पांडिक वध तथा कासी दहन
श्री पाराशर जी बोले हे मैथिली प्रभु ने मनुष्य अवतार लेकर जिस तरह खांसी पूरी जलाई थी वह मैं तुम्हें सुनाता हूं होंडा वंशीय वासुदेव नाम के एक राजा को आज्ञा मोहित पुरुष आप वासुदेव रूप से पृथ्वी पर अवतरित हुए हैं यह कहकर स्तुति किया करते थे अंत में वह भी यही मानने का ही मैं वासुदेव रूप से पृथ्वी पर आवर्त और यदि तुझे जीवन की इच्छा है तो मेरी शरण में ए पोद्दक के दूध ने उसका संदेश जाकर जब श्री कृष्ण जी से कहा तो उसे सुनकर प्रभु हंस कर बोले ठीक है मैं अपने चीन चक्र को तेरे प्रति छोडूंगा है दूध मेरी तरफ से तुम पांडिक से जाकर कहना कि मैं तेरे वाक्य का वास्तविक भाव ध्यान लिया है तुझे जो करना है सो कर मैं अपने चिन्ह और वेष धारण कर तेरे नगर में आऊंगा और अपने चक्र को तेरे ऊपर छोडूंगा और तूने जो आजा करते हुए ऐसा का मैं उसका भी पालन करूंगा और कल शीघ्र जी तेरे पास पहुंचूंगा है राजन तेरी शरण में आकर मैं वही उपाय करूंगा जिससे फिर तुझे मुझे कोई भाई ना रहेगा श्री पाराशर जी बोले प्रभु श्री कृष्ण जी का संदेश लेकर वहां दूध जब चला गया तो प्रभु श्री कृष्ण जी के स्मरण करते ही गरुण उपस्थित हुए जिस पर चढ़कर हुए तुरंत ही उसकी राजधानी को चले गए प्रभु श्री कृष्ण जी के आक्रमण का समाचार सुनकर काशी नरेश भी उसकी सहायक बंद कर अपने समस्त सी लेकर उपस्थित हुआ फिर आपने विशाल सी सहित काशी नरेश की सी लेकर पांडिक प्रभु श्री कृष्ण जी के समझ आया प्रभु श्री कृष्ण जी ने दूर से ही उसके हाथ में चक्र गधा सॉन्ग धनुष आदि पद्मश्री लिए रात भर बैठे देखा प्रभु श्री कृष्ण जी ने देखा कि उसके कांड में वैजयंती माला है शरीर पर पीतांबर है गरुड़ रचित ध्वज और वक्त स्थल भी वात्स्य लेकिन है उसे अनेक प्रकार के रतन से सुसर्जित की रेट और कुंडल धारण किए देखकर प्रभु श्री गरुड़ ध्वजा भगवान गंभीर भाव से हंसने लगे और यह देश उसकी हाथी घोड़ा और खड़क गधा सुन सकती और धनुष शादी से सुसज्जित सी से युद्ध करने लगे प्रभु श्री कृष्ण ने एक ही चांद में अपने ऋण मार्ग धनुष से छोड़े हुए शत्रुओं को वितरण करने वाले तृष्णा वाहनों तथा गदा और चक्र से उसकी समस्त सी को नष्ट कर दिया फिर इसी तरह काशी नरेश की सेवा को भी नाश्तकार प्रभु श्री कृष्ण ने अपने कॉन से युक्त पोद्दक से कहा प्रभु श्री कृष्ण जी बोले ही पुण्डक मेरे लिए जो तूने अपने दूध से कहलवाया था कि वह मेरे कॉन को छोड़ दे सो मैं तेरे समझ हूं कॉन को छोड़ता हूं देख मैंने यह चक्र छोड़ दिया है यह तेरे ऊपर गड़ा भी छोड़ दिया और यह गरुड़ भी छोड़ देता हूं यह तेरी ध्वजा पर अरुण हो
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Pandic slaughter and Kasi burning
Shri Parashar ji said, O Maithili Prabhu, by taking human incarnation, I will narrate to you the way in which cough was cured. A king named Vasudev of Honda dynasty, who was fascinated by orders, used to praise you by saying that you have incarnated on earth in the form of Vasudev. In the end, That too by believing that I have come to the earth in the form of Vasudev and if you wish to live, then take refuge in me. When the milk of the pod got its message and told it to Shri Krishna Ji, after listening to it the Lord laughed and said, Okay, I am in my China. I will release the Chakra towards you, milk from my side, you go to Pandik and tell him that I have noticed the real meaning of your sentence, whatever you have to do, I will come to your city wearing my symbol and disguise and will release my Chakra on you and Whatever you have done while coming, I will also follow it and will reach you soon tomorrow, Rajan, after coming under your shelter, I will take the same measures so that you and I will no longer have any brother. Shri Parashar ji said, taking the message of Lord Shri Krishna ji, milk there. When he left, as soon as he remembered Lord Shri Krishna, Garun appeared on which he climbed and immediately went to his capital. Hearing the news of the attack of Lord Shri Krishna, the king of Kashi also stopped helping him and appeared with all his might. Then he Pandic Lord Shri Krishna understood Lord Shri Krishna ji along with Vishal Si. Lord Shri Krishna ji saw him sitting from a distance with Padmashree in his hand, Chakra, Donkey, Song, Bow etc. for the whole night. Lord Shri Krishna ji saw that Vaijayanti rosary was in his hand. There is a yellow flag on the body, the flag is decorated with Garuda and the place of time is also Vatsya, but after seeing him wearing a rat and earrings made of many types of gems, Lord Shri Garuda Dhwaja started laughing seriously and this country can hear his elephant, horse and donkey's barking. And started fighting with a weapon armed with a bow and arrow. Lord Shri Krishna, in a single moon, destroyed all his weapons with the help of Trishna vehicles and mace and discus which distributed to the enemies with his debt path bow and then in the same way the king of Kashi Lord Shri Krishna said to the poddak with his cone, Lord Shri Krishna said, 'Pundak, for me, you had told me with your milk to leave my cone, so I understand you, I will leave the cone, see I have done this. I have left the Chakra, I have left the Gada on you and I have also left the Garuda, may it be Aruna on your flag.
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