श्री विष्णु पुराण कथा पांचवा स्कंद अध्याय 37 का भाग 2



प्रभु श्री कृष्ण जी की बात सुन देवदूत वायु उन्हें हाथ जोड़कर प्रणाम कर दिव्या गति से देवराज के पास चले गए प्रभु श्री कृष्ण जी ने देखा कि द्वारिका पुरी में दिन-रात नस के सूचक द्वितीय फॉर्म और अंतरिक्ष संबंधित महान उत्पादन हो रहे हैं इन सब उपद्रों को देखकर प्रभु श्री कृष्ण जी ने यादों से कहा देखो यह कैसी घर उपद्रव हो रहे हैं इनकी शांति के लिए शीघ्र ही प्रभास क्षेत्र को चले श्री पाराशर जी बोले प्रभु श्री कृष्ण की बात सुनकर यादव श्रेष्ठ उद्धव ने प्रभु श्री कृष्ण जी को प्रणाम कर कहा प्रभु मुझे तो ऐसा लगता है कि आप सब स्कूल का नाश करेंगे क्योंकि इस समय सर्वत्र इसके नस के सूचक कारण दिखाई दे रहे हैं प्रभु आप मुझे आज्ञा दीजिए मैं क्या करूं प्रभु श्री कृष्ण जी बोले है उद्धव तुम आप मेरी कृपा से प्राप्त दिव्य गति से नर नारायण के निवास स्थान गढ़ मदन पर्वत पर जो पवित्र पत्रिका आश्रम क्षेत्र है वहां पर चले जाओ पृथ्वी पर वहीं सबसे पवित्र पवन स्थान है वहां पर मुझ में चित मन लगाकर तुम मेरी कृपा से सिद्धि प्राप्त करोगे मैं भी अब इस स्कूल का संघार करके स्वर्ग लोक को चला जाऊंगा मेरी पृथ्वी को छोड़ देने पर सारी द्वारा को समुद्र अपने जाल में डुबो लगा मुझे भाई मानो के कारण केवल मेरे भवन को छोड़ देगा अपने इस भवन में मैं अपने भक्तों की ही कामनाओं से सदैव निवास करता हूं प्रभु श्री कृष्ण जी के कहने पर उद्धव जी उन्हें प्रणाम कर उसी क्षण उसके बताए हुए श्री नर नारायण के स्थान को चले गए फिर श्री कृष्ण जी और बलराम आदि के सहित सारे यादव शीघ्रगामी रथ पर चढ़कर प्रवण क्षेत्र में आए वहां पहुंचकर कुकुर अंधक और वनिक आदि वंशों के सारे यादों में प्रभु श्री कृष्ण जी की प्रेरणा से महापन समय उनमें आपस में कुछ विवाद हो जाने से वाहन को वाक्य रूप ईंधन से युक्त पलक करनी कल अग्नि दादा कोठी श्री मैथिली जी बोले हे भगवान भजन करते हुए उन यादों में किस कारण से विवाद हुआ है वह आप मुझे बताएं श्री पाराशर जी बोले मेरा भोजन शुद्ध है तेरा अच्छा नहीं है इस तरह भोजन को अच्छे बुरे की बात करते-करते उनमें आपस में विवाद शुरू हो गया तब हुए देव देवी प्रेरणा से विवेक होकर आपस में क्रोध में एक दूसरे पर शास्त्र प्रहार करने लगे और जब लड़ते-लड़ते उनके शास्त्र समाप्त हो जाए तो उन्हें पास में ही उगे हुए सरकंडों ले लिए हुए उन बाजार तो लिया कर कंडोम से ही धारण युद्ध में एक दूसरे पर प्रहार करने लगे हे थिस प्रद्युम्न और सब्र आदि कृष्ण पुत्र घर कृत वर्मा सत्याग्रह और अनुरोध आदि तथा प्रीत विपरीत चारों वर्मा चारूक और अक्रूर आदि यादव गाने एक दूसरे पर इराक रूपी बज कृपा प्रहार करने लगे जब श्री कृष्ण जी उन्हें आपस में लड़ने से रोका तो उन्होंने उन्हें अपने प्रति पक्षी का सहायक समाज उनकी बात ना मानकर एक दूसरे को करने लगे श्री कृष्ण जी ने भी क्रोधित होकर उनका वध करने के लिए एक मूर्ति सरकारी उड़ान दिए हुए मुट्ठी भर सरकारी लोहे के अनुसार की तरह हो गए बड़ों से श्री कृष्ण जी सारे हाथ यादों को करने लगे तथा अन्य सारे यादव भी वहां जाकर एक दूसरे के मरने लगे फिर प्रभु श्री कृष्ण जी का जीत नाम का रात घोड़े से आज कृष्णा होकर दारू के देखते-देखते समुद्र के मध्य पद से चला गया इसके पश्चात प्रभु के शंख चक्र गदा सक धनु तरकश और खड़क आदि आयुध श्री हरि की प्रतिक्षण कर सूर्य मार्ग से चले गए

TRANSLATE IN ENGLISH 

Hearing the words of Lord Shri Krishna, the angel Vayu saluted him with folded hands and went to Devraj with divine speed. Lord Shri Krishna saw that day and night in Dwarka Puri, great productions related to the second form of veins and space were taking place. Seeing the disturbances, Lord Shri Krishna ji said from his memories, look what kind of disturbances are happening in these houses. For their peace, immediately go to Prabhas area, Shri Parashar ji said. Hearing the words of Lord Shri Krishna, the best Yadav Uddhav bowed to Lord Shri Krishna. Said Lord, I feel that you all will destroy the school because at this time the signs of its destruction are visible everywhere. Lord, please give me permission, what should I do? Lord Shri Krishna Ji has said, Uddhav, you have received the divine speed by my grace. Go to the sacred Patrika Ashram area on Garh Madan mountain, the abode of Nar Narayan, where it is the most sacred place on earth. There, by concentrating on me, you will attain success by my grace, I too will now complete the study of this school. I will go to heaven. If I leave this earth, the entire ocean will drown in its net. Because consider me a brother, he will leave only my house. In this house of mine, I always reside with the wishes of my devotees, Lord Shri Krishna. On the request of Shri Uddhav ji, after paying obeisance to him, he went to the place of Shri Nar Narayan told by him, then all the Yadavs including Shri Krishna ji and Balram etc. boarded the fast-moving chariot and came to the prone area. After reaching there, all the clans of Kukur, Andhak and Vanik etc. In the memories, with the inspiration of Lord Shri Krishna, at the time of greatness, due to some dispute among themselves, the vehicle should be filled with fuel. Yesterday, Agni Dada Kothi, Shri Maithili Ji said, O Lord, while singing bhajan, what is the reason for the dispute in those memories? You tell me that, Shri Parashar ji said, my food is pure but yours is not good. In this way, while talking about good and bad food, a dispute started among them. Then the Gods and Goddesses became wise by inspiration and started getting angry at each other. They started attacking and when their scriptures were exhausted while fighting, they took the reeds growing nearby and started attacking each other in the battle wearing only condoms. O these Pradyumna and Patience etc. Krishna's son's house. Krit Varma Satyagraha and request etc. and Preet Viparit, all four Varma Charuk and Akrur etc. Yadav songs started attacking each other with Iraq-like ringing grace. When Shri Krishna ji stopped them from fighting among themselves, he gave them a supportive society of birds towards themselves by not listening to him. They started killing each other. Shri Krishna ji also got angry and gave a fist of government iron to kill them. Shri Krishna ji became like the elders and started making memories with all his hands and all the other Yadavs were also there. They went and started dying to each other, then Lord Shri Krishna ji's night named Jeet, today he became Krishna on a horse and in the sight of Daru, left the middle of the sea. After this, Lord Hari's conch, chakra, mace, bow, quiver and rattle etc. weapons were given to Shri Hari. After a moment the sun went away

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ