श्री विष्णु पुराण कथा पांचवा स्कंद अध्याय 37 का भाग 3



हे महामुनि एक ही चांद में प्रभु श्री कृष्ण जी और उसके सारथी दारु को छोड़कर कोई भी यादव वंशी जीवित नहीं बचा उन दोनों ने वहां घूमते हुए देखा कि बलराम जी एक वृक्ष के नीचे बैठे हैं उनके मुख से एक बहुत बड़ा सर्प निकल रहा है वह विशाल पंढरी कर उसके मुख से निकाल कर सीट और नग्न से पूजित होकर समुद्र की ओर चला गया इस समय समुद्र आराध्याय लेकर उसे महासर्प के सम्मुख उपस्थित हुआ और वहां नक्श श्रेष्ठों से पूजित हो समुद्र में चला गया इस तरह बलराम जी का प्राण देखा श्री कृष्ण जी ने दारू से कहा तुम यह सब वृतांत महाराज अग्रसेन और वासुदेव जी से जाकर कहो बलराम जी का निवारण यादों का अध्याय और मैं भी योग ग्रस्त होकर या शरीर छोड़ दूंगा यह सब समाचार उन्हें जाकर सुनो सारे द्वारिका वीडियो आरोग्यशन से कहा कि आप इस सारे नगर को समुद्र डुबो देगा इसलिए आप सब अर्जुन के आगमन की प्रतीक्षा करें तथा अर्जुन के यहां से लौटते ही फिर कोई भी व्यक्ति द्वारका में ना रहे जहां हुए गुरु नंदन जाए सारे लोग भी वहीं चले जाए कुंती पुत्र अर्जुन से तुम मेरी और कहना कि आपने समर्थ अनुसार तुम मेरे परिवारों के लोगों की रक्षा करना और तुम द्वारिका वाशी समस्त लोगों हमारे पीछे बज रही यादव वंशी का राजा होगा प्रभु श्री कृष्ण जी की बात सुनकर दारू ने उन्हें हाथ जोड़ बारंबार प्रणाम किया और उनके अनेक परिक्रमाएं कर उनके कहे अनुसार चला गया दारू के द्वारिका में पहुंचकर समस्त वृतांत सुना दिया और अर्जुन को वहां लाकर बज को राज अभिसित किया इधर प्रभु श्री कृष्ण जी ने समस्त भूतों में विकास वासुदेव परम ब्रह्म को अपने आत्मा में आरोपित कर उनका ध्यान किया तथा वह पुरुषोत्तम लीला से ही अपने जीत को निशाना टी परमात्मा में लिंक कर दूरी पद में स्थित हुई है मुनिश्रेष्ठ दूर पास जी ने श्री कृष्ण जी के जैसे कहा था उसे दीप वाक्य का मन रखने के लिए हुए अपने जानवरों पर शरण अरब का योग युक्ति होकर बैठे इसी समय उसने मोतियों के बचे हुए तोमर बाढ़ में लगे हुए लोहे के टुकड़े के आकर वाली मुंह खंड को अपने बाढ़ की नोक पर लगा दिया था वहां जरा बाद आया है द्विज ऊंचारू को मृत्युदंड देखा उसे निरंजन से उसे दूर ही से खड़े-खड़े तोमर से विदा डाला किंतु वहां पहुंचने पर उनसे एक चतुर्भुज धारी मनुष्य को देखा और देखते ही वहां उनके चरणों में गिरकर विनती करने लगा मैंने बिना जाने अनजाने मेमोरी की आशंका से यज्ञोर अपराध किया है मुझे क्षमा कर दीजिए मैं अपने पाप से दिक्कत हो रहा हूं आप मेरी रक्षा कीजिए श्री पाराशर जी बोले तब प्रभु श्री कृष्ण जी ने उनसे कहा लुभाग्य तू जरा सा भी मत भयभीत हो मेरी मेरी से तू भी देवता हूं कि स्थान स्वर्ग लोक को चला जा उन भागवत वाक्य के संपन्न होते ही वहां एक विमान आया उसे विमान पर चढ़कर वहां याद प्रभु की कृपा से इस समय स्वर्ग को चला गया उसके चले जाने के पश्चात प्रभु श्री कृष्ण ने अपने आत्मा को अध्याय अचिंत वासुदेव रूप स्वरूप अमला जमा अमर प्रिया अखिल मां और ब्रह्म स्वरूप प्रभु श्री हरि विष्णु जी में लीन कर इस मनुष्य शरीर को त्याग दिया

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O great sage, in a single moon, no Yadav clan was left alive except Lord Shri Krishna and his charioteer Daru. While roaming there, both of them saw that Balram ji was sitting under a tree and a huge snake was coming out of his mouth. After taking out the huge pandhari from its mouth, it went towards the sea, after being worshiped by the seat and naked, at this time, the ocean presented itself before the great snake and after being worshiped by the great snakes there, it went into the sea. In this way, Shri Krishna saw the life of Balram ji. Ji said to Daru, you go and tell all this story to Maharaj Agrasen and Vasudev ji, Balram ji's prevention, chapter of memories and I will also get affected by yoga or will leave the body, all this news, go to them and listen to all the Dwarika videos and told Arogyashan that you will listen to all this. The sea will drown the city, so all of you wait for Arjun's arrival and as soon as Arjun returns from here, no one should remain in Dwarka. Wherever Guru Nandan goes, all the people should also go there. Kunti, son of Arjun, you tell me and that you According to Samarth, you protect the people of my family and you, all the people of Dwarka, will be the king of Yadav dynasty. Hearing the words of Lord Shri Krishna, Daru bowed to him again and again with folded hands and did many rounds of him and went away as per his instructions. After reaching Daru's Dwarka, he narrated the whole story and brought Arjun there and anointed the kingdom to him. Here Lord Shri Krishna ji implanted Vikas Vasudev Param Brahm in his soul among all the ghosts and meditated on him and he achieved his victory through Purushottam Leela. The target is situated in the distance word by linking in God, Munishreshtha Door Pas ji, as Shri Krishna ji had told him, to keep the mind of the deep sentence, he took refuge on his animals and sat with the Yog Yukti of Arab. At the same time, he took the remaining pearls. Tomar had placed a mouth block in the shape of a piece of iron stuck in the flood at the tip of his flood. He came there a little later and saw the death sentence to Dwij Uncharu. Niranjan bid him farewell to Tomar while standing from a distance, but on reaching there He saw a man with four arms and on seeing him, he fell at his feet and started pleading that I have unknowingly and unknowingly committed Yagyor crime due to fear of memory, please forgive me, I am facing problem due to my sin, please protect me, Shri Parashar ji said. Then Lord Shri Krishna said to him, O fortunate one, don't be even a little afraid of me, you are also a god, go to heaven instead of those Bhagwat sentences, a plane came there, he boarded the plane and remembered the grace of God there. At this time, he went to heaven. After his departure, Lord Shri Krishna left this human body by merging his soul in the form of Achint Vasudev, Amla Jama, Amar Priya, Akhil Maa and Brahma Swaroop, Lord Shri Hari Vishnu Ji.

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