supreme Personality of Godhead in the form of our husband. Shri Vyas ji said, then this will happen. Saying this, Munishwar came out of Ashtak Result. While coming out of his water, the Apsaras placed eight places. I looked at the crooked form of his Guru. Seeing him, the Apsaras whose laughter had come out despite being hidden, Guru Nandan got angry and gave them liquor to drink Muni Ashtava. Seeing me ugly, you have insulted me while laughing, hence I curse you that my By my grace, even after getting Shri Purushottam as your husband, you will fall into the hands of robbers because of my liquor. Shri Vyas ji said, after hearing the curse of the sage, those nymphs pleased him again, then Munavvar told them that after that you will go to heaven again. Similarly, Muni First Vakra's daughter-in-law, who got married to Lord Shri Krishna in the form of her husband, is in the hands of demons, Pandava liquid, you should not be even a little interested in this subject because Om Shri Krishna ji is the epitome of the entire Yadukul. And now the end of you people is also near, that is why that Lord has hesitated about your fast sail semen and Mahatma, the one who has been born, his death is certain, the end of the natural labor of the advanced is definitely separation and the difference of accumulation is Decay is inevitable, that is why the nurse is the best. Or knowing this, you leave the whole kingdom along with your brothers and go to the forest for penance. Now you go and tell all these things to Dharmaraja Yudhishthir and go to the forest along with Parashara brothers and travel in the same way. Hearing the words of Mani Vyas ji, Arjun came to Indraprastha and narrated the entire story to Yudhishthir, Bhishma, Mankul and Sahadev. All those Pandava sons heard the message of Baij ji from Arjun's mouth that he anointed Parikshit on the royal path and himself left for the forest. done it
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