श्री विष्णु पुराण कथा पांचवा स्कंद अध्याय 34 का भाग 2


श्री पाराशर जी बोले श्री कृष्ण जी के छोड़े हुए चक्र से पांडक का विधान कर डाला गधा ने नीचे गिरा दिया और गरुड़ ने उसकी ध्वज तोड़ डाली फिर समस्त सी ने आकर मैच जाने पर अपनी मित्र का बदला लेने के लिए खड़ा हुआ काशी नरेश श्री कृष्ण जी से लड़ने लगा तब प्रभु श्री कृष्ण जी ने सरक्धनों से छोड़ते हुए एक बाद से काशी नरेश का सिर काटकर उसकी खांसी पुरी में फेंक कर समस्त लोगों को विस्मित कर दिया इस तरह काशी नरेश ने पंडित को मारकर प्रभु श्री कृष्ण जी द्वारा द्वारिका पुरी को लौट आए उधर काशी पुरी में काशी नरेश काशी गिरा हुआ देखकर समस्त नगर वासी विश्व में पूर्वक बोले अरे यह क्या हुआ इसे किसने काट डाला जब उसके पुत्र को मालूम हुआ कि उसके पिता का सर श्री कृष्ण ने काटा है तो उसने अपने राजपुरोहित के साथ मिलकर भगवान शंकर को प्रसन्न किया अव्यक्त मुक्त महा क्षेत्र में उसे राजकुमार से प्रसन्न होकर प्रभु शिव शंकर ने कहा वरदान मांगो तो वह बोला है प्रभु आपकी कृपा से मेरे पिता का वध करने वाले श्री कृष्ण का नाश करने के लिए अग्नि से कृतियां उत्पन्न हो प्रभु शिव शंकर ने कहा ऐसा ही होगा उसके ऐसा कहने पर दक्षिण अग्नि का चयन करने के अंतर उसे उस अग्नि का ही विनाश करने वाली तृतीय उत्पन्न हुआ उसका कार्यालय मुख्य ज्वाला मालाओं से पूर्ण था तथा उसके कैसे अग्नि शिखा के समान तृप्ति मां और ताम्रवण थे वह अत्यंत क्रुद्ध पूर्वक कृष्णा कृष्णा कहती हुई द्वारिका पुरी में आए है मनु उसे देखकर लोग भयभीत होकर प्रभु श्री कृष्ण जी की शरण में पहुंचे जब भगवान चक्रपाणि ने जाना कि प्रभु श्री कृष्ण शंकर की उपासना कर काशीराज के पुत्र ने ही यह महाकृत्य उत्पन्न की है तो आप छक्के कीड़ा में लगे हुए उन्हें लीला से यह कहकर कि इस अग्नि ज्वालामुखी जटाओं वाली तृतीया का वध कर डाल अपना चक्र छोड़ प्रभु तब प्रभु श्री हरि विष्णु जी ने सुदर्शन चक्र उसे अग्नि माला मंदिर जटाओं वाली और अग्नि ज्वालाओं के कारण भयानक मुख वाली कृत्य के पीछे छोड़ा उसे सुदर्शन चक्र के तेज से दर्द होकर छीन-भिन्न होती हुई वह कृत्य आती विवेक से दौड़ने लगी तथा वह चक्र भी उतने ही वेग से उसका पीछा करने लगा है मुनिश्रेष्ठ अंत में सुदर्शन चक्र से हाथ प्रभाव हुए प्रीत से अतीत शीघ्र काशी में ही प्रवेश किया उसे समय काशी नरेश की समस्त सी और ब्रह्म अस्त्र-शस्त्र से सुशोजित होकर उसे चक्र के समझ आए तब वह अपने तेज से शास्त्र प्रयोग में कुशल उसे समस्त सी को दर्द कर कृत के सहित समस्त वाराणसी काशी को जलने लगा तो राजा प्रजा और सेवकों से पूर्ण थी हाथी और मनुष्य से भरी थी समस्त गोश्त हो और केशव से युक्त थी और देवताओं के लिए भी दूरदर्शनी थी उसी कहां से पूरी को प्रभु श्री हरि विष्णु जी के उसे चक्र ने उसके ग्रह कोर्ट और चबूतरो में अग्नि की ज्वालाएं उत्पन्न कर जला दिया अंत में जिस जिसका क्रोध अभी शांत नहीं हुआ था तो अंत उग्र कम करने वाले उत्सुक था और जिसकी तृप्ति चारों ओर फैल रही थी वह चक्र फिर लौट कर प्रभु श्री हरि विष्णु जी के हाथ में आ गया

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Shri Parashar ji said, Pandak was created with the chakra left by Shri Krishna, the donkey threw it down and Garuda broke its flag, then all the seas came and when the match was over, King Shri Krishna of Kashi stood up to take revenge for his friend. When he started fighting with the Pandit, Lord Shri Krishna, releasing him from the reeds, cut off the head of the King of Kashi and threw it in the city of Puri, surprising all the people. In this way, the King of Kashi killed the Pandit and Dwarka Puri was brought to Dwarka by Lord Shri Krishna. Returning back to Kashi Puri, after seeing the fallen King of Kashi, all the people of the city said to the world, 'What happened? Who cut this person?' When his son came to know that his father's head was cut off by Shri Krishna, he along with his royal priest Pleased Lord Shankar. In the Avyakt Mukta Mahakshetra, he was pleased with the prince and Lord Shiva Shankar said, "Ask for a boon." He said, "Lord, by your grace, may creations be created from the fire to destroy Shri Krishna who killed my father. Lord Shiva." Shankar said that it would be like this. On his saying so, he chose Dakshin Agni and a third person was born who destroyed that fire. His office was full of main flame garlands and how his Trupti Maa and Tamravana were like Agni Shikha. He was extremely Manu has come to Dwarka Puri angrily saying 'Krishna Krishna'. Seeing him, people got scared and took refuge in Lord Shri Krishna. When Lord Chakrapani came to know that it was the son of Kashiraj who had performed this great feat by worshiping Lord Shri Krishna Shankar, then you He was engaged in six insects and told Leela to kill this Agni Jwalamukhi Tritiya with matted hair and leave his chakra, then Lord Shri Hari Vishnu ji gave Sudarshan Chakra to him in the Agni Mala temple with matted hair and a terrible face due to the flames of fire. Leaving her behind, she got snatched away in pain due to the brilliance of Sudarshan Chakra and she started running with her conscience and that Chakra also started chasing her with the same speed. Munishrestha finally got affected by Sudarshan Chakra and passed away with love soon in Kashi. As soon as he entered, all the arms of the King of Kashi and Brahma, decorated with weapons, understood him as Chakra, then he became skilled in the use of scriptures with his power, he pained all the arms of him and the whole of Varanasi, Kashi along with Krita started burning, then the king and the people And it was full of servants, it was full of elephants and humans, it was full of meat and was full of Keshav and it was also a visionary for the gods, from where did the chakra of Lord Shri Hari Vishnu ji generate flames of fire in its planetary courts and platforms. In the end, the one whose anger had not calmed down yet was eager to reduce the anger and whose satisfaction was spreading all around, that Chakra again came into the hands of Lord Shri Hari Vishnu Ji.

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