श्री विष्णु पुराण कथा पांचवा स्कंध अध्याय 35

साम्ब का विवाह



शिरीन मैथिली जी बोले ही ब्राह्मण मैं अब फिर माटी मनु बलराम जी ने जो अन्य विक्रम दिखलाइए हैं उसका वर्णन सुनना चाहता हूं श्री पाराशर जी बोले ही मैथिली अंततः प्रीमियर धरण धार शेष अवतार श्री बलराम जी ने जो कर्म किए थे वह मैं तुम्हें सुनाता हूं एक बार जामवंती के पुत्र बीरबल समर ने स्वयंवर के लिए अवसर पर दुर्योधन की पुत्री को बलात्कार से हरण किया तब वीर पराक्रमी कारण दुर्योधन भीष्म और द्रोण आदि ने क्रुद्ध होकर उसे युद्ध में पराजित कर बांध लिया यह पता चलते ही प्रभु श्री कृष्ण जी आदि सारे यादवों ने क्रुद्ध होकर दुर्योधन आदि को करने के लिए तैयार किया उन सबको रोकते हुए सर पर राम जी ने मदिरा के उमंथ से लड़खड़ाते हुए शब्दों में कहा मैं अकेला कौरव गांड के पास जाऊंगा उनसे बात करूंगा मेरे कहने से वह शमर को छोड़ देंगे श्री पाराशर जी बोले फिर बलराम जी हस्तिनापुर के समीप पहुंचकर उसके बाहर एक उद्यान में ठहराए गए उन्होंने नगर में प्रवेश नहीं किया बलराम जी के आने की बात जानकर दुर्योधन आदि राजाओं ने उन्हें गांव अध्ययन और पग आदि प्रदान किया उन सबको ग्रहण कर बलराम जी कौरवों से बोले आप लोग उमराव को तुरंत छोड़ दें यह महाराज अग्रसेन कि आ गया है हे दिस सप्तम बलराम जी की बात सुनते ही भीष्म द्रोण कान और दुर्योधन आदि राजाओं को बहुत दुख हुआ और यदुवंश को राजपथ के अयोग्य समझ कर वाहक आदि समस्त गौरव गांड को पित्त होकर बलराम जी बोले ही बलराम यह तुम क्या कर रहे हो कौन ऐसा यादव वंशी है जो गुरुकुल उत्पन्न किसी वीर्य को आज्ञा दे यदि अग्रसेन भी कौरवों को आज्ञा दे सकता है तो राजाओं के योग्य गौरव के इस श्वेत छात्र का क्या प्रयोजन है आता है बलराम तुम रहो या जो हम लोग तुम्हारे या अग्रसेन की आज्ञा से समर को नहीं छोड़ेंगे पूर्व काल में कुकर और अंधक वंशी यादव गांड हमको प्रणाम किया करते थे लेकिन अब वह ऐसे नहीं करते हैं तो ना सही लेकिन स्वामी को यह सेवा की और से कैसी आजा देना तुम लोगों को अपने सामान आसान और भोजन कराकर हमने तुम्हें गोवलिया बना दिया इसमें तुम्हारा कोई दोस्त नहीं क्योंकि हमें प्रति वर्ष नीति का विचार नहीं किया है बलराम हमने जो तुम्हें अर्थ यदि निवेदन किया है यह सब हमने प्रेम वैस किया है वास्तव में हमारे कुल की तरफ से तुम्हारे कल को अर्धन देना उचित नहीं है हम कृष्ण के पुत्र समर को नहीं छोड़ेंगे यह सोचकर कौरव गांड उसी क्षण हस्तिनापुर से चले गए कौरवों की इस तिरस्कार से बलराम जी को बहुत क्रोध आया और उन्होंने क्रोध में जोर से पृथ्वी में लात मारी बलराम जी के पद पर हर से पृथ्वी फट गई और वह अपने शब्दों से समस्त दिशाओं को गंज कर का बयान करने लगे तथा लाल-लाल नेत्रों और भूक्ति टेढ़ी कर बोले हो इन दुष्ट आत्मा गौरव को राज मत का यह कैसा अभिमान है कौरवों का महिपाल दोसा तहसील है और हमारा सामाजिक ऐसा समझ कर ही आज ए महाराजा अग्रसेन किया गया का पालन नहीं कर रहे बल्कि उसका उल्लंघन कर रहे हैं आज राजा अग्रेशन सुधर्मसभा में स्वयं विराजमान होते हैं उसमें तो देवराज इंद्र भी नहीं बैठ पाते देखकर है इस कौरवों को जिन्हें सैकड़ो मनुष्यों से उत्कृष्ट राजा सिंहासन में इतनी तुष्टि है जिनके सेवकों की स्त्रियों में पारिजात वृक्ष की पुष्प मंजरी धारण करती है वह भी इस कौरवों के महाराज नहीं है एक ऐसा आश्चर्य है वह महाराज एग्रेसन की समस्त राजाओं के राजा बनकर रहे मैं आज अकेला ही इस पृथ्वी को गौरवहीन करके द्वारिका पुरी लौटा दूंगा आज कांड ड्रोन भीष्म वही दुष्यंत भूरी भूरीसवा सोमनाथ शल्य युधिष्ठिर भीम अर्जुन नकुल और सहदेव तथा अन्य समस्त गौरव को उनके हाथी घोड़े औरत सहित मारकर नव वधु के साथ वीरवार समर को साथ लेकर ही मैं द्वारिका पुरी में जाकर महाराज अग्रसेन आदि अपने बंदूक बंदों को दिखाऊंगा अतः सारे कमरों को उनके निवास स्थान इस हस्तिनापुर सहित अभी गंगा जी में फेंक देता हूं श्री पाराशर जी बोले यह कहकर बलराम जी ने हॉकी नोक को हस्तिनापुर के खाई और दुर्ग से युक्त आकर के मूल में लगाकर खींच उसे समय सारे हस्तिनापुर को हिले ढूंढते धक मत गाते देखकर सारे कौरवों इस राहु चित होकर भयभीत होकर बोले हैं बलराम है मा बहू क्षमा करो ही मसला युक्त अपना को शांत करके प्रसन्न हुए है बलराम हम आपके सब्र पत्नी सहित शॉप रहे हैं हम आपका प्रभाव नहीं जानते थे कृपया हमें क्षमा कीजिए श्री पाराशर जी बोले है हे मुनिश्रेष्ठ फिर गौरव ने इस क्षण अपने नगर से बाहर आकर पत्नी सहित समर को भी बलराम जी को सौंप दिए फिर बलराम जी ने भीष्म द्रोण और कृपा आदि से कहा मैंने तुम्हें क्षमा कर दिया है दिस इस समय भी हस्तिनापुर कुछ गंगा की ओर झुका हुआ सा दिखाई देता है यह श्री बलराम जी के शक्ति और पराक्रम का परिचय देने वाला उनका भाव ही है फिर कौरवों ने बलराम जी वह समर का पूजा कर उन्हें बहुत सा दहेज और वधू के सहित द्वारिका पुरी भेज दिया

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Samb's wedding

Shirin Maithili ji said, Brahmin, now again I want to hear the description of the other Vikrams shown by Mati Manu Balram ji. Shri Parashar ji said, Maithili, finally premiere Dharan Dhar Shesh Avtaar, I will tell you the deeds done by Shri Balram ji. Once Jamwanti's son Birbal Samar raped Duryodhana's daughter on the occasion of his Swayamvara, then due to bravery, Duryodhana, Bhishma and Drona etc. got angry and defeated him in the war and tied him up. As soon as Lord Shri Krishna Ji and all the Yadavas came to know about this, He got angry and prepared Duryodhana etc. to do it. Stopping them all, Ram ji said in his words, stumbling due to the liquor, I alone will go to the Kauravas' ass and will talk to them. On my request, they will leave Shamar. Shri Parashar ji. Then Balram ji reached near Hastinapur and was kept in a garden outside it. He did not enter the city. Knowing about the arrival of Balram ji, Duryodhan and other kings gave him villages, study and steps etc. After accepting all of them, Balram ji said to the Kauravas. People should leave Umrao immediately, this Maharaj Agrasen has come, O this seventh, on hearing the words of Balram ji, the kings like Bhishma, Drona, Duryodhan etc. felt very sad and considering the Yadu dynasty unworthy of the royal path, Balram became the bearer of all the glory etc. Yes Balram said, what are you doing? Who is the Yadav descendant who can give orders to any semen born in Gurukul? If Agrasen can also give orders to the Kauravas then what is the purpose of this white student of glory worthy of kings. Come Balram, you stay. Or we who will not leave Samar on your or Agrasen's orders, in earlier times, Kukar and Andhak Vanshi Yadav Gand used to salute us but now they do not do so, so no, but how can you give this service to Swami? By making our goods and food easier for the people, we have turned you into a cow, in this you have no friend because we have not thought about the policy every year, Balram, whatever we have requested you, we have done all this with love, in reality towards our clan. It is not right to offer ardhan to you tomorrow. Thinking that we will not leave Krishna's son Samar, the Kauravas left Hastinapur at that very moment. This disrespect of the Kauravas made Balram ji very angry and in anger he kicked the earth hard. Balram ji. The earth burst from every part and he started narrating all the directions with his words and with red eyes and a crooked face he said, what kind of pride is this evil soul Gaurav of Rajput Mahipal Dosa Tehsil of Kauravas And our society is thinking like this, today Maharaja Agrasen is not following what has been done but is violating it. Today King Agrasen himself sits in the Sudharma Sabha, even Devraj Indra is not able to sit in it. Seeing these Kauravas who were killed by hundreds of humans. There is so much satisfaction in the throne of an excellent king whose servants' women wear flower garlands of the Parijata tree. He is also not the king of this Kauravas. It is such a surprise that he remained the king of all the kings of Maharaj Agresan. Today, I am alone on this earth. I will return to Dwarka Puri after depriving it of glory. Today, I will go to Dwarka Puri along with the new bride and Samar on Thursday after killing the same Dushyant Bhuri Bhurisava Somnath Shalya Yudhishthir Bhim Arjun Nakul, Sahadev and all the other prides along with their elephants, horses and women and Maharaj Agrasen. etc., I will show it to my gunmen, hence, I will throw all the rooms including their residence, Hastinapur, into Ganga ji. Shri Parashar ji said, saying this, Balram ji put the hockey tip at the base of the shape of Hastinapur with its moat and fort and pulled it out in time. Seeing the whole of Hastinapur moving and singing Dhak Do not, all the Kauravas got scared of this Rahu and said, Balram is my daughter-in-law, please forgive me. Balram, I am happy to calm down my troubled self. We have been patient with your wife along with us, we did not know your influence. Please forgive us, Shri Parashar ji said, O sage, then at this moment Gaurav came out of his city and handed over Samar along with his wife to Balram ji. Then Balram ji said to Bhishma, Drona and Kripa etc. I have forgiven you, this is this. Even at times, Hastinapur appears to be slightly inclined towards Ganga. This is the gesture of Shri Balram ji which shows his power and bravery. Then the Kauravas worshiped Balram ji and sent him to Dwarka Puri along with a lot of dowry and bride. Gave

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